…तो ब्यूरोक्रेसी कर रही “धामी” को बदनाम ?

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अतिक्रमण हटाओ अभियान के साइड इफेक्ट आए सामने , डैमेज कंट्रोल में जुटी भाजपा
(अर्श)
रूद्रपुर। विगत कुछ माह से समूचे उत्तराखंड में जारी अतिक्रमण हटाओ अभियान के साइड इफेक्ट अब नजर आने लगे हैं। इस अतिक्रमण हटाओ अभियान के द्वारा केवल कमजोर एवं गरीबों को उजाड़े जाने और अतिक्रमणकारी की जद में ना आने वाले लोगों को भी इसका शिकार बनाए जाने का आरोप लगाकर, प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस का एक घड़ा धामी सरकार को निशाने पर लेने की कोशिशों में जुट गया है। वैसे तो अतिक्रमण हटाओ अभियान का थोड़ा बहुत विरोध प्रायः राज्य के सभी प्रभावित क्षेत्रों में देखने को मिलता है, लेकिन उधम सिंह नगर जिले में अब विरोध के स्वर ज्यादा मुखर होने लगे हैं और इस पर सियासत भी अच्छा खासा गरमाने लगी है । जैसा कि अपेक्षित था , मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के एक धड़े के, इस मसले पर हरकत में आते ही भाजपा ने अतिक्रमण हटाओ अभियान के दूरगामी परिणामों को देखना आरंभ कर दिया और डैमेज कंट्रोल की कोशिशें भी अब आरंभ हो गई है। डैमेज कंट्रोल के इस क्रम में सबसे पहले केंद्रीय रक्षा व पर्यटन राज्यमंत्री एवं क्षेत्रीय सांसद अजय भट्टð का एक वत्तफव्य सामने आया, जिसमें उन्होंने यह रेखांकित करने की कोशिश की, कि सूबे के कतिपय नौकरशाहों ने इस अतिक्रमण अभियान को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मंशाअनुरूप अमल में न कर, इसे मनमर्जी तरीके से संचालित करके धामी सरकार की छवि खराब करने की कोशिश की । इसमें दो राय नहीं कि उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में चलाया गया अतिक्रमण हटाओ अभियान, आरंभ में धार्मिक आधार पर कब्जाई गई शासकीय भूमि को कब्जा मुत्तफ किए जाने पर केंद्रित था और कालांतर में इसने अन्य अतिक्रमणकारियों को भी अपना शिकार बना लिया। इस अभियान में उन लोगों को भी निशाना बनाया गया जो अतिक्रमणकारियों की श्रेणी में आते ही नहीं थे ।अतिक्रमण हटाओ अभियान में कुछ ऐसे लोगों के आशियानों को भी तहस-नहस कर दिया गया, जिन्हें उत्तराखंड राज्य बनने के पूर्व विधिवत बसाया गया था अथवा जो एक अरसे से उत्तराखंड में रहते आ रहे हैं। हालांकि अतिक्रमण हटाओ अभियान मे निर्दाेष और दबे-कुचले आम लोगों को निशाना बनाए जाने के बाद, जनसामान्य के बीच बन रहे सरकार की नकारात्मक छवि को सुधारने के लिए भाजपाइयों द्वारा दिए जा रहे इस तर्क को, कि कुछ ब्यूरोक्रेट्स ने अतिक्रमण हटाओ अभियान को मनमर्जी तरीके से अमल में लाया, सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। वह इसलिए क्योंकि प्रायः सभी शासन तंत्र में ब्यूरोक्रेट्स की दो लॉबी होती है एक सरकार समर्थक लॉबी और दूसरी सरकार विरोधी लॉबी । बताने की जरूरत नहीं कि सरकार समर्थक अफसर सरकार की नीतियों को जनता तक एक सकारात्मक संदेश के साथ पहुंचाने की कोशिश करते हैं और सरकार विरोधी अफसरान सरकार की बड़ी से बड़ी जनकल्याणकारी योजना को भी धरातल पर ऐसे अमल में लाते हैं ,जिससे जनमानस में सरकार की नकारात्मक छवि बने। इसलिए हो सकता है की कुछ ब्यूरोक्रेट्स ने मनमानी तरीके से अतिक्रमण अभियान को अंजाम दिया हो। लेकिन बड़ा सवाल तो यह है कि क्या उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की प्रशासनिक पकड़ इतनी कमजोर है कि कतिपय ब्यूरोक्रेट्स बेलगाम हो गए हैं ?और क्या उनके अंदर इतना साहस पैदा हो गया है कि वह सरकार के निर्देशों को धता बता सकें ? तथा क्या सूबे के मुखिया का इंटरनल इंटेलिजेंस इतना लचर है कि उनके शासन वाले राज्य के किसी हिस्से में ब्यूरोक्रेसी, गरीबों के आशियानो को तहस-नहस करके उन्हें सड़क पर ला दे और मुख्यमंत्री को इसकी खबर तक न हो ? सामान्यतया ऐसा संभव नहीं है ,लेकिन दुर्भाग्यवश अगर ऐसा हुआ भी है मुख्यमंत्री के आंतरिक सूचना तंत्र को चाक-चौबंद किए जाने की दिशा में गंभीर प्रयास की अविलंब जरूरत है। हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की दृष्टि से यह अच्छा ही है कि भाजपा के थिंक टैंक ने अतिक्रमण हटाओ अभियान से आम जनमानस पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को समय रहते भांप लिया है और डैमेज कंट्रोल की कोशिशें आरंभ हो चुकी हैं । लेकिन डैमेज कंट्रोल के इस प्रयास में भाजपा नेताओं को गले ना उतरने वाले तर्क देने से बचना चाहिए। खासकर अतिक्रमण हटाओ अभियान का ठीकरा ब्यूरोक्रेट्स के सिर पर फोड़ने का काम तो तत्काल बंद कर देना चाहिए क्योंकि ऐसी कोशिशों से धामी की छवि एक कमजोर मुख्यमंत्री की बनती है । लिहाजा भाजपा के तमाम छोटे मझोले नेताओं को इस तथ्य पर विचार करना चाहिए कि जिस मुख्यमंत्री को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे शत्तिफशाली व्यत्तिफ का वरदहस्त प्राप्त हो , उसके निर्देशों की अवहेलना करने की हिम्मत क्या कोई अदना सा नौकरशाह कर सकता है ? जाहिर है कि नहीं । रही बात डैमेज कंट्रोल की, तो प्रभावितों का समुचित पुनर्वास इसका एक अच्छा तरीका हो सकता है और सूबे के मुखिया को इस दिशा में गंभीर प्रयास करने चाहिए ।

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