आपातकाल आतंक का पर्व है

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सुनील राणा

रुद्रपुर। 25 जून 1975 यह दिन देश के लोग कभी नहीं भूल सकते कि जब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया था। यह बात अलग है कि आपातकाल प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लागू किया था लेकिन उसका सम्पूर्ण नेतृत्व उनके पुत्र संजय गांधी करते थे। पूरा देश आपातकाल की गिरफ्रत में आ गया था। देशभर में लाखों लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया था और उनका जमकर उत्पीड़न किया गया था। पूरा देश एक जेलखाने में तब्दील हो गया था और 19 माह का यह आपातकाल देश के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज हो गया था। इस आपातकाल से रूद्रपुर भी अछूता नहीं रहा था कि जब आ पातकाल की घोषणा होते ही रूद्रपुर के अनेक जनसंघ के कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्रतार कर लिया था और उ नका जमकर शारीरिक शोषण किया था। यही नहीं, उस दौर के युवा जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के का र्यकर्ता होते थे वह भी अण्डरग्राउण्ड हो गये और वेश बदलकर रहने लगे। तब संघ के उन युवा स्वयंसेवकों ने गोपनीय रहकर पोस्टर चिपकाने का कार्य किया था। उस पोस्टर पर अंकित था कि ‘आपातकाल आतंक का पर्व है’ 25जून 1975 में आपातकाल के दौरान रूद्रपुर में जनसंघ के गिनेचुने कार्यकर्ता होते थे। उस दौरान पुलिस ने आपातकाल के चलते सुभाष चतुर्वेदी, बनारसीदास राणा, रामकुमार आर्य, रामआसरे आर्या, चुन्नीलाल खेड़ा, जुगल किशोर बाम्बा, सूरज गुलाटी को गिरफ्रतार किया। सभी लोग आपातकाल के विरोध में भगत सिंह चौक पर सत्याग्रह कर रहे थे और उनका नेतृत्व जनसंघ के कार्यकर्ता बनारसीदास राणा कर रहे थे। आपातकाल की घोषणा होते ही पुलिस ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया और जबरन गाड़ियों में बैठाकर नैनीताल जेल ले गये जहां पुलिस ने उनका जमकर उत्पीड़न किया। चूंकि बनारसीदास राणा सिख थे तो उनके पुलिस ने केश और दाढ़ी भी काट दी। नैनीताल जेल के बाद सभी को बरेली सेंट्रल जेल में भेज दिया गया जहां वह 19 माह तक जेल में रहे। उधर रूद्रपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के युवा कार्यकर्ता और अन्य वरिष्ठ भी अण्डरग्राउण्ड हो गये जिनमें ओमप्रकाश गुप्ता, हीरा बल्लभ शास्त्री,सरदार गजेंद्र सिंह संधू, सतीश अरोरा, कीमती राणा, मंगत सिंह खुराना, किशन लाल आनंद आदि थे। लगातार पुलिस के बढ़ते दबाव के चलते उक्त सभी युवा गोपनीय स्थानों पर चले गये। चूंकि गजेंद्र सिंह सिख थे लिहाजा उन्होंने वेश बदल लिया और अपने केश और दाढ़ी कटवा ली और अलग अलग जगहों पर अलग अलग नामों से वह रहने लगे। आरएसएस के यह युवा गोपनीय रहकर स्वयंसेवकों से मिलते रहे और आपातकाल के खिलाफ जगह जगह पोस्टर चिपकाते रहे। आज आपातकाल को 43 वर्ष का समय बीत चुका है लेकिन देश के जिन लोगों ने आपातकाल का वह दंश झेला है वह और उनके परिवार आज भी आपातकाल के उन काले दिनाें को कभी नहीं भूल सकते।

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