आशा वर्करों के समर्थन में उतरे हरीश रावत: मेरा यह “मौन उपवास” संघर्षरत आंगनबाड़ी आशा की बहनों और भोजन माताओं को समर्पित
पूर्व सीएम ने कहा,मानदेय बढ़ाना तो छोड़िए, सरकार के नुमाइंदे उनसे बात करने को भी तैयार नहीं
देहरादून। पूर्व सीएम हरीश रावत ने प्रदेश में मांगों को लेकर आंदोलनरत एवं कार्यबहिष्कार पर अड़ी आशा वर्करों के समर्थन में गत दिवस अपने आवास पर मौन उपवास किया। पूर्व सीएम हरीश रावत ने सोशल मीडिया के जरिये एक पोस्ट में कहा कि न चाहते हुये भी कभी ऐसे सवाल सामने आ जाते हैं जिन पर मौन रहना कठिन हो जाता है। मेरा यह “मौन उपवास” संघर्षरत आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों और उन्हीं के समकक्ष आशा की बहनों और भोजन माताओं को समर्पित है। आंगनबाड़ी की बहनें पिछले कई दिनों से धरने पर बैठी हुई हैं, जो धरने पर नहीं बैठी हैं वह सड़कों पर प्रदर्शन कर ज्ञापन दे रही हैं, विधानसभा कूच कर रही हैं। मुझे आज मालूम पड़ा कि मानदेय बढ़ाना तो छोड़िए, सरकार के नुमाइंदे उनसे बात करने को भी तैयार नहीं हैं। मुख्यमंत्री की व्यस्तता मैं समझ सकता हूं, मगर विभागीय मंत्री भी बात न करे तो आखिर यह लोकतांत्रिक संगठन जो अपने सदस्यों के अधिकारों के लिए गठित हुये हैं, वह अपना कर्तव्य कैसे निभा पाएंगे? मंत्री मिलते नहीं, हमारी सरकार ने कई कल्याण कोष गठित किय थे, उसमें से एक कल्याण कोष आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी सहायिकाओं के लिए भी था, जिसमें जितनी धनराशि प्रति माह आंगनबाड़ी कार्यकत्री देती थी, उतनी ही धनराशि राज्य सरकार भी रखती थी ताकि सेवानिवृत्त पर एक अच्छी खासी धनराशि आंगनबाड़ी की बहन या सहायिका को मिल सके और उसके आगे का जीवन थोड़ा सरल हो सके। मुझे पता चला है कि सरकार अब उसमें अपनी तरफ से कोई कंट्रीब्यूशन नहीं कर रही है और उनका जो कंट्रीब्यूशन है, उसका भी जो वितरण है सेवानिवृत्त होने वाली आंगनबाड़ी की कार्यकत्रियों को जो धनराशि दी जा रही है, वह बहुत कम है। हमने एक सामूहिक बीमा योजना सरकार की तरफ से प्रारंभ की थी। यह ग्रामीण क्षेत्रों में, दुर्गम इलाकों में जो लोग काम करते हैं, रात-दिन काम करते हैं तो इनके लिए एक “सामूहिक बीमा योजना” की परिकल्पना की गई थी, उस पर भी सरकार की तरफ से चुप्पी है और भी कुछ मांगें ऐसी हैं जिन पर सरकार को विचार करना चाहिये और मेरा अपना मानना है कि हर दो साल के बाद इन संगठनों का मानदेय महंगाई के अनुपात में बढ़ाया जाना चाहिये।