केवल चुनावी जुमला बनकर रह गया नए जिलों का गठन: ‘पंद्रह’ वर्षों में एक कदम भी नहीं चल सका ‘उत्तराखंड’
बैठकों के अलावा कुछ और नहीं कर सके नए जिलों के गठन के लिए बनाए गए आयोग और समितियां
-अर्श-
रूद्रपुर। नए जिलों के गठन की डगर उत्तराखंड के लिए आज तक इतनी कठिन साबित हुई है कि उत्तराखंड पिछले पंद्रह सालों में इस डगर पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाया है। जिलों के गठन के लिए बनाए गए आयोग और समिति पिछले पंद्रह सालों में केवल बैठक ही करते रह गए ,लेकिन उत्तराखंड में किसी नए जिले का गठन औपचारिक रूप से आज तक नहीं हो पाया। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त एक सूचना के अनुसार उत्तराखंड में नए जिलों के गठन के लिए बनाए गए आयोग और समिति की अब तक तकरीबन 10 से अधिक बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन नए जिलों के गठन का नतीजा अब तक सिफर ही रहा है। राज्य में नए जिलों के गठन की दिशा में अब तक हुए प्रयासों पर नजर डालें तो वर्ष 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ। रमेश पोखरियाल निशंक के कार्यकाल में चार नए जिलों के गठन की अधिसूचना अवश्य जारी की गई थी, लेकिन राज्य में नए जिलों के गठन के लिए प्रयास वर्ष 2009 से ही शुरू हो चुके थे। वर्ष 2009 में मुख्य राजस्व आयुक्त की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई थी, लेकिन यह समिति इस दिशा में कुछ खास नहीं कर सकी। उसके बाद वर्ष 2012 में अध्यक्ष राजस्व परिषद की अध्यक्षता में दोबारा समिति बनाई गई। आगे चलकर वर्ष 2018 में जिला पुनर्गठन आयोग बना दिया गया तथा समिति को प्रस्ताव पर विचार कर उसकी रिपोर्ट आयोग को देने के कहा गया। नए जिलों के गठन के संबंध में राजस्व परिषद से प्राप्त सूचना के मुताबिक, 23 जनवरी 2013 को आयुक्त गढ़वाल की अध्यक्षता में गठित समिति की बैठक से शुरुआत हुई और बैठकों के दौर चलते रहे । वर्ष 2011 में कोटद्वार, यमुनोत्री, रानीखेत और डीडीहाट को जिला बनाने का निर्णय हुआ। इसके लिए गढ़वाल और कुमाऊं आयुक्त के माध्यम से तय मानकों के हिसाब एक प्रक्रिया निर्धारित की गई। मसलन यमुनोत्री की तब 1,38,559 प्रस्तावित आबादी तय हुई। जिसमें तीन तहसील, तीन विकासखंड, दो थाने व 45 पटवारी क्षेत्र थे तथा कोटद्वार में 324122 आबादी का प्रस्ताव था, जिसमें पांच तहसील, छह ब्लाक, सात थाने व 109 पटवारी क्षेत्र शामिल थे। दूसरी ओर रानीखेत में 328621 की आबादी का प्रस्ताव था, जिसमें पांच तहसील, छह ब्लाक, चार थाने, व 120 पटवारी क्षेत्र और डीडीहाट में 152227 की आबादी, तीन तहसील, तीन ब्लाक, नौ थाने व 54 पटवारी क्षेत्र प्रस्तावित किए गए। वर्ष 2017 में तत्कालीन हरीश रावत सरकार ने चार और नए जिलों की कसरत शुरू कर दीऔर इस सूची में काशीपुर, ऋषिकेश, रुड़की, रामनगर के नाम भी शामिल हो गए। हालांकि, इनमें राजस्व परिषद की ओर से सिर्फ काशीपुर को जिला बनाने का प्रस्ताव किया गया था ,लेकिन तत्कालीन सरकार ने सर आन पड़े विधानसभा चुनाव में लाभ लेने के लिए ऋषिकेश ,रुड़की और रामनगर को भी जिला बनाने की घोषणा कर दी। यह अलग बात है कि विधानसभा चुनाव में हरीश रावत सरकार की वापसी नहीं हो पाई और नए जिलों के गठन का मसाला केवल चुनावी जुमला ही बनकर रह गया। कुल मिलाकर नए जिलों के प्रस्तावों की संख्या बेशक आठ हो गई, लेकिन सरकार एक भी नहीं बना पाई। कहने की जरूरत नहीं कि नए जिलों के गठन का मुद्दा केवल एक सियासी शिगूफा बनकर रह गया। हालांकि नए जिलों का मसला बाद के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भी प्रमुखता से गरमाया पर नतीजा पहले जैसा ही रहा। आगे चलकर इस सूची में ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण भी शामिल हो गया ।यद्यपि सत्ता की कमान संभालने के बाद सीएम धामी ने नए जिलों के गठन की घोषणा कर कुछ उम्मीद जगाई थी, परंतु शासन के स्तर पर कोई विशेष हलचल नहीं हो पाई और अब ऐसा जान पड़ता है जैसे युवा मुख्यमंत्री का उत्तराखंड में नए जिले बनाने का युवा जोश भी ठंडा-सा पड़ गया है।