खाटू धाम में हर माह लगता है आस्था का कुम्भ

दर्शन मात्र से मनोरथ पूरे करते हैं बाबा खाटू श्याम

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जगदीश चन्द्र
सीकर/रूद्रपुर। राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम जी का मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है। वैसे तो यहां पूरे साल भक्तों का तांता लगता है। लेकिन हर साल फागुन माह में लगने वाले मेले में श्रद्धालुओं का भारी सैलाब उमड़ता है। इसके अलावा हर माह की एकादशी और द्वादशी को भी यहां लगने वाले आस्था के कुंभ में लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। लोगों का विश्वास है कि बाबा श्याम सभी की मुरादें पूरी करते हैं इन्हें ‘हारे का सहारा’ कहा जाता है। कहते हैं कि बाबा श्याम रंक को भी राजा बना देते हैं। जो सब जगह हार जाता है वह खाटू श्याम के दरबार में आकर निराश नहीं लौटता। आज से करीब 20 वर्ष पूर्व तक खाटू श्याम जी की ख्याति राजस्थान और उसके आस पास के शहर और गांवों में ही थी लेकिन आज खाटू नरेश का डंका भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बज रहा है। खाटू श्याम जी को भक्तगण बाबा श्याम, हारे का सहारा, लखदातार, मोरवीनंदन, तीन बाणधारी,खाटू का नरेश, शीश के दानी आदि नामों से पुकारते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार खाटू श्याम जी ने श्री कृष्ण से वरदान प्राप्त किया था कि वे कलयुग में उनके नाम ‘श्याम’ से पूजे जाएँगे। श्री कृष्ण बर्बरीक के महान बलिदान से काफी प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि जैसे-जैसे कलियुग का अवतरण होगा, तुम श्याम के नाम से पूजे जाओगे। तुम्हारे भक्तों का केवल तुम्हारे नाम का सच्चे दिल से उच्चारण मात्र से ही उद्धार होगा। यदि वे तुम्हारी सच्चे मन और प्रेम-भाव से पूजा करेंगे तो उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होगी और सभी कार्य सफल होंगे। श्री श्याम बाबा की अपूर्व कहानी मध्यकालीन महाभारत से आरम्भ होती है। वे पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। बर्बरीक बलशाली गदाधारी भीम के पुत्र घटोत्कच और दैत्य मूर की पुत्री मोरवी के पुत्र हैं। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे। उन्होंने युद्ध कला अपनी माँ तथा श्री कृष्ण से सीखी। बर्बरीक ने नव दुर्गा की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अमोघ बाण प्राप्त किये। इस प्रकार तीन बाणधारी के नाम से प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया। अग्निदेव प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जो उन्हें तीनों लोकों में विजयी बनाने में समर्थ थे। महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य अपरिहार्य हो गया था, बर्बरीक को जबपता चला तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जागृत हुई। जब वे अपनी माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुँचे तब माँ को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया। वे अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े। सर्वव्यापी श्री कृष्ण ने ब्राह्मण भेष धारण कर बर्बरीक के बारे में जानने के लिए उन्हें रोका और यह जानकर उनकी हँसी उड़ायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आया है। ऐसा सुनकर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मात्र एक बाण शत्रु सेना को परास्त करने के लिए पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापस तरकस में ही आएगा। यदि तीनों बाणों को प्रयोग में लिया गया तो पूरे ब्रह्माण्ड का विनाश हो जाएगा। यह जानकर भगवान् कृष्ण ने उन्हें चुनौती दी की इस वृक्ष के सभी पत्तों को वेधकर दिखलाओ। वे दोनों पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े थे। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तरकस से एक बाण निकाला और ईश्वर को स्मरण कर बाण पेड़ के पत्तों की ओर चलाया। बाण ने क्षणभर में पेड़ के सभी पत्तों को वेध दिया और श्री कृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होंने अपने पैर के नीचे छुपा लिया था। बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिए अन्यथा ये बाण आपके पैर को भी वेध देगा। तत्पश्चात, श्री कृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस ओर से सम्मिलित होगा। बर्बरीक ने अपनी माँ को दिये वचन को दोहराया और कहा युद्ध में जो पक्ष निर्बल और हार रहा होगा उसी को अपना साथ देगा। श्री कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की निश्चित है और इस कारण अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम गलत पक्ष में चला जाएगा। ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक से दान की अभिलाषा व्यक्त की। बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया और दान माँगने को कहा। ब्राह्मण ने उनसे शीश का दान माँगा। वीर बर्बरीक क्षण भर के लिए अचम्भित हुए, परन्तु अपने वचन से अडिग नहीं हो सकते थे। वीर बर्बरीक बोले एक साधारण ब्राह्मण इस तरह का दान नहीं माँग सकता है, अत ब्राह्मण से अपने वास्तिवक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की। ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ गये। श्री कृष्ण ने बर्बरीक को शीश दान माँगने का कारण समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पूर्व युद्धभूमि पूजन के लिए तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय के शीश की आहुति देनी होती है। इसलिए ऐसा करने के लिए वे विवश थे। बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वे अन्त तक युद्ध देखना चाहते हैं। श्री कृष्ण ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। श्री कृष्ण इस बलिदान से प्रसन्न होकर बर्बरीक को युद्ध में सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि से अलंकृत किया। उनके शीश को युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया गया। जहाँ से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया था इस प्रकार वे शीश के दानी कहलाये। महाभारत युद्ध की समाप्ति पर पाण्डवों में ही आपसी विवाद होने लगा कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है? श्री कृष्ण ने उनसे कहा बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है, अतएव उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है? सभी इस बात से सहमत हो गये और पहाड़ी की ओर चल पड़े, वहाँ पहुँचकर बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि श्री कृष्ण ही युद्ध में विजय प्राप्त कराने में सबसे महान पात्र हैं, उनकी शिक्षा, उपस्थिति, युद्धनीति ही निर्णायक थी। उन्हें युद्धभूमि में सिर्फ उनका सुदर्शन चक्र घूमता हुआ दिखायी दे रहा था जो शत्रु सेना को काट रहा था। महाकाली, कृष्ण के आदेश पर शत्रु सेना के रक्त से भरे प्यालों का सेवन कर रही थीं। श्री कृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से काफी प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि उस युग में हारे हुए का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है। उनका शीश खाटू नगर (वर्तमान राजस्थान राज्य के सीकर जिला) में स्थित रूपवती नदी को समर्पित किया गया। कलयुग में एक समय खाटू गांव के राजा के मन में आए स्वप्न और श्याम कुंड के समीप हुए चमत्कारों के बाद फाल्गुन माह में खाटू श्याम मंदिर की स्थापना की गई। शुक्ल मास के 11 वे दिन उस मंदिर में खाटू बाबा को विराजमान किया गया। मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चैहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर 1720 ई. में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और तब से आज तक उस मंदिर की चमक
यथावत है। श्याम कुंड की मान्यता देश-विदेश में है। ऐसा माना जाता है कि जो श्रद्धालु इस कुंड में स्नान करता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। इस तरह बरसों से खाटू श्याम जी के रूप में भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करके उन्हें अनुग्रहित करते आ रहे हैं। जैसे जैसे कलयुग बढ़ रहा है वैसे वैसे खाटू की प्रसिद्धि भी बढ़ रही है। आज से कुछ वर्षों पहले तक खाटू श्याम की ख्याति राजस्थान और उसके आस पास के क्षेत्रों में थी। खाटू जी के चमत्कारों की वजह से ही आज उनके नाम का डंका देश ही नहीं बल्कि दुनिया में कोने कोने तक बज रहा है। जो भी एक बार खाटू में बाबा श्याम के दर्शन के लिए पहुंचता है वह खाटू श्याम का दिवाना हो जाता है। भक्त बताते हैं कि बाबा खाटू
श्याम सभी की मुरादें पूरी करते है।
खाटू धाम में आस लगाने वालों
की झोली बाबा खाली नहीं रखते हैं।

