उत्तराखंड में अटल “उत्कृष्ट” विद्यालय के रिजल्ट रहे “निकृष्ट”: शिक्षकों पर गाज गिराने की तैयारी
सरकार का प्रयोग असफल,क्या सीएम और शिक्षा मंत्री भी लेंगे नैतिक जिम्मेदारी?
रूद्रपुर।समूचे भारत में इन दिनों स्कूलों के परीक्षा परिणाम आने का मौसम चल रहा है . देश के विभिन्न राज्यों में हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट के रिजल्ट लगभग सामने आ चुके हैं. हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट की पढ़ाई में जी- तोड़ मेहनत कर मेरिट लिस्ट में शामिल होने वाले छात्रों में अधिकांश छात्र निजी स्कूलों के हैं . सरकारी स्कूलों में अध्ययनरत छात्रों के मेरिट में स्थान हासिल करने का प्रतिशत तुलनात्मक रूप से काफी कम है . जो कि तमाम राज्यों की शिक्षा नीति पर एक बड़ा सवालिया निशान है .पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों की शिक्षा के स्तर की दशा- दिशा भी देश के अन्य सरकारी स्कूलों से भिन्न नहीं है .सूबे में विगत वर्षों एक युगांतरकारी योजना के रूप में, सरकार द्वारा ढोल धमाके के साथ प्रचारित – प्रसारित की गई अटल उत्कृष्ट विद्यालय योजना, के “ढोल की पोल” विगत दिनों सामने आए हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट के परीक्षा परिणामों के बाद पूरी तरह सामने आ गई है . बता दें कि उत्तराखंड के 95 ब्लॉको मैं संचालित 189 उत्कृष्ट विद्यालयों के छात्रों का हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट का पास -आउट प्रतिशत तमाम सरकारी कोशिशों के बावजूद केवल 50 % ही रहा है ,लिहाजा अटल उत्कृष्ट विद्यालयों के इस निकृष्ट प्रदर्शन के लिए, सूबे का शिक्षा विभाग अब उत्कृष्ट विद्यालयों के शिक्षकों पर गाज गिराने की तैयारी में है , साथ ही संपन्न परीक्षाओं में कंपार्टमेंट श्रेणी के अंतर्गत रह गए छात्रों के ग्रीष्मकालीन अवकाश रद्द करके उनके लिए विशेष कक्षाएं लगवाने का विचार भी किया जा रहा है. उत्तराखंड के विद्यालय शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने निदेशक माध्यमिक शिक्षा उत्तराखंड, अपर निदेशक माध्यमिक शिक्षा गढ़वाल मंडल एवं अपर निदेशक माध्यमिक शिक्षा कुमाऊं मंडल इस आशय का पत्र क्रमांक- सेवा -2/723-45/2023-24, दिनांक 13 मई 2023 जारी करते हुए दायित्व धारी शिक्षकों से स्पष्टीकरण प्राप्त करने एवं अग्रिम कार्यवाही सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं . गौरतलब है कि उत्तराखंड में शैक्षणिक गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सूबे के सभी 95 विकास खंडों में से प्रत्येक विकासखंड के दो- दो विद्यालयों अर्थात 189 राजकीय इंटर कॉलेजों का अटल उत्कृष्ट विद्यालय में समायोजन किया गया था और इन्हें सीबीएसई से मान्यता भी प्रदान कराई गई थी तथा इनमें सीबीएसई का पाठ्यक्रम भी लागू किया गया था . इन उत्कृष्ट विद्यालयों में शिक्षा की भाषा का माध्यम अंग्रेजी निर्धारित किया गया था और सूबे के राजकीय शिक्षकों की ही शिक्षण कार्य के लिए नियुक्त की गई थी . इन शिक्षकों को नियुक्ति के पूर्व बकायदा एक परीक्षा के चक्र से गुजरना पड़ा था और परीक्षा में पास होने वाले शिक्षकों को ही शिक्षण कार्य की जिम्मेदारी सौंपी गई थी . बताने की जरूरत नहीं की अटल उत्कृष्ट विद्यालय में सीबीएसई के पाठ्यक्रम की, अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रदान करने की इस योजना को ,धामी सरकार की बड़ी ही महत्वाकांक्षी एवं क्रांतिकारी योजना के रूप में प्रचारित करते हुए राज्य की शिक्षा नीति में आमूलचूल परिवर्तन करने का दावा किया गया था , लेकिन परीक्षा परिणाम के सामने आते ही इन सारे सरकारी दावों की पोल खुल गई . अटल उत्कृष्ट विद्यालय से जुड़ी एक बड़ी विडंबना यह भी है कि सरकार ने अटल उत्कृष्ट विद्यालय में सीबीएसई का पाठ्यक्रम थोपने से पहले इस तथ्य पर तनिक विचार नहीं किया कि आरंभ से ही हिंदी माध्यम से शिक्षा हासिल करते आए छात्र-छात्राएं अचानक हाई क्लास अंग्रेजी को सहजता से कैसे आत्मसात कर पाएंगे ? ऊपर से “कोढ़ में खाज वाली” बात तो यह है कि शिक्षा प्रदान करने के लिए उन शासकीय शिक्षकों को चुना गया जो अरसे से हिंदी माध्यम में ही शिक्षा देते आए हैं. ऐसे में सरकार का यह है प्रयोग असफल होना ही था . सरकारी प्रयोग की इस असफलता का ठीकरा अब शिक्षकों पर फोड़ा जा रहा है . किसी अभियान के अपेक्षित परिणाम हासिल ना हो पानेकी जिम्मेदारी तय किया जाना एक अच्छा विचार है और ऐसी जिम्मेदारी तय भी होनी चाहिए चाहिए. लेकिन जिम्मेदारियां तय करने के इस क्रम में एक अहम सवाल तो यह है की क्या इस अभियान के असफलता का नैतिक उत्तरदायित्व सूबे के मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री पर आयद नहीं होता ? और क्या वे स्वयं पर उत्तरदायित्व निर्धारित करने का साहस कर पाएंगे भी ?