तो क्या ‘यूसीसी’ पर निकाली भड़ास है “दुस्साहसपूर्ण एवं हिंसक” तोड़फोड़ ?
पत्थर ,पेट्रोल बम,हथियार तैयार कर अंजाम दी गई हिंसक कार्यवाही ,किसी ने भी न की होगी कल्पना
हल्द्वानी। बीते रोज हल्द्वानी के बनभूलपुरा थाना अंतर्गत इंदिरा नगर क्षेत्र के मालिक का बगीचा इलाके में, नजूल भूमि पर अतिक्रमण कर बनाए गए मदरसे एवं नमाज स्थल से नजूल भूमि को अतिक्रमण मुक्त किए जाने की कार्यवाही के दौरान समुदाय विशेष के लोगों द्वारा जैसी आगजनी ,पथराव ,गोली एवं तोड़फोड़ की हिंसक कार्यवाही अंजाम दी गई, देवभूमि के नाम से विख्यात उत्तराखंड तो में इसकी कल्पना कम से कम किसी ने भी न की होगी। जहां तक हल्द्वानी का सवाल है ? तो आजादी के बाद से यह पहला अवसर है, जब हल्द्वानी में इस प्रकार की दुस्साहसपूर्ण एवं हिंसक कार्यवाही सामने आई है। हल्द्वानी के संपूर्ण घटनाक्रम पर सरसरी दृष्टिपात करें, तो एक बात पूरी तरह स्पष्ट है कि यह घटना अतिक्रमण हटाने के परिणाम स्वरूप उत्पन्न आक्रोश की तात्कालिक प्रतिक्रिया न होकर एक सोची समझी साजिश की परिणिति थी। कहने की जरूरत नहीं कि ऐसी घटनाएं तुरत-फुरत अंजाम नहीं दी जा सकती, बल्कि इनको अंजाम देने की तैयारी मे काफी वक्त लगता है। जाहिर है कि हल्द्वानी के दंगाग्रस्त क्षेत्र में स्थित घरों की छतों पर पत्थर जमा करने, पेट्रोल बम तैयार करने एवं अवैध हथियार जमा करने का कार्य काफी समय पहले ही आरंभ कर दिया गया होगा। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि बनभूलपुरा थाना के ऐन नाक के नीचे दंगाइयों ने प्रशासनिक अमले को घेर कर हताहत कर देने एवं जान से मार देने की ऐसी खतरनाक तैयारी कर ली और प्रशासन को इसकी भनक क्यों कर नहीं लगी ? स्पष्ट है कि शासन-प्रशासन का खुफिया सूचना तंत्र स्थिति की भयावता एवं दंगाइयों की दंगा पूर्व तैयारी की ‘टोह’ लेने में पूरी तरह असफल रहा । लिहाजा इसे शासन-प्रशासन के खुफिया तंत्र का फेलियर कहना तनिक भी अतिशयोक्ति पूर्ण ना होगा। वह इसलिए क्योंकि पिछले 1 वर्ष से बनभूलपुरा के आसपास का क्षेत्र पूरी तरह लगातार अशांत चला आ रहा है। ऐसे में शासन-प्रशासन को चाहिए था कि वह है अपने खुफिया सूचना तंत्र को और भी कारगर बनाकर रखता तथा असामाजिक तत्वों की हर गतिविधि एवं षडड्त्र की हर जानकारी समय रहते अपने पास पहुंचना सुनिश्चित करता। साफ है कि ऐसा नहीं हो सका और हल्द्वानी का हाहाकार आज सबके सामने है। खास बात तो यह है कि हल्द्वानी दंगा उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक पास होने के एक दो दिन बाद ही अंजाम दिया गया है, लिहाजा जांच में इस एंगल से भी तहकीकात की जानी चाहिए की कहीं यह दंगा यूसीसी लागू किए जाने पर समुदाय विशेष की प्रतिक्रिया तो नहीं ? वैसे हल्द्वानी दंगों के बाद, सोशल मीडिया पर उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक पास होने के ठीक दो-चार दिन पहले समुदाय विशेष के लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर की गई, कई पोस्ट अब जमकर वायरल हो रही है। देखा जाए तो सोशल मीडिया में वायरल इन पोस्टों में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपरोक्ष रूप से चुनौती देना एवं समुदाय विशेष के लोगों के लिए एक प्रयोजन विशेष के लिए तैयार रहने का अप्रत्यक्ष संदेश साफ अंतरनिहित है। जाहिर है कि शासन- प्रशासन का सोशल मीडिया निगरानी तंत्र, यूसीसी के विधानसभा में प्रस्तुत होने के कुछ दिनों पहले और विधानसभा से पास होने के बाद, जितना सतर्क और सक्रिय रहना चाहिए था उतना सतर्क और सक्रिय नहीं रहा। ज्ञात हो कि समान नागरिक संहिता विधेयक उत्तराखंड विधानसभा में प्रस्तुत होने के पूर्व सुबह के तकरीबन सभी जिले के एसएसपी द्वारा गड़बड़ी फैलाने वालों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करने की चेतावनी एक भर जारी कर दी गई थी। जबकि होना तो यह चाहिए था कि पुलिस विभाग अपने सूचना तंत्र से समान नागरिक संहिता विधेयक पास होने के बाद समुदाय विशेष की प्रतिक्रिया का फीडबैक हासिल करता और उन संवेदनशील इलाकों को चिन्हित करने का प्रयास करता जहां गड़बड़ी की संभावना हो सकती थी। हालांकि हल्द्वानी में उपद्रव के बाद वहां के जिलाधिकारी का एक बयान सामने आया है, जिसमें इंटेलिजेंस फेलियर पर पर्दा डालने की कोशिश की गई है, लेकिन वास्तविक स्थिति तो दंगों की संपूर्ण जांच के बाद ही सामने आ पाएगी ।