कैसे बनेगी कार्ययोजना: उत्तराखंड में पालतू एवं आवारा कुत्तों संबंधी आंकड़े उपलब्ध नहीं
रूद्रपुर। नगर निगम का प्रशासनिक नियंत्रण जन प्रतिनिधियों के हाथ से निकलकर प्रशासनिक हाथों पर पहुंचने के बाद, यह उम्मीद जगी थी कि शायद नगर निगम अब जनहित के मुद्दों पर त्वरित निर्णय लेकर तत्काल असरकारक कार्यवाही करना आरंभ करे, लेकिन ऐसा लगता है जैसे नगर निगम के वर्तमान प्रशासनिक प्रभारी की कार्य इच्छा शक्ति निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से भी लचर है । कदाचित यही कारण है कि नगर निगम जन सामान्य पर पालतू एवं आवारा कुत्तों के बढ़ते संकट को लेकर अभी तक हरकत में नहीं आ पाया है, जबकि राज्य सरकार द्वारा रुड़की में पिटबुल के हमले में महिला की मौत के बाद ही आवश्यक दिशा जारी कर दिए गए है। यह अलग बात है कि राज्य सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देश भी उत्तराखंड में दिनों दिन बढ़ रही पालतू कुत्तों को लापरवाही पूर्ण तरीके से खुला छोड़ने की प्रवृत्ति एवं आवारा कुत्तों की बढ़ती गुणात्मक संख्या की विकराल समस्या का कोई संतोषजनक एवं तात्कालिक हल प्रस्तुत करती नहीं दिखती। बल्कि ऐसा जान पड़ता है जैसे नागरिकों पर आवारा एवं लापरवाही पूर्ण ढंग से खुला छोड़ दिए गए पालतू कुत्तों के जानलेवा आक्रमण के बाद दायित्वाधिकारियों द्वारा कई तरह के प्रयोग किए जाएंगे और कई तरह के प्रयोग के बाद जाकर कहीं कोई निरोधात्मक उपाय अमल में लाया जाएगा। रुड़की में पिटबुल के जानलेवा हमले के परिणाम स्वरूप महिला की मौत के बाद शहरी विकास विभाग के निदेशक नितिन भदौरिया द्वारा जारी एसओपी के अनुसार खूंखार कुत्तों से जुड़ी शिकायतों की सुनवाई के लिए उत्तराखंड के सभी निकायों में एनिमल बर्थ कंट्रोल मॉनिटरिंग कमेटी बनाई जाएगी। यह कमेटी खूंखार कुत्तों के काटने की शिकायतों की जांच करेगी। इस दौरान शिकायतकर्ता की जानकारी दर्ज करने के साथ ही उस क्षेत्र का दौरा किया जाएगा। कुत्ते के काटने की पुष्टि के बाद डॉग स्क्वायड कुत्ते को पकड़ेगी और उसे सात दिन निगरानी में रखेगी।इसके बाद भी कुत्ते के काटने का खतरा लगता है तो उसे कुछ और समय को निगरानी में रखा जाएगा।तीन हफ्ते की निगरानी के बाद भी समिति को लगता है कि कुत्ते के काटने का खतरा बरकरार है, तो उसे मूल स्थान पर नहीं छोड़ा जाएगा।उसे चिकित्सा के साथ फिर दो माह निगरानी में रखा जाएगा।यह तय होने के बाद ही कि कुत्ते में पूरा सुधार हो गया है, उसे मूल स्थान पर छोड़ा जाएगा ।स्पष्ट है कि स्थानीय निकायों में बनाई जाने वाली एनिमल बर्थ कमेटी अपना ध्यान और समय केवल हमला करने वाले कुत्तों के सुधार पर लगाएगी और हमलावर कुत्ते के पालतू होने की स्थिति में कुत्ता पालने वाले पर क्या कार्यवाही की जाएगी ? इस पर शहरी विकास विभाग द्वारा जारी दिशा निर्देश पूरी तरह मौन है। कुछ अरसा पूर्व सुनने में आया था कि स्थानीय निकायों द्वारा कुत्ता पालने के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य करने की कार्य योजना बनने पर विचार किया जा रहा है, लेकिन इस तरह का कोई विचार ,आम जन पर कुत्तों के जानलेवा हमले की खबरें सामने आने के बावजूद भी, धरातल पर किसी नियम अथवा कानून का स्वरूप लेता नहीं दिखाई पड़ रहा है। बात रुद्रपुर नगर निगम की करें तो निगम के पास ना तो शहर के आवारा कुत्तों की संख्या की कोई जानकारी ही है और ना ही निगम में आवारा कुत्तों को रेबीज का टीका लगे होने अथवा ना लगे होने संबंधी कोई आंकड़ा उपलब्ध है। और तो और, रुद्रपुर नगर निगम में इस संबंध में भी कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है कि नगर निगम सीमा के अंतर्गत खतरनाक प्रजाति के कितने पालतू कुत्ते हैं और उन्हें रेबीज का टीका लगा भी है अथवा नहीं। ऐसे में इस बात की अपेक्षा बेमानी है कि नगर निगम में एनिमल बर्थ कंट्रोल जैसी कोई प्लानिंग फाइलों में कहीं कोई आकर ले रही होगी। देखने में आया है कि रुद्रपुर नगर निगम क्षेत्र में आवारा कुत्तों की संख्या में गुणात्मक वृद्धि तो दर्ज की ही जा रही है साथ ही कुत्ता पालन संबंधी किसी नियम के अभाव में कुत्ता पालकों द्वारा पालतू कुत्तों को लापरवाही पूर्ण ढंग से खुला छोड़ देने की प्रवृत्ति भी अपने चरम पर है। बताने की जरूरत नहीं की फलों द्वारा लापरवाही पूर्ण ढंग से छोड़ दिए गए पालतू और शहर के लगभग हर चौराहे पर मौजूद आधा दर्जन से अधिक आवारा कुत्ते आए दिन जन सामान्य पर जानलेवा हमला करते रहते ही रहते हैं साथ ही नगर की सफाई व्यवस्था पर भी एक प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं । बहरहाल निकट भविष्य में यह देखना दिलचस्प रहेगा की शहर वासियों पर मंडरा रहे आवारा एवं लापरवाही पूर्ण छोड़ दिए जाने वाले पालतू कुत्तों के खतरे पर अब तक उदासीन ,नगर निगम शहरी विकास निदेशालय द्वारा जारी दिशा निर्देश के बाद कोई कारगर कदम उठाता है अथवा नहीं?