क्या ‘रुद्रपुर के रहनुमाओं’ को कभी माफ कर पाएगा ‘गांधी पार्क’, अब अस्तित्व पर भी लटकी तलवार

0

जिला प्रशासन द्वारा गांधी पार्क की शिफ्टिंग के लिए तैयार किए गए 60 करोड़ के डीपीआर का प्रस्ताव भेजने से सियासी हलचल,तीन मंजिला पार्किंग स्थल का निर्माण किया जाएगा
रूद्रपुर। मिनी इंडिया के नाम से विख्यात रुद्रपुर शहर के सांस्कृतिक, राजनीतिक सामाजिक आर्थिक एवं खेलकूद सहित तमाम विविध आयोजनों का इतिहास अपने आप में समेटे तथा नगर के रहवासियों की भावनाओं से सदैव गहरे आबद्ध रहे आए शहर के इकलौते खुले स्थान ‘गांधी पार्क’ पर अब अस्तित्व का संकट मंडराने लगा है। उधम सिंह नगर जिला प्रशासन के ग्रामीण विकास विभाग द्वारा गांधी पार्क की शिफ्टिंग के लिए तैयार किए गए 60 करोड़ के डीपीआर का प्रस्ताव, जिला विकास प्राधिकरण को अग्रेषित किए जाने संबंधी खबर को अगर सच मानें तो अब गांधी पार्क को रामपुर नैनीताल हाईवे की परली तरफ स्थित,सिंचाई विभाग के भूखंड में स्थानांतरित कर सेंट्रल पार्क के रूप में विकसित किया जाएगा और जिस भूखंड पर अभी वर्तमान में गांधी पार्क स्थित है उसमें एक तीन मंजिला पार्किंग स्थल का निर्माण किया जाएगा, साथ ही इस पार्किंग के नीचे 84 दुकान भी निर्मित की जाएगी। कहा जा रहा है कि प्रस्तावित मल्टी कार पार्किंग में तीन सैकड़ा से अधिक कार पार्क की जा सकेगी। शहर के हृदय स्थल में स्थित रुद्रपुर के प्राचीन एवं इकलौते पार्क का स्वरूप परिवर्तित कर इसे कंक्रीट के पहाड़ में परिवर्तित करने से किसको, कितना फायदा होगा और गांधी पार्क में बनाई जाने वाली दुकानें, किन शर्तों पर किसको और कितनी रकम की एवज में आवंटित की जाएगी? इस बहस में पड़े बिना सबसे पहले इस तथ्य पर विचार करते हैं कि मौजूदा गांधी पार्क के सिंचाई विभाग के भूखंड में शिफ्रट हो जाने के पश्चात अस्तित्व में आने वाले, तथाकथित सेंट्रल पार्क का उपयोग उतना ही मल्टीपल होगा, जितना की वर्तमान गांधी पार्क का है? बताने की जरूरत नहीं कि रुद्रपुर शहर में कोई अन्य बड़ा खुला मैदान अथवा स्तरीय ऑडिटोरियम न होने के कारण रुद्रपुर की तमाम राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक ,आर्थिक एवं खेलकूद संबंधी गतिविधियां गांधी पार्क में ही आयोजित की जाती है। जाहिर है कि प्रस्तावित सेंट्रल पार्क में ऐसी गतिविधियों का आयोजन संभव नहीं होगा। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि भविष्य में ऐसे बड़े आयोजनों के लिए रुद्रपुर वासियों के समक्ष क्या विकल्प होगा और क्या प्रस्तावित सेंट्रल पार्क में वैसा ही खुलापन महसूस हो सकेगा ,जैसा कि गांधी पार्क में अनुभूत होता है? जाहिर है कि फिलहाल इसकी संभावना तनिक भी दिखाई नहीं देती। तो बड़ा सवाल यह है कि जब गांधी पार्क की शत प्रतिशत वैकल्पिक व्यवस्था करना नीति नियंताओं के बूते की बात नहीं है, तो वे ऐसा अहमकना कदम उठाने पर क्यों आमदा है? ऐसा लगता है जैसे नीति नियंताओं ने उत्तराखंड के पहाड़ी अंचलों में किए गए विवेकहीन विकास के दुष्परिणामों से कोई भी सबक नहीं लिया है और वे पहले जैसी ही विवेक हीनता, रुद्रपुर के गांधी पार्क में भी दोहराने की कोशिश कर रहे हैं। हो सकता है कि आगे चलकर गांधी पार्क की शिफ्रिटंग के पीछे सक्रिय, तत्वों की ओर से यह तर्क आमजन के सामने लाया जाए की जब गांधी पार्क के बदले में एक बेहतर सेंट्रल पार्क विकसित करके दिया जा रहा है तो इसमें गलत क्या है? अब इन लोगों को यह बात कौन समझाए की गांधी पार्क से शहर वासियों का एक भावनात्मक रिश्ता है, जो कि प्रस्तावित सेंट्रल पार्क से शायद ही कभी स्थापित हो पाए। गांधी पार्क के अस्तित्व पर आज जो खतरा मंडरा रहा है वह अचानक ही सामने नहीं आ गया है, बल्कि पिछले कई वर्षों से इसकी कोशिश पर्दे के पीछे जारी थी। बड़ी विडंबना तो यह है कि रुद्रपुर के आज के रहनुमा जो कि कभी गांधी पार्क के मूल स्वरूप को बनाए रखने के लिए कुछ भी कर गुजरने की बात किया करते थे, आज वे ही गांधी पार्क को तहस-नहस करने के मुख्य सूत्रधार के रूप में सामने आ रहे हैं। देखा जाए तो गांधी पार्क के अस्तित्व पर मंडराता संकट और अब तक हुई इसकी घोर उपेक्षा किसी एक रहनुमा की बदनियति का परिणाम नहीं है, बल्कि इसके लिए रुद्रपुर शहर के तमाम राजनेता समाजसेवी, स्वयंभू व्यापारी नेताओं के साथ-साथ आमजन भी समान रूप से भागीदार हैं ,क्योंकि रुद्रपुर के रहनुमाओं ने कभी भी गांधी पार्क के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन गंभीरता से नहीं किया। दरअसल गांधी पार्क को एक आदर्श पार्क के रूप में विकसित करने की ईमानदार कोशिश कभी नहीं की गई ।