‘मदरसा माफियाओं’की कठपुतली बनी ‘नौकरशाही’?

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मुख्यमंत्री के आदेश के बावजूद पूरी नहीं की जा रही मदरसों की जांच
अर्श
रूद्रपुर। उत्तराखंड निर्माण के बाद यद्यपि उधम सिंह नगर जिले के प्रशासन के स्वरूप में कई आमूल- चूल परिवर्तन देखने में आए हैं, लेकिन तमाम प्रशासनिक सुधारो के बावजूद जिले की नौकरशाही का चरित्र एवं कार्यशैली एवं प्रशासनिक कामकाज संपादित करने की रफ्तार आज भी कमोबेश परंपरागत ही है । ऐसा लगता है जैसे जिले की नौकरशाही ने ‘नौ दिन चले अढ़ाई कोस’ वाली कहावत को अपनी कार्यशैली में पूरी तरह आत्मसात कर रखा है । जिले की नौकरशाही की मनमर्जी एवं कार्य संपादन की सुस्त रफ्तार का आलम इन दिनों कुछ ऐसा है कि उधम सिंह नगर के हाकिम कई बार तो नौ दिन में अढ़ाई कोस चलते भी नहीं नजर आते। नौकरशाहों की बेहद सुस्त कार्यशैली का जीता जागता नमूना हाल ही में उधम सिंह नगर जिले में संचालित 113 मदरसों की जांच के संबंध में देखने को मिला है। बताना होगा कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उधम सिंह नगर जिले सभी ब्लॉकों में संचालित मदरसों की सूक्ष्म जांच करने के आदेश दिए थे। मुख्यमंत्री का आदेश आज से लगभग 3 माह पूर्व जिला मुख्यालय को प्राप्त हुआ था। आगे चलकर आदेश के अनुपालन का दायित्व जिला अल्पसंख्यक विभाग को सौंपा दिया गया और अल्प संख्यक विभाग ने मद्रास की जांच का भार सातों ब्लॉक के बीडीओ एवं बीइओ पर डाल दिया था। मगर आश्चर्य में डालने वाली बात तो यह है कि उधम सिंह नगर जिले के सातों ब्लॉक के काबिल बीडीओ एवं बीइओ अभी तक केवल गदरपुर एवं खटीमा ब्लॉक के महज तीन-तीन मदरसों की जांच ही पूरी कर पाए हैं । यहां पर हम अपने पाठकों को बताना चाहेंगे कि राज्य सरकार ने मदरसों की ऐसी भी गहन जांच करने के आदेश नहीं दिए थे, जिसको पूरा करने में काफी समय लगता। राज्य सरकार द्वारा केवल मदरसो में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या, छात्रों को मिलने वाले फर्नीचर और छात्रों को मिलने वाला लाभ उन्हें मिला भी है अथवा नहीं, की जानकारी भर मांगी थी। मगर जिले की नौकरशाही महज कुछ बिंदुओं की जानकारी 3 महीने से अधिक समयावधि बीतने के बाद तक एकत्रित नहीं कर सकी। जाहिर है कि मदरसों की जांच की यह धीमी गति किसी सामान्य करण का नतीजा नहीं है, अपितु इसके पीछे कोई खास ही कारण है और जांच की रफ्तार जानबूझकर आशय पूर्वक धीमी रखी गई है। हो सकता है कि इस धीमी जांच की मुख्य वजह मदरसा माफियाओं एवं नौकरशाही का कोई ‘गिव एंड टेक’ वाला गठजोड़ हो। वरना ,सामान्यतया तो ऐसी कोई वजह नजर नहीं आती, जिसके चलते एक सामान्य सी जांच 3 महीने से ज्यादा की अवधि क पूरी ना हो सके । कहने की जरूरत नहीं की इस समूचे खेल के पीछे कोई तो है जो यह नहीं चाहता की मदरसों की जांच हो और उसकी अनियमितताएं सरकार के सामने आए। लिहाजा निकट भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा की मदरसों की जांच का प्रतिवेदन कितने दिनों बाद मुख्यमंत्री की टेबल पर पहुंच पाता है ? और पहुंचता भी है अथवा नहीं? तथा प्रतिवेदन मिलने के बाद सरकार का मदरसो के प्रति क्या रुख रहता है?

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