“गढ़वाल में राजधानी रहेगी तो कुमाऊं में हाईकोर्ट” : उत्तराखंड में हाईकोर्ट की शिफ्टिंग पर कुमांऊ में सियासी भूचाल, पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सीएम धामी को भेजी चिट्ठी

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हाईकोर्ट के स्थानांतरण को लेकर जनमत संग्रह का फैसला रोकने की मांग
नैनीताल/देहरादून। पूर्व राज्यपाल व पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने उत्तराखंड हाईकोर्ट को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को पत्र लिखा है। जिसमें भगत सिंह कोश्यारी ने बिंदुवार अपनी राय रख सीएम धामी को अवगत कराया है। कुमाऊं में हाईकोर्ट ही एकमात्र बड़ा संस्थान बचा हुआ है, उसे भी यहां से ले जाने की कोशिश की जा रही है, जबकि राज्य गठन के समय स्पष्ट था कि गढ़वाल में राजधानी रहेगी तो कुमाऊं में हाईकोर्ट। अब इस मामले को लेकर कुमाऊं में विरोध होने लगा है। वहीं अब मा० उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा उच्च न्यायालय को नैनीताल से अन्यत्र स्थानांतरित करने के लिए नये स्थान ढंढने के निर्देश दिये गये है, इसके सम्बन्ध में पूर्व राज्यपाल, महाराष्ट्र व गोवा राज्यपूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड भगत सिंह भगत सिंह कोश्यारी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के को पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने कहा है कि उत्तराखण्ड (उत्तरांचल) राज्य बनाते समय विस्तृत विचार विमर्श के बाद देहरादून को तात्कालिक राजधानी एवं नैनीताल में उच्च न्यायालय बनाने का निर्णय लिया गया था। नैनीताल में अंग्रेजों के समय से ही राजभवन, सचिवालय आदि बनाये गये हैं,यह उत्तर-प्रदेश की गर्मियों की राजधानी के रूप में प्रयुक्त होता रहा है, किन्तु नये राज्य में नैनीताल को राजधानी बनाने से मंत्रियो, विशिष्ट जनों की अधिकता से स्थानीय पर्यटन व जनजीवन को बाधा पहंचने की सम्भावना को देखते हुए यहां क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखकर हाईकोर्ट की स्थापना की गई थी । उन्होंने कहा कि मैं कानून का विद्यार्थी नही हूँ किन्तु लम्बे समय तक संसद व विधान मण्डल के सदस्य रहने के कारण मेरा कहना है कि न्यायालय का सम्मान रखते हुए भी राज्य की कौन सी संस्था, विभाग कहां रहे इसका निर्णय संसद या विधान मण्डल ही करते आये है। मा0 न्यायालय इस सम्बन्ध में निर्णय लेने लगेगें तो पी.आई. एल. कर्ता कल को किसी भी विभाग जिला, तहसील आदि की मांग को लेकर न्यायालय पहुँच जायेगे व इससें संविधान द्वारा केन्द्र या प्रदेश सरकारों को दिये गये अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप की सम्भावना बढ़ जायेगी। जहां तक नैनीताल हाईकोट के अन्यत्र स्थानांतरित करने का प्रश्न है मेरी जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार इससे पहले से ही सहमत है। जैसा कि मा0 उच्च न्यायालय ने अपने निर्देश में स्वयं कहा है कि (निर्देशसंख्या 13 एवं 14 D ) मा0 उच्च न्यायालय की फूल बैंच ने गौलापार हल्द्वानी में कोर्ट को स्थापित करने की प्रक्रिया पर सहमति दी थी। शासन/ प्रशासन द्वारा इस प्रकिया को आगे बढ़ाते हुए गौलापर में लगभग 26 बीघा जमीन का चयन कर वन विभाग से अनापत्ति हेत् प्रकिया पूर्ण कर ली गई है तथा केन्द्रीय वन एव पर्यावरण विभाग से इस पर विचार कर 26 बीघे जमीन को अधिक बताते हुए इसे कुछ कम करने के लिए प्रदेश सरकार को निर्देशित किया गया है। इसमें क्षतिपुर्ति के लिए वन विभाग को अन्यत्र वन लगाने हेतु जमीन का भी चयन कर लिया गया है ऐसे में अब अन्यत्र वैकल्पिक स्थान ढूंढने हेतु दिये गये निर्देश से क्षेत्र में असन्तोष फैलने की सम्भावना से नकारा नही जा सकता है। वैसे भी उक्त प्रस्तावित स्थान रौखड़ के रूप में अभिलेखों में दर्शाया गया है। उक्त स्थान में स्थित अधिकांश पेड केवल 4 से 6 इंच मोटाइ के ही हैं।
मा० न्यायालय से अपने आदेश में स्वयं ही स्वाच्च न्यायालय के निर्देशें काहवाला देते हुए कहा है कि अधिवक्ताओं को आभासी या आन लाईन बहस करने का अभ्यास डालना चाहिए। न्यायालय से अपने आदेश में स्वयं ही सर्वाच्च न्यायालय के निर्देशों का हवाला देते हुए कहा है कि अधिवक्ताओं को आभासी या आन लाईन बहस करने का अभ्यास डालना चाहिए। मा० न्यायालय ने नैनीताल में आसपास चिकित्सा आदि की उचित व्यवस्था नही होने का जिक्र किया गया है। गौलापार हाईकोर्ट बन जाने से हल्द्वानी में सभी प्रकार की सरकारी व निजी अस्पतालों के माध्यम से चिकित्सा की उचित सुविधा उपलब्ध हो जायेगी। यहां से हवाई अड्डा भी NH बन जाने से 20 या 25 मिनट पंतनगर पहुचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि मैं मा. उच्च न्यायालय का पूर्ण सम्मान करते हुए आपसे कहना है कि कृपया उच्च न्यायालय के लिए जनमत संग्रह जैसी प्रथा से बचाया जाये। इससें भविष्य में इसका दुरूपयोग हो सकता है। इस सम्बन्ध में शासन की ओर से केन्द्र सरकार या सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से शीघ्रतिशीघ्र समस्या का समाधान निकाला जाये।