खाटू धाम में निशान यात्रा का है विशेष महत्व
सीकर। निशान यात्रा एक तरह की पदयात्रा होती है यह एक तरह से कांवर यात्रा की तरह है। इसमें कांवर की जगह श्याम ध्वज पैदल ले जाकर खाटू श्याम जी को अर्पित कियाजाता है। भक्त हाथो में श्याम ध्वज ( निशान) हाथ में उठाकर श्याम बाबा को चढाने खाटू श्याम जी मंदिर तक जाते है। मुख्यत यह यात्रा रींगस से खाटू श्याम जी तक की जाती है जो 18 किमी की यात्रा है। भक्त अपनी श्रद्दा से इसे जयपुर, दिल्ली कोलकाता और अपने घर से भी शुरू कर देते है। माना जाता है की पैदल निशान यात्रा करके निशान श्याम बाबा को चढाने से श्याम बाबा शीघ्र ही प्रसन्न होकर मनोकामना को पूर्ण करते है। श्याम बाबा के महाबलिदान शीश दान के लिए उन्हें निशान चढ़ाया जाता है। यह उनकी विजय का प्रतीक है जिसमे उन्होंने धर्म की जीत के लिए दान में अपना शीश ही भगवान श्री कृष्ण को दे दिया था। निशान छोटे से बड़े मुख्यत केसरी नीला,सफेद ,लाल रंग का झंडा होता है। इन निशानों पर श्याम बाबा और कृष्ण भगवान के जयकारे और दर्शन के फोटो होते है। निशानों पर नारियल और मोरपंखी भी लगी होती है। कई भक्त सोने और चांदी के भी निशान श्याम बाबा को अर्पित करते हैं। खाटू जी के दरबार में वैसे तो कभी भी निशान चढ़ाया जाता है लेकिन फाल्गुन मास के अलावा हर माह की एकादशी को निशान यात्रा का विशेष महत्व है। वास्तव में निशान चढ़ााने की परपरा का भी एक रहस्य है। यह ध्वजा बहुत श्रद्धा से बाबा को अर्पित किया जाता है। सनातन संस्कृति में ध्वजा विजय का प्रतीक होती है और स्वयं बाबा की भी प्रतिज्ञा है कि वे हारे हुए का निर्बल का पक्ष लेंगे और उसे विजयी बनायेंगे। इसलिए जहां श्याम है वहां विजय है जहां उनका निशान है वहां हर मुश्किल का समाधान है। यूं तो निशान कई रंगों के होते है। उनमें पंचरगा निशान सबसे खास माना जाता है। बाबा को पंचरंगा निशान चढाने का संबंध हमारे शरीर और उसकी आत्मा से है। मानव शरीर पंचमहाभूतों से बना है। उसमें एक आत्मा का वास है जो परमात्मा की ही दिव्य ज्योति है। निशान के पांच रंग उन पंच तत्वों के प्रतीक है। इसका अर्थ है एक भक्त अपने संपूर्ण शरीर मन आत्मा सहित खुद को बाबा के चरणों में समर्पित करता है।

