रुद्रपुर के चौराहों पर अमर शहीद की प्रतिमा स्थल पर चौतरफा गंदगी का अंबार

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– अर्श –
रूद्रपुर। रुद्रपुर के रहनुमा जिन अमर शहीदों और महापुरुषों को मौके- बेमौके अपना आदर्श बताकर उनके बताए रास्ते पर चलने का दम भरते हुए हजारों हजार कसमें खाते नहीं थकते,इन दिनों देश के उन्हीं अमर शहीदों और महापुरुषों की प्रतिमाएं शहर के विभिन्न चौराहों पर धूल फांक रही हैं । देश की आन -बान -शान के प्रतीक और राष्ट्र के प्रति अपना सब कुछ सर्वस्व न्योछावर करने वाले महापुरुषों के प्रति कृतज्ञ राष्ट्र एवं अवाम का सम्मान प्रदर्शित करने की गर्ज से, रुद्रपुर नगर के विभिन्न स्थानों पर स्थापित इन महापुरुषों की प्रतिमाएं न केवल घोर उपेक्षा एवं दुर्दशा का शिकार है,बल्कि इन प्रतिमाओं के स्थापना स्थल भी ‘सिस्टम को शर्मसार’ करने वाली गंदगी से पटे पड़े हैं । महापुरुषों की प्रतिमाओं पर दिनोंदिन गहरी चढ़ती धूल की परत और प्रतिमा स्थल में व्याप्त गंदगी की ओर आज तक ना तो नगर के नुमाइंदों अथवा शहर की किसी समाजसेवी संस्था की नजर ही पड़ सकी है और ना ही स्थानीय प्रशासन व नगर निगम का ध्यान ही इस ओर जा सका है स बताने की जरूरत नहीं की रुद्रपुर के सभी जनप्रतिनिधि,छोटे- बड़े राजनेता, समाजसेवी, शासन – प्रशासन के लोग और आमजन दिन में कई- कई दफे ,लगभग रोज ही इन महापुरुषों की प्रतिमाओं के आसपास से गुजरते हैं, मगर उन्हें एक बार भी इसका एहसास नहीं होता की उन्होंने अपने आदर्शों को किस कदर गंदगी में रख छोड़ा है। जान पड़ता है शहर के सियासतदारो को देश के लिए मर मिटने वाले इन महापुरुषों की याद केवल और केवल उनकी जयंती अथवा शहीद दिवस पर ही आती है और उसके बाद इन महापुरुषों की प्रतिमाओं को दुर्गंध मारती गंदगी में धूल खाने के लिए छोड़ दिया जाता है। भारत की आजादी के लिए हंसते- हंसते फांसी का फंदा चूमने वाले अमर शहीद भगत सिंह के प्रतिमा स्थल , स्थानीय भगत सिंह चौक मैं जब उत्तरांचल दर्पण की टीम पहुंची तो वहां व्याप्त गंदगी और अमर शहीद की प्रतिमा की दुर्दशा देखकर पूरी टीम सकते मे आ गई।शहीद भगत सिंह की प्रतिमा स्थल का समूचा परिसर न केवल आवारा पशुओं ,कुत्तों और सूअरों का आश्रय स्थल बना हुआ है बल्कि भगत सिंह की प्रतिमा का रंग भी जगह-जगह से उड़ा हुआ है । हालात यह है की भगत सिंह की प्रतिमा लगभग क्षतिग्रस्त होने की कगार पर है। रही सही कसर खाना खाकर दोना, पत्तल और डिस्पोजल फेंकने वालों ने पूरी कर दी है। बड़ी शर्मिंदगी की बात तो यह है कि अमर शहीद भगत सिंह की प्रतिमा को एक अदद छत तक मयस्सर नहीं और तो और ,समूचे प्रतिमा स्थल में व्याप्त गोबर और गंदगी के मद्देनजर यू मालूम होता है ,जैसे स्थानीय प्रशासन अथवा नगर निगम के किसी सफाई अमले की रह गुजर एक अरसे से उधर नहीं हुई । कमोबेश ऐसा ही कुछ हाल नगर के गाबा चौक के पास स्थापित नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का भी है ।