हाईकोर्ट की शिफ्टिंग को लेकर चर्चायें तेज
हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव, उत्तराखंड सरकार को उच्च न्यायालय की स्थापना, न्यायाधीशों, न्यायिक अधिकारियों, कर्मचारियों के लिए आवासीय आवास, कोर्ट रूम, कॉन्स हॉल, कम से कम सात हजार वकीलों के लिए चौंबर, कैंटीन, पार्किंग स्थल के लिए सबसे उपयुक्त भूमि का पता लगाने का निर्देश दिया गया है। जहां अच्छी चिकित्सा सुविधाएं और अच्छी कनेक्टिविटी हो। यह पूरी प्रक्रिया मुख्य सचिव द्वारा एक माह के भीतर पूरी की जाएगी और मुख्य सचिव 7 जून 2024 तक अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट में सौंपेंगे। उत्तराखंड में हाईकोर्ट की शिफ्टिंग को लेकर हाईकोर्ट के दिशा निर्देशों के बाद जहां उसके स्थानांतरण को लेकर व्यापक रूप से चर्चायें तेज हो गई हैं तो वहीं दूसरी तरफ राज्य के इस संवेदनशल मामले को लेकर कई वर्गो की राय भी ली जा रही है। बताया जा रहा है कि कुमांऊ मंडल के अधिवक्ता नैनीताल से हाईकोर्ट की शिफ्टिंग का पुरजोर विरोध कर रहे है। उनका मानना है कि प्रदेश के विकास में सामरिक महत्व रखने वाली इस ऐतिहासिक धरोहर हाईकोट को किसी भी कीमत पर हटाने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिये। वहीं अधिवक्ताओ के अनुसार संसद के गजट नोटिफिकेशन में बिना बदलाव किये इस पहल को आगे बढ़ाना उचित नहीं हैं।

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