दिन रात चलती है भण्डारे की सेवा
रूद्रपुर। खाटू श्याम के दर्शन के साथ ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचकर भक्तों की सेवा करके पुण्य कमाते हैं। हर माह एकादशी को बड़ी संख्या में श्रद्धालु 18 किमी की निशान यात्रा में शामिल होकर बाबा को निशान अर्पित करते हैं। इस यात्रा मार्ग में दिल्ली, मुम्बई, हरियाणा, कलकत्ता सहित तमाम शहरों से बड़े घराने, उद्योगपति और समाजसेवी निशान यात्रियों की सेवा में दिन रात एक कर देते हैं। यात्रा मार्ग पर जगह जगह भण्डारे लगाये जाते हैं इनमें निशान यात्रियों के भोजन, नाश्ते आदि की व्यवस्था की जाती है।

तराई में भी बढ़ रही है श्याम प्रेमियों की तादात
रूद्रपुर। खाटू श्याम जी के नाम को कुछ वर्ष पहले तक तराई में लोग जानते तक नहीं थे। लेकिन आज इस क्षेत्र में श्याम प्रेमियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। पिछले दिनों बाजपुर से श्याम प्रेमियों का जत्था पैदल निशान यात्रा लेकर खाटू धाम पहुंचा था। तराई से बड़ी संख्या में श्रद्धालु खाटू श्याम के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। हर माह एकादशी को यहां से श्रद्धा भाव के साथ भक्त खाटू श्याम के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इस बार भी एकादशी को तराई से श्याम प्रेमियों के कई जत्थे दर्शन के लिए पहुंचे थे। इन्हीं जत्थों में एक रूद्रपुर के बाबा भक्तों का जत्था अग्रवाल सभा के जिलाध्ययक्ष विनीत जैन और बालाजी दरबाार आयोजन समिति के अध्यक्ष गगन बाधवा की अगुवाई में भी खाटू धाम पहुंचा। इस जत्थे में शामिल राजकुमार जैन, राकेश शर्मा, विकास जैन, जगदीश सहित कई श्रद्धालुओं ने बाबा श्याम के दर्शन किये और बाबा को निशान अर्पित किये। श्रद्धालुओं ने खाटू श्याम के दर्शन के साथ ही श्री मेहंदीपुर धाम, श्री सालासर धाम के अलावा दिल्ली में स्थित प्राचीन मरघट वाले हनुमान जी के दर्शन भी किये।

श्याम कुंड में स्नान से धुल जाते हैं सारे पाप
सीकर। श्याम भक्तों के लिए खाटू धाम में श्याम बाग और श्याम कुंड आस्था के बड़े केन्द्र हैं। श्याम बगीची में प्राकृतिक वातावरण के बीच आस्था के विभिन्न रंगों की अनुभूति होती है। यहां परम भक्त आलू सिंह की समाधि भी बनाई गयी है। श्याम कुड के बारे में मान्यता है कि यहां स्नान करने से श्रद्धालुओं के पाप धुल जाते हैं और सभी मनोरथ पूरे होते हैं। यहां पर पुरूषों और महिलाओं के स्नान के लिए अलग अलग कुंड बनाये गये हैं। दर्शन मात्र से पूरी होती हैं सभी इच्छाएं सीकर (राजस्थान)। खाटू में पाण्डु पुत्र भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की पूजा श्याम के स्वरूप में की जाती है। यहां पर खाटू बाबा के मस्तक स्वरूप की पूजा होती है जबकि निकट ही स्थित रींगस में इनके धड़ स्वरूप की पूजा होती है। प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में यहां भव्य मेला लगता है। इस मेले में देश विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। कई श्रद्धालु दंडवत करते हुए यहां अपनी हाजिरी देते हैं। हर मााह एकादशी को यहां भक्तों की लम्बी कतारें लगती हैं। माना जाता है कि यहां आकर खाटू श्याम के दर्शन करने से जीवन की प्रत्येक इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

खाटू धाम से जुटते हैं कई कलाकार
सीकर। खाटू श्याम की महिमा गाने के लिए हर माह देश कोने कोने से यहां पर बड़ी संख्या में भजन गायकों का जमावड़ा होता है। आम तौर पर धार्मिक कार्यक्रमों में मोटी फीस लेकर भजनों की प्रस्तुति देने वाले भजन गायक एकादशी पर खाटू श्याम में बिना किसी फीस के बाबा की महिमा का गुणगान करते हैं। खाटू श्याम में लखवीर सिंह लक्खा,नंद किशोर नंदू , मोना मेहता, कन्हैया मित्तल, शिवानी हलचल,पप्पू शर्मा, रेशमी शर्मा, उमा लहरी, ट्विंकल शर्मा, संजय सेन, मनोज शर्मा, गिन्नी कौर, संजय मित्तल, रितेश मनोचा, मयंक अग्रवाल,अमन सांवरिया, नरेश सैनी, मुकेश बागड़ा, हरमेन्द्र सिंह रोमी, संजय पारिख, खुशी जोशी, अंजली द्विवेदी, आकांक्षा मित्तल, शिल्पी कौशिक, परविंदर पलक, तान्या परूथी सरीखे कई कलाकार विभिन्न धर्मशालाओं में आयोजित होने वाले जागरण में खाटू श्याम का गुणागान करते हैं। दरअसल खाटू धाम के प्रति इन कलाकारों की भी अटूट आस्था है। वह मानते हैं आज जो प्रसिद्धि उन्हें मिली है वह सब खाटू नरेश की कृपा का ही परिणाम है।

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