रूद्रपुर के रिहायशी इलाके में लगातार स्थापित हो रहे हैं प्लास्टिक के गोदाम
प्रदूषण एवं दुर्गंध से सांस लेना हुआ मुश्किल, बढ़ रही है सांस संबंधी दिक्कतें
– अर्श-
रूद्रपुर। आमतौर पर जब रुद्रपुर महानगर के संदर्भ में जन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक प्रदूषण का जिक्र किया जाता है, तो हमारी नजर में कल्याणी नदी के तट पर स्थित ‘कूड़े का पहाड़’, जिसको समाप्त करने के तमाम दावे किए गए लेकिन वह आज तक शहर के सीने पर किसी नासूर की तरह बदस्तूर कायम है, का अक्स बन जाता है। मगर मगर आज हम अपने पाठकों को शहर के दामन पर किसी कोढ़ की तरह फैलते जा रहे, प्लास्टिक गोदाम से उत्पन्न प्रदूषण, जो कि कल्याणी नदी के तट पर मौजूद ‘कूड़े के पहाड़’ की भांति ही जन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ,से अवगत कराने जा रहे हैं। काबिले गौर है कि जिला मुख्यालय के ऐन नाक के नीचे किच्छा रोड स्थित मेडिसिटी हॉस्पिटल के ठीक पीछे कुछ ही समय में देखते ही देखते तकरीबन दो दर्जन की संख्या प्लास्टिक के कई गोदाम स्थापित हो गई हैं। इन गोदामों में मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए की दृष्टि से खतरनाक प्लास्टिक का खुले आसमान के नीचे भंडारण तो किया ही गया है, साथ ही इन गोदाम के मालिकों द्वारा आसपास के क्षेत्र में प्लास्टिक का कचरा भी लगातार फैलाया जा रहा है। इस कचरे में अक्सर ही आग लगी रहती है और इससे तकरीबन हर समय धुआं उठता रहता है। जिससे वायु प्रदूषण की स्थिति गंभीर होती जा रही है। स्थानीय रह वासियों का कहना है कि कभी -कभी तो कचरे में आग अपने आप ही लग जाती है और कभी गोदाम के कर्मचारियों द्वारा लगा दी जाती है। प्लास्टिक का कचरा जलने से उठने वाले धुएं के कारण आसपास रहने वाले लोगों में सांस संबंधी समस्याएं भी देखने को मिल रही हैं। बताया जाता है कि उपरोत्तफ सभी प्लास्टिक गोदामें कृषि भूमि पर अवैध रूप से निर्मित की गई है ,जिनमें प्लास्टिक का अवैध कारोबार निरंतर फल फूल रहा है और गोदाम की संख्या भी साल दर साल लगातार बढ़ती ही जा रही है ।अगर इन गोदाम की संख्या ऐसे ही बढ़ती रही, तो एक दिन इस क्षेत्र की हालत भी कल्याणी नदी के तट पर स्थित कचरे के पहाड़ के जैसी भयावह और जानलेवा हो जाएगी। हैरत की बात तो यह है कि जन स्वास्थ्य एवं प्रकृति दोनों के लिए के लिए ही प्लास्टिक कचरे के बेहद खतरनाक होने का तथ्य सर्व विदित होने के बावजूद भी, नगर के रिहायशी इलाके में लगातार हो रहे प्लास्टिक के इस जानलेवा जमाव के पर हाकिमों की आंखें पूरी तरह बंद है ।क्या जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन? क्या पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण विभाग और क्या नगर निगम? सभी की उदासीनता इस मामले में तकरीबन एक जैसी ही है ।प्लास्टिक के इन अवैध गोदामों में कई बार भीषण आग लगने की घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं पर जिले का अग्निशमन विभाग इस पूरे मामले का कोई संज्ञान ले रहा है और जिले का प्रदूषण नियंत्रण विभाग को तो जैसे इसकी भनक तक नहीं है। कहा जाता है की इन गोदामों में काम करने वाले ज्यादातर मजदूरों का पुलिस वेरिफिकेशन भी नहीं हुआ है। शायद यही कारण है कि इन गोदामों के मालिकों और मजदूरों के हौसले पूरी तरह बुलंद है और वह स्थानीय लोगों द्वारा धुएं के द्वारा प्रदूषण न फैलाने की बात कहने पर मारपीट और धमकी पर आमादा होने से भी बाज नहीं आते। इसके अतिरित्तफ इन गोदामों के मालिकों की गतिविधियां भी संदिग्ध है और इस बात का पता लगाना खासा मुश्किल है कि संबंधित गोदाम का मालिक कौन है ?। बताना होगा कि पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने और बढ़ते प्रदूषण पर काबू पाने के दृष्टिगत बड़े पैमाने पर प्लास्टिक के भंडारण पर सरकारी प्रतिबंध है। बावजूद इसके इन अवैध गोदामों में पालीथिन और प्लास्टिक का भंडारण धड़ल्ले से हो रहा है । इन गोदामों के आस-पास फैले कचरे से जहां एक तरफ आसपास के नाला नाली चोक हो रही हैं,वहीं दूसरी तरफ इन गोदाम से उठते धुएं के कारण आसपास के क्षेत्र में हमेशा वायु प्रदूषण की स्थिति बनी रहती है, जिससे लोगों का सांस लेना भी दूभर रहता है ।इतना ही नहीं, प्लास्टिक के इन अवैध गोदामों में आग बुझाने के कोई इंतजाम भी नहीं है, लिहाजा इन गोदामों में दुर्घटनावश कभी आग लगने की स्थिति में आसपास की बिल्डिंगों में भी आग फैलने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता ।