…तो भंग कर दी जाएगी उत्तराखंड विधानसभा ? वन नेशन वन इलेक्शन पर कमेटी गठन के बाद चर्चाओं ने पकड़ा जोर
रूद्रपुर। ‘मास्टर स्ट्रोक’ के ‘मास्टर’, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा कुछ बड़ा करने की कोशिश में रहते हैं और अपने फैसलों से अक्सर ही देश को चौका देते हैं। अब देश के प्रधानमंत्री ने ‘वन नेशन,वन इलेक्शन’ का, एक ऐसा ही मास्टर स्ट्रोक खेल दिया है जो कि आजकल पूरे भारत में चर्चा का विषय बना हुआ है। बताना होगा कि वन नेशन वन इलेक्शन के तहत देश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ ही कराए जाएंगे। जाहिर है कि आगामी लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव कराने की स्थिति में अनेक राज्यों की विधानसभाओं को भंग करना पड़ेगा । ऐसे में उत्तराखंड के विभिन्न छोटे-बड़े शहरों एवं ग्रामीण अंचलों के तमाम गली-मोहल्ले एवं चौक-चौबारों में इस बात की चर्चा खास तौर से हो रही है, कि क्या मोदी का ताजा मास्टर स्ट्रोक उत्तराखंड पर भारी पड़ेगा और वन नेशन वन इलेक्शन विचार के अनुपालन में उत्तराखंड की विधानसभा, आगामी नवंबर दिसंबर माह तक भंग कर दी जाएगी ? इसमें दो राय नहीं कि वन नेशन वन इलेक्शन के विचार को अमली जामा पहनाने में अनेक व्यवहारिक दिक्कतें हैं और इसे किसी हड़बड़ी में कार्य रूप में परिणित करते हुए विधानसभा एवं लोकसभा के चुनाव ,एक साथ आनन-फानन नहीं कराए जा सकते, लेकिन संसद के मानसून सत्र की समाप्ति के महज 3 सप्ताह बाद ही संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी द्वारा 18 सितंबर से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र आयोजित किए जाने की घोषणा तथा इस घोषणा के तुरंत बाद पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में वन नेशन वन इलेक्शन की परिकल्पना पर विचार करने हेतु विशेषज्ञों की एक समिति गठित किए जाने के बाद, राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा खासा जोर पकड़ चुकी है कि केंद्र सरकार आगामी नवंबर दिसंबर माह में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ ही लोकसभा का चुनाव भी करा सकती है और इसीलिए संसद का विशेष सत्र आहूत किया गया है। ताकि तमाम जरूरी विधेयक संसद से पारित कराए जा सके। यद्यपि केंद्रीय सत्ता के गलियारे से छनकर आ रही खबरों के मुताबिक सितंबर माह में आहूत संसद के विशेष सत्र में महिलाओं के लिए एक तिहाई अतिरिक्त संसदीय सीट सीट बढ़ाने, पुरानी संसद भवन से नई संसद भवन शिफ्ट होने की औपचारिक घोषणा, यूनिफॉर्म सिविल कोड एवं आरक्षण संबंधी प्रावधान पर संशोधन तथा लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव साथ-साथ करने जैसे महत्वपूर्ण फैसले लिए जा सकते हैं, तथापि यह आवश्यक नहीं है कि लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव एक साथ करने के विचार पर, दिसंबर माह में होने वाले पांच राज्यों के चुनाव के समय ही अमल कर लिया जाए। बावजूद इसके राजनीतिक जानकारों का एक तबका जोर देकर यह कह रहा है कि संसद का विशेष सत्र अमूमन किसी दूरगामी राजनीतिक महत्व के एजेंडे को दृष्टिगत रखते हुए ही आयोजित किए जाता है। लिहाजा संसद के विशेष सत्र में लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव एक साथ करने का विधेयक केंद्र सरकार द्वारा पारित कराए जाने की प्रबल संभावना है। दूसरी तरफ कुछ राजनीतिक पंडितों का मानना है कि लोकसभा चुनाव लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने संबंधी विधेयक संसद के विशेष सत्र में नहीं आएगा ,क्योंकि इस विषय पर गठित की गई कमेटी पहले इसकी व्यावहारिकता पर विचार कर अपनी रिपोर्ट देगी और कमेटी की रिपोर्ट के बाद ही कोई विधेयक तैयार किया जा सकेगा । देखा जाए तो पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में गठित कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद ही ,वन नेशन वन इलेक्शन के मसले पर विधि निर्माण की प्रक्रिया आरंभ होने की संभावना अधिक है,क्योंकि अगर लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने का विचार आगामी नवंबर -दिसंबर माह में होने वाले विधानसभा चुनाव के साथ ही अमल में लाया जाता है ,तो इसके लिए सभी राज्यों की विधानसभाओं को भंग करना होगा, तत्पश्चात ही लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव एक साथ करना संभव हो पाएगा । हालांकि संसदीय कार्य मंत्री ने इस तथ्य को पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है कि अभी केवल समिति का गठन किया गया है। यह समिति तमाम पहलुओं पर विचार करने के बाद अपनी रिपोर्ट देगी। उसके बाद ही इस पर कोई फैसला लिया जाएगा। मगर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा ही ‘अनप्रिडिक्टेबल’ रहे हैं और वे सदैव ही कुछ बड़ा करने की फिराक में रहते हैं, लिहाजा हो सकता है कि मोदी आगामी नवंबर दिसंबर माह में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ ही, लोकसभा एवं शेष अन्य राज्यों की विधानसभा के चुनाव कराई जाने की कराए जाने की घोषणा कर दें और उत्तराखंड सहित सभी राज्यों की विधानसभाओं को भंग करने का क्रांतिकारी फैसला भी ले लें।