नेताजी की प्रतिमा पर भी धूल की मोटी परत जमा है और प्रतिमा का रंग जगह-जगह से उड़ने लगा है। अगर समय रहते नेताजी की प्रतिमा की देखरेख नहीं की गई तो नेताजी की प्रतिमा भी दुर्दशा को प्राप्त हो जाएगी । बात मेन मार्केट तिराहे पर स्थापित, संविधान निर्माता डॉक्टर अंबेडकर की प्रतिमा स्थल की करें तो वहां के हालात अपेक्षाकृत कुछ ठीक हैं । वह इसलिए क्योंकि आजकल छोटे छोटे से मसले पर संविधान को खतरे में बताने और अपनी संवैधानिक अधिकारों की दुहाई देने का एक रिवाज-सा चल पड़ा है। लिहाजा अक्सर ही शहर के छुट भैया नेता किसी न किसी बहाने प्रतिमा स्थल पर एकत्रित होते ही रहते हैं। इसके अलावा अभी पिछले माह ही डा- अंबेडकर का जन्मोत्सव मनाया गया है, हो सकता है बाबा साहब के किसी समर्थक अथवा नगर निगम ने इस मौके पर प्रतिमा स्थल की साफ सफाई कराने की जहमत उठा ली हो।

कदाचित इसलिए डॉक्टर अंबेडकर की प्रतिमा पर धूल की परत उतनी नहीं जम पाई है, जितनी की अन्य महापुरुषों की प्रतिमाओं पर जम चुकी है , लेकिन जूठे पत्तल वगैरह लोगों ने यहां भी फेंक रखे हैं स हैरत की बात तो यह है कि डॉ आंबेडकर के अनुयायियों की नजर भी वहां फेंके गए जूठे पत्तलो पर अब तक नहीं पड़ सकी है।जहां तक शहर के बीचोबीच डीडी चौक में स्थापित पंडित राम सुमेर शुक्ला की प्रतिमा स्थल का सवाल है ? तो इस प्रतिमा स्थल के हालात भी अन्य प्रतिमा स्थलों से जुदा नहीं । यहां भी प्रतिमा पर धूल की मोटी परत चढ़ी हुई है तथा प्रतिमा स्थल पर गंदगी मौजूद है।

पंडित रामसुमेर शुक्ल की प्रतिमा की इस उपेक्षा के क्रम में इस तथ्य का जिक्र आवश्यक है कि शुक्ला जी के परिवार जनों का उत्तराखंड की सियासत में अच्छा खासा दखल है और वे समय सत्ताधारी दल से भी जुड़े हुए हैं, मगर बड़ी विडंबना तो यह कि ऐसे सियासी रसूख धारियों का भी, अपने परिवार के गौरव पंडित राम सुमेर शुक्ला की प्रतिमा की देखरेख के प्रति जरा भी रुचि नहीं है । ऐसे में यह प्रश्न स्वयमेव उठ खड़ा होता है कि क्या चौराहों पर महापुरुषों की प्रतिमाओं के की स्थापना कर देने और उनके जन्मदिवस अथवा शहीद दिवस पर उनकी प्रतिमाओं पर फूल- माला चढ़ा देने मात्र से ही समाज के कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है अथवा इससे आगे भी कुछ और है ? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या स्थानीय प्रशासन, नगर निगम ,शहर की नेता बिरादरी और आमजन को महापुरुषों की प्रतिमाओं की इस दुर्दशा पर तनिक भी शर्मिंदगी का अहसास होगा ? और क्या स्थानीय प्रशासन व नगर निगम अपनी गलती पर पश्चाताप करते हुए रुद्रपुर शहर में विभिन्न स्थानों पर स्थापित सभी महापुरुषों की प्रतिमाओं के समुचित रखरखाव व साफ-सफाई समुचित व्यवस्था कर भारत के इन अमर शहीदों को सच्चा सम्मान दे सकेगा ?

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