गांधी पार्क के सौंदर्य करण के नाम पर आज तक कई करोड़ के वारे-न्यारे कर दिए गए, लेकिन पार्क के हालात जस के तस रहे आए। उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनाव के बाद से आज तक रुद्रपुर को तिलक राज बेहड़ ,राजकुमार ठकुराल, शिव अरोरा, मीना शर्मा, सोनी कोली एवं रामपाल सिंह जैसे प्रतिनिधि मिले, लेकिन रुद्रपुर के किसी भी रहनुमा ने गांधी पार्क की दशा दिशा में सुधार के लिए कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया। कोई आयोजन होने से पहले पार्क की साफ सफाई कर दी जाती और आयोजन के बाद पार्क, दोबारा पार्किंग और आवारा तत्वों तथा नशेड़ियों का अîóा बनकर रह जाता। कोविड के पहले गांधी पार्क में कई बड़े व्यापार मेले लगे ,राजनीतिक दालों के छोटे- बड़े कार्यक्रम भी हुए, दशहरा उत्सव एवं खाटू श्यामजी का दरबार जैसे बड़े धार्मिक कार्यक्रम भी लगातार होते रहे तथा इन कार्यक्रमों से जुड़े शहर के कई नामी- गिरामी लोग गांधी पार्क आए ,लेकिन किसी ने भी इसकी दशा दिशा बदलने की फिक्र नहीं की। कुल मिलाकर गांधी पार्क के हिस्से बदहाली ही आई और अब तो इस पर अस्तित्व का संकट भी आन खड़ा हुआ है। मजे की बात तो यह है कि समय-समय पर गांधी पार्क में वृक्षारोपण का ढोंग सैकड़ो दफे किया गया, लेकिन यह बदनसीब पार्क आज तक हरा भरा नहीं हो सका ।सो, ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि अपना वजूद खो देने की स्थिति में, क्या गांधी पार्क रुद्रपुर के रहनुमाओं को कभी माफ कर पाएगा?
तिलक राज बेहड़: कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं पूर्व मंत्री। लगातार 10 वर्ष रुद्रपुर- किच्छा विधान सभा सदस्य के रूप में रुद्रपुर शहर के प्रतिनिधि रहे। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रहने के दौरान अपने कार्यकाल में शहर को कई यादगार तोहफे दिए। चाहते तो गांधी पार्क को मुगल गार्डन जैसा बना देते, लेकिन गांधी पार्क के लिए कुछ विशेष नहीं कर सके।
राजकुमार ठुकरालः पहले रुद्रपुर नगर पालिका के अध्यक्ष और बाद में वर्ष 2012 से वर्ष 2022 तक रुद्रपुर विधानसभा सीट से दो बार विधायक रहे। अपने कार्यकाल में कई इलाकों में सड़कों का जाल बिछाया, गांधी पार्क में उत्तराखंड का सबसे ऊंचा राष्ट्रीय ध्वज स्थल तो निर्मित कराया,लेकिन गांधी पार्क की दशा दिशा सुधारने की कभी फिक्र नहीं की।
शिव अरोराः रुद्रपुर विधानसभा सीट से वर्तमान विधायक एवं गांधी पार्क की शिफ्रिटंग के प्रमुख सूत्रधार। लोहिया मार्केट के उजाड़े जाते समय रहस्यमय चुप्पी साधी रहे। रूद्रपुर का नये विजन के साथ विकास का दावा करने वाले एवं अति शिक्षित होने के बावजूद गांधी पार्क से रुद्रपुर वासियों के भावनात्मक लगाव से अभी तक अनजान।
मीना शर्मा: वर्तमान में महिला कांग्रेस की वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष एवं नगर पालिका की चेयरपर्सन रही। अपने कार्यकाल में कुछ चौराहों के चौड़ीकरण के उल्लेऽनीय प्रयास किए। पूरे कार्यकाल में प्रचार प्रसार पर नगर पालिका का पैसा पानी की तरह बहाया ,लेकिन गांधी पार्क के उन्नयन की दिशा में कोई माइलस्टोन नहीं स्थापित कर सकी।
सोनी कोलीः नगर निगम रुद्रपुर की पहली मेयर ।आरक्षण का लाभ लेकर कुर्सी तक पहुंची। पूरे कार्यकाल में अपने राजनेता पति का रबर स्टैंप होने की धारणा को तोड़ने की कोशिश में लगी रही। गांधी पार्क के गेट का ताला खुलवाने और बंद करवाने की व्यवस्था में ही सारा कार्यकाल निकल गया। पार्क को हरा भरा बनाने की कभी कोशिश नहीं की।
रामपाल सिंहः गांधी पार्क की शिफ्रिटंग की पृष्ठभूमि तैयार करने में क्षेत्रीय विधायक के खास सहयोगी। लोहिया मार्केट के विध्वंस में दोहरी भूमिका का निर्वाह । अपने कार्यकाल के दौरान गांधी पार्क में तकरीबन सैकड़ा भर आयोजनों में फीता काटने पहुंचे, मगर पार्क की सफाई एवं पार्क के सौंदर्यीकरण का प्रस्ताव पारित करने से ज्यादा और कुछ नहीं कर सके।

Leave A Reply

Your email address will not be published.