उपचुनाव में थमा चुनावी शोर: ‘बागेश्वर’ बदलेगा उत्तराखंड के ‘उपचुनावों की रवायत’

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सत्ताधारी दल को सहानुभूति वोटो का लाभ मिलने की पूरी संभावना, स्थानीय एवं राष्ट्रीय मुद्दों पर कांग्रेस के सक्षम चुनौती
(अर्श) बागेश्वर। विधानसभा उपचुनाव में वैसे तो पांच प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला सत्ताधारी दल भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के बीच में ही है।आरक्षित श्रेणी की विधानसभा सीट बागेश्वर के इस उपचुनाव में भाजपा,  जहां पूर्व मंत्री चंदन रामदास की पत्नी पार्वती दास को अपना उम्मीदवार बनाकर,सहानुभूति वोटो के सहारे चुनावी नैया पार लगाने की कोशिश में है ,वहीं कांग्रेस गत विधानसभा चुनाव में बागेश्वर से आम आदमी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ चुके बसंत कुमार को गोद लेकर ,उत्तराखंड के विधानसभा उपचुनाव की दशकों से चली आ रही रवायत को बदलने की फिराक में है। बताना होगा कि उत्तराखंड निर्माण के बाद से राज्य में आज तक 14 उपचुनाव हुए हैं जिसमें से तेरह बार सत्ता पक्ष के प्रत्याशी को विजय मिली है और केवल एक बार विपक्ष अर्थात उत्तराखंड क्रांति दल के प्रत्याशी को जीत नसीब हुई है। इस लिहाज से बागेश्वर उपचुनाव में आंकड़ों का समीकरण सत्ताधारी दल भाजपा के पक्ष में है।इसके अलावा सत्ताधारी दल को सहानुभूति वोटो का लाभ मिलने की भी पूरी संभावना है। भाजपा  प्रत्याशी के महिला होने के कारण महिलाओं का ध्रुवीकरण भी उसके पक्ष में हो सकता है और अगर ऐसा हुआ तो भाजपा बागेश्वर उपचुनाव में भारी अंतर से जीत दर्ज कर सकती है। वैसे भी  उपचुनाव में अमूमन मतदाता सत्ता पक्ष के साथ ही खड़ा रहना पसंद करता है।इस दृष्टि से बागेश्वर उपचुनाव में भाजपा की राह अपेक्षाकृत आसान दिख पड़ती है, लेकिन चुनाव प्रचार के आरंभिक दौर में पिछड़ने के बाद ,तमाम अंतर विरोधों एवं चुनौतियों से उबरते हुए मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भी इस उप चुनाव में भाजपा के समक्ष एक सक्षम चुनौती प्रस्तुत की है। लिहाजा कांग्रेस की चुनौती को भी कम करके नहीं आंका जा सकता, क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान स्थानीय एवं राष्ट्रीय मुद्दों को बड़े ही प्रभावशाली ढंग से मतदाताओं के समक्ष रखा है। इसलिए बागेश्वर का मतदाता अगर मुद्दों के समर्थन में लामबंद हुआ तो, इस चुनाव में कांग्रेस एक बड़ा उलट फेर करते हुए उत्तराखंड के उपचुनावों की परंपरागत रवायत बदल सकती है। इसके अलावा बागेश्वर के मतदाताओं ने अगर चुनाव लड़ रहे सभी प्रत्याशियों की शैक्षणिक योग्यता को ध्यान में रखकर मतदान किया तो इस मायने में भी कांग्रेस प्रत्याशी का पडला भारी रह सकता है, क्योंकि कांग्रेस प्रत्याशी ग्रेजुएट है और चुनाव लड़ रहे अन्य सभी उम्मीदवार शैक्षणिक योग्यता की दृष्टि से कांग्रेस प्रत्याशी से  कमतर हैं। बहरहाल, बागेश्वर में चुनाव प्रचार का शोर अब थम चुका है। रैली और रोड शो के माध्यम से पांचांे प्रत्याशी अपना दमखम दिखा चुके हैं। किसी भी प्रत्याशी ने अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रख छोड़ी है। बावजूद इसके बागेश्वर में जीत हार का गणित काफी हद तक अब इस बात पर निर्भर करेगा, कि मतदान के पहले वाली रात को विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता, उन मतदाताओं को किस हद तक साध पाते हैं, जो मतदान के ऐन पहले वाली रात जीत- हार का समीकरण बनाते -बिगड़ते हैं। कहने की जरूरत नहीं कि किसी भी चुनाव में प्रायः दो तरह का मतदाता मतदान में हिस्सा लेता है। एक वह, जो उम्मीदवार का नाम सामने आते ही मन बना लेता है कि अमुक उम्मीदवार को वोट करना है और दूसरा वह जो वेट एंड वॉच की पोजीशन में रहता है और चुनाव के ऐन पहले वाली रात को यह तय करता है कि किस प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करना है। कदाचित यही कारण है कि मतदान वाले दिन के पहले वाली रात को ‘कत्ल की रात’ कहा जाता है। जाहिर है कि कत्ल की इस रात में जो जितना बड़ा कमाल करने में सफल रहेगा, उसकी उतनी बड़ी जीत होगी।

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