बागेश्वर उपचुनाव में ‘मुद्दों’ पर भारी पड़ती ‘सहानुभूति लहर’
गली-गली और गांव-गांव पहुंचने लगे राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता, छोटे मझौले कार्यकर्ताओं की बढ़ी पूंछ
(अर्श ) रूद्रपुर। बाढ़ और डायरिया से जूझ रहे बागेश्वर पर अब चुनावी रंग चढ़ने लगा है।विधानसभा चुनाव के बाद से उपेक्षित पड़े जमीनी कार्यकर्ताओं की पूछ परख इस विधानसभा क्षेत्र में अब अचानक बढ़ चली है।अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस विधानसभा सीट के उपचुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस ने अपनी-अपनी रणनीति तैयार कर ली है और दोनों ही दलों के कार्यकर्ता गांव- गांव और गली-गली की खाक छानने लगे हैं।भाजपा ने अपने 42 प्रवासी प्रभारी को विधानसभा क्षेत्र में तैनात कर अपनी सांगठनिक क्षमता का परिचय दे दिया है।इसके पूर्व भाजपा ने कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की सूची आने के तुरंत बाद ही अपने 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी कर दी थी ,जिसमें मुख्यमंत्री समेत ,पूर्व मुख्यमंत्री और तमाम प्रादेशिक दिग्गज शामिल हैं। वहीं, कांग्रेस ने भी स्टार प्रचारकों की सूची जारी करने के साथ-साथ अपने प्रदेश अध्यक्ष समेत पूर्व सांसद और अन्य जनप्रतिनिधियों को अलग-अलग क्षेत्रों में प्रचार की कमान सौंप दी है।दोनों ही पार्टियों की तरफ से स्थानीय नुमाइशखेत मैदान पर जन सभाएं भी आयोजित की जा चुकी है।जिसमें आरोप प्रत्यारोप के चुनावी हथियार खुलकर चलाए जा चुके हैं। चुनाव बैतरणी पार करने के लिए वोटरों को रिझाने के लिए हर हथकंडे तो अपनाए ही जा रहे हैं ,साथ ही एक दूसरे के छोटे- मझौले कार्यकर्ताओं को तोड़कर अपने पाले में करने की कोशिश भी जब तब सामने आ जाती है। कांग्रेस के पूर्व प्रत्याशी रंजीत दास के भाजपा में शामिल होने के बाद जहां कांग्रेस भैरव नाथ टम्टा, गोपाल राम और कमल टम्टा को उनके समर्थकों के साथ भाजपा से तोड़कर अपने पाले में ले आई, वही बीते दिवस मुख्यमंत्री की चुनावी सभा के दौरान कांग्रेस की सुनीता टम्टा समर्थकों के साथ भाजपा की हो गईं। मोटे तौर पर बागेश्वर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला नजर आ रहा है, हालांकि उत्तराखंड क्रांति दल समाजवादी पार्टी एवं उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के प्रत्याशी भी इस उप चुनाव में अपना भाग्य आजमा रहे हैं ,लेकिन वह इस उपचुनाव में कुछ अप्रत्याशित कर पाए पाएंगे ? इसकी संभावना लगभग ना के बराबर ही है, क्योंकि अब से पहले के बागेश्वर विधानसभा के चुनाव में मतदाताओं का ध्रुवीकरण अमूमन कांग्रेस और भाजपा के पक्ष में ही होता देखने को मिला है। बात पिछले चुनाव की करें तो2022 में हुए चुनाव में भाजपा प्रत्याशी स्व। चंदन राम दास 12,141 मतों के बड़े अंतर से जीते थे। उन्हें 32,211 मत मिले। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी रंजीत दास दूसरे स्थान पर रहे। उन्हें 20,070 मत मिले। जबकि तीसरे नंबर पर रहे आप के बसंत कुमार को 16,109 मत प्राप्त हुए थे।जहां तक इस उपचुनाव का सवाल है ? तो इसमेंभाजपा जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विकास कार्य के साथ-साथ, पूर्व विधायक एवं मंत्री स्वर्गीय चंदन रामदास की पत्नी पार्वती दास को मैदान में उतरकर सहानुभूति बोट बटोरने के प्रयास में है। वहीं, कांग्रेस मणिपुर से लेकर उत्तराखंड तक महिलाओं के साथ हुए उत्पीड़न, बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दों के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में है। मोटे तौर पर देखा जाए तो भाजपा प्रत्याशी के पक्ष की सहानुभूति लहर कांग्रेस के मुद्दों पर फिलहाल तो भारी पड़ती दिखाई दे रही है, लेकिन अंत अंत अगर में कांग्रेस मजबूती से मुकाबले में लौट आए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।वैसे 2024 के आम चुनाव से पहले बागेश्वर उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। वह इस चुनाव को जीतकर 2024 लोकसभा चुनाव की जीत का बिगुल फूंकना चाहती है। प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खुद बागेश्वर चुनाव को काफी महत्वपूर्ण मान रहे हैं। बागेश्वर चुनाव के बाद प्रदेश में नगर निकाय चुनाव भी होने हैं। लिहाजा बागेश्वर उपचुनाव को जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी का विश्वास चरम सीमा पर होगा और आने वाले चुनाव में कार्यकर्ताओं का हौसला बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा, जिसके लिए बागेश्वर उपचुनाव जीतना बेहद जरूरी है।दूसरी ओर कांग्रेस भी इस प्रयास में है कि किसी तरह से बागेश्वर उपचुनाव जीता जाए ,ताकि 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस भी बड़े हुए मनोबल के साथ उतर सके और भाजपा की समक्ष एक तगड़ी चुनौती पेश कर सके।