‘महारैली’ से निपटने के लिए ‘धामी’ की ‘चतुर चाल’

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भू-कानून एवं मूल निवास मसले पर उच्च स्तरीय समिति के गठन की घोषणा कर एक तीर से साधे कई निशाने
राजनीतिक लाभ लेने के कांग्रेसी मंसूबे पर फेरा पानी,
भाजपा के खिलाफ बनने वाले नकारात्मक परसेप्शन की निकाली हवा

रूद्रपुर। पिछले कुछ समय से सूबे के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देश विदेश में रोड-शो आयोजित करने एवं इन्वेस्टर मीट्स आयोजन के उपरांत, उत्तराखंड के लिए भारी मात्रा में निवेश अर्जित करके आर्थिक रूप से सशक्त उत्तराखंड के निर्माण की दिशा में एक माइलस्टोन स्थापित करके मुख्यमंत्री के रूप में अपनी प्रतिभा का लोहा तो मनवाया ही है, साथ ही उन्होंने नवंबर माह में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारक के रूप में अपना उल्लेखनीय योगदान देकर अपने कद को भी काफी बड़ा किया है। इसके साथ ही उत्तराखंड के युवा मुख्यमंत्री अब अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ एवं चतुर चाल से भारतीय जनता पार्टी एवं राज्य सरकार को भविष्य में असहज कर सकने वाले किसी भी परसेप्शन के आकार लेने से पहले ही उसकी हवा ही निकाले दे रहे हैं। बताना होगा कि जैसे-जैसे आम चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे उत्तराखंड में मूल निवास एवं सशक्त भू कानून का मसला एक बार फिर गरमाने लगा है और इसी मसले को प्रांत व्यापी आकार देने के लिए आगामी 24 दिसंबर को राजधानी देहरादून में एक स्वाभिमान रैली का आयोजन भी किया जा रहा है। स्वाभिमान रैली का संयोजन उत्तराखंड का प्रबुद्ध समाज, लोक कलाकार, कविगण एवं नागरिक समाज के कद्दावर लोग कर रहे हैं । विगत दिनों उत्तराखंड के लोकप्रिय लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने भी उक्त स्वाभिमान रैली में राज्य के लोगों से प्रतिभाग करने की अपील कर इस आयोजन को लाइम लाइट में ला दिया है और उसके बाद इसका राजनीतिक फायदा लेने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने भी स्वाभिमान रैली को तथा नरेंद्र सिंह नेगी द्वारा उठाए गए कदम को अपना समर्थन तुरंत ही दे दिया, लेकिन सूबे के मुखिया पुष्कर सिंह धामी ने भू- कानून एवं मूल निवास मसले पर एक उच्च स्तरीय समिति के गठन के घोषणा की। अपनी चतुर चाल द्वारा मूल निवास स्वाभिमान रैली का राजनीतिक फायदा लेने के कांग्रेस के मंसूबे पर तो पानी फेर ही दिया, साथ ही उन्होंने उपरोक्त महारैली के परिणाम स्वरूप भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ बनने वाले संभावित नकारात्मक परसेप्शन को भी काफी हद तक कम कर दिया है। स्मरण करना होगा कि उत्तराखंड में राज्य स्थापना के बाद से ही हिमाचल की तर्ज पर सशक्त भू-कानून लागू की मांग उठने लगी थी।इसी क्रम में सबसे पहले 2002 में सरकार की तरफ से प्रावधान किया गया कि राज्य के भीतर अन्य राज्य के लोग सिर्फ 500 वर्ग मीटर की जमीन ही खरीद सकते हैं। इस प्रावधान में 2007 में एक संशोधन कर दिया गया और 500 वर्ग मीटर की जगह 250 वर्ग मीटर की जमीन खरीदने का मानक रखा गया। लेकिन 6 अक्टूबर 2018 को भाजपा की तत्कालीन सरकार ने संशोधन करते हुए नया अध्यादेश प्रदेश में लाने का काम किया। अध्यादेश में उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश और भूमि सुधार अधिनियम 1950 में संशोधन करके दो और धाराएं जोड़ी गई। जिसमें धारा 143 और धारा 154 के तहत पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को ही समाप्त कर दिया गया। यानी राज्य के भीतर बाहरी लोग जितनी चाहे जमीन खरीद सकते हैं। राज्य सरकार का मानना था कि इस नियम में संशोधन करने के बाद राज्य में निवेश और उद्योग को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन अब सरकार के इस फैसले का विरोध होने लगा है। इसके साथ ही राज्य में मूल निवास की अर्हता 1950 करने की मांग की गई है अर्थात 1950 से राज्य में रह रहे लोगों को ही स्थाई निवासी माने जाने की मांग उठ रही है। बताने की जरूरत नहीं की इस मांग को अपना समर्थन देकर कांग्रेस अपनी राजनीतिक रोटी सेकने और यह भ्रम फैलाने के प्रयास में है कि भारतीय जनता पार्टी ने 2018 में राज्य में औद्योगिक प्रयोजन के लिए जमीन खरीदने की सीमा को समाप्त करके पहाड़ की जमीन को खुर्द-बुर्द करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। कांग्रेस नेता हरक सिंह रावत द्वारा इस संबंध में जारी किए गए ताजा बयान से कांग्रेस के इरादों का पता भली भांति चल जाता है। कांग्रेस नेता के अनुसार जब वह सत्ता में थे तो उनकी सरकार में भू कानून और मूल निवास को लेकर जो बिल पेश हुआ था ,वह एक बड़ा मजबूत बिल था। अगर वह बिल वर्तमान समय में प्रभावी होता, तो आज राज्य में इस तरह की मांग उठाने की नौबत ना आती । कुल मिलाकर सूबे के मुखिया पुष्कर सिंह धामी ने मूल निवास एवं भू अधिकार मसले पर उच्च स्तरीय समिति के गठन की घोषणा करके, उपरोक्त मसले पर कांग्रेस के राजनीतिक लाभ लेने के मंसूबों पर पानी फेरने एवं स्वाभिमान रैली के परिणाम स्वरूप उनकी सरकार और पार्टी के विरुद्ध बनने वाले संभावित नकारात्मक परसेप्शन को कुछ हद तक कम करने में वक्ती सफलता जरुर हासिल कर ली है, पर उन्हें इस मसले का जनस्वीकार्य हल शीघ्र ही निकलना होगा।

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