रामलीला मैदान में नये निर्माण पर लगी रोक
काशीपुर(उद सवांददाता)। रामलीला मैदान में नये निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। साथ ही दुकानों के ध्वस्तीकरण पर भी अगले आदेश तक रोक लगाई है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने रामलीला मैदान के बाहर बनी 9 दुकानों के मामले में दायर एक याचिका पर अगस्त 2018 में सभी दुकानों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था जिस पर रामलीला कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर किया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से रामलीला कमेटी को राहत मिली है। वहीं दुकानदारों ने भी चैन की सांस ली है। रामलीला मैदान की जमीन वर्षों पहले पूर्व सांसद के सी सिंह बाबा के परिजनों ने रामलीला कमेटी को रामलीला मंचन हेतु दी थी। हालांकि बाद में यह सवाल उठने लगे थे कि रामलीला मंचन को लेकर दी गई भूमि का व्यवसायिक उपयोग किया जा रहा है। मैदान के मालिकाना हक को लेकर भी दोनों पक्षों के बीच मामला चल रहा है लेकिन सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला दुकानों के निर्माण और निर्मित दुकानों के ध्वस्तीकरण को लेकर है। शहर के बीचोंबीच बेशकीमती रामलीला कमेटी द्वारा 9 दुकानें बनायी गयीं जिन्हें रामलीला कमेटी द्वारा व्यवसायिक उपयोग के लिए बनाये जाने का आरोप लगाते हुए काशीपुर निवासी सुशील कुमार भटनागर ने कोर्ट में प्रार्थना पत्र लगाकर दुकानों के ध्वस्तीकरण की मांग की थी।अगस्त 2018 में माननीय उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राजीव शर्मा ने जिला मजिस्ट्रेट के जून 2006 में दिए गए आदेश को सही ठहराते हुए काशीपुर रामलीला कमेटी द्वारा निर्माण की गई 9 दुकानों के ध्वस्तीकरण के आदेश दिए थे। यह आदेश 22 जून, 2006 को तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा काशीपुर निवासी सुशील कुमार भटनगार के प्रार्थना पत्र पर श्री रामलीला कमेटी काशीपुर के द्वारा रामलीला मैदान के बाहर अवैध रूप से बनाई गयी 9दुकानें ध्वस्त करने का आदेश को लेकर दिया गया था। इसके बाद उपरोत्तफ वाद विभिन्न न्यायालयों में विचारण के उपरान्त उच्च न्यायालय नैनीताल पहुंचा। याचिकाकर्ता सुशील कुमार भटनागर ने बताया कि काशीपुर रामलीला कमेटी को पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा के पिता ने अपनी भूमि धार्मिक कार्य के लिए दी थी। लेकिन रामलीला कमेटी द्वारा इस जमीन पर अपना मालिकाना हक दिखाते हुए रामलीला मैदान के बाहर कई दुकानें बना दी और यहीं नहीं रामलीला मैदान का उपयोग धार्मिक कार्य के साथ साथ शादी विवाह जैसे कार्यक्रमों में भी किया जाने लगा था। जिसको लेकर उनके द्वारा एसडीएम को प्रार्थना पत्र देकर कार्यवाही की मांग की थी इस मांग पर तत्कालीन एसडीएम द्वारा नक्शा पास निरस्त किया गया। नक्शा निरस्त होने का कारण मालिकाना हक की स्थिति स्पष्ट न होना था। लेकिन बाद में उनके ट्रांसफर के बाद आये एसडीएम ने नियमों को ताक पर रखते हुए उन्हीं नक्शो को पास कर दिया। जिसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई कर एसडीएम को आदेश दिए। लेकिन संतोषजनक जवाब न मिलने पर सुशील कुमार भटनागर नैनीताल कोर्ट में याचिका दर्ज कर कार्रवाई की मांग की। कोर्ट ने सुनवाई करते हुए 9 दुकानों के ध्वस्तीकरण के आदेश जिलाधिकारी को दिए। लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के नये आदेश से अब दुकानों के गिराये जाने पर रोक लगा दी गई है। एक तरह से रामलीला कमेटी को राहत भी कह सकते हैं लेकिन नये निर्माण पर रोक लगाने के आदेश से रामलीला कमेटी को व्यवसायिक नुकसान भी है।