गैरसैंण गंभीर उपेक्षा के कगार पर: ग्रीष्म कालीन राजधानी के लिए 25 हजार करोड़ रुपए का पैकेज मगर वहां 25 पैसे भी नहीं लग रहे हैं !
देहरादून( उद संवाददाता) ।उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बुधवार को सोशल मीडिया पर जारी एक संदेश में बताया है कि आज मैं गैरसैंण के लिए वाया मोहनरी प्रस्थान कर चुका हूं। 14 जुलाई को अपने पूर्व घोषित निर्णय के अनुरूप एक रसांकेतिक तालाबंदी किसी सरकारी दफ्तर में रुताला लगाकर के करूंगा। गैरसैंण.भराड़ीसैंण गंभीर उपेक्षा के कगार पर है। बहुत सारे लोग गैरसैंण अध्याय को बंद कर देना चाहते हैं। आखिर ग्रीष्म कालीन राजधानी या 25 हजार करोड़ रुपए का पैकेज यह भी तो किसी मुख्यमंत्री ने ही कहा मगर 25 हजार करोड़ तो अलग वहां 25 पैसे नहीं लग रहे हैं और ग्रीष्म कालीन राजधानी के नाम से एक चतुर्थ श्रेणी या तृतीय श्रेणी के सरकारी कर्मचारी को भी वहां नहीं बैठाया गया है। मुख्यमंत्री मंत्री सचिव कोई वहां रात तो छोड़िए दिन में भी प्रवास के लिए नहीं जाते हैं। भराड़ीसैंण का भव्यतम् विधानसभा भवन बांह फैलाए हुए अपने कानून बनाने वालों का इंतजार करता रह गया वो भराड़ीसैंण के चैप्टर को बंद कर देना चाहते हैं। कुछ मेरी व्यथा हैए क्योंकि मेरे कार्यकाल में गैरसैंण और उसके चारों तरफ के क्षेत्रों में एक हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा व्यय हुआ और वह राज्य का पैसा था। पता नहीं इतिहास भराड़ीसैंण विधानसभा भवन के निर्माण आदि जो कार्य हमारी सरकार ने संपादित किए उन्हें किस तरीके से विश्लेषित करेगा! मगर मेरे मन में एक ज्वाला है और वह ज्वाला उस समय और प्रखर हो जाती हैए जब मैं अपनी माताओं.बहनों की राज्य आंदोलन के नारोंए उनके संघर्ष और उनके बलिदान को याद करता हूं।बेलमती चौहान तथा हंसा धनाई तो प्रतीक हैंए उस संघर्ष में महिला शक्ति की भावना के। यह राज्य महिला शक्ति के विद्रोह से बनाए उनके बलिदान से बनाए मगर उनकी व्यथा इन 22 वर्षों में हम कितनी दूर कर पाएए उनके जीवन में हम कितना परिवर्तन ला पाएए इन सबको विश्लेषित करने की आवश्यकता है। गांव की महिला मुखर नहीं है। मगर वो राज्य आंदोलन के नारों को भूल ही नहीं है। एक तरफ उन नारों की गूंज को अपने मन में दोहराती है और दूसरी तरफ अपनी वर्तमान स्थिति को देखती हैए उसके मन में कितनी पीड़ा उभर आती होगी उसके चेहरे पर वह कष्ट किस रूप में झलक दिखाता होगा! मैं इसकी कल्पना मात्र ही करता हूं। इसलिए माँ.बहनों का संघर्ष और आज भी कष्टपूर्ण स्थिति मुझे बार.बार गैरसैंण.भराड़ीसैंण की तरफ लेकर के जाती है। मैं कितना सही और कितना गलत कर रहा हूंए निर्णय तो आप करेंगे। लेकिन बिना वहां गए बिना व्यथा को उडेले मेरा मन चैन नहीं पाता है। यदि आप मुझसे सहमत हैं! रुसंघर्ष करने के लिए तैयार हैंए तो बताइए। यदि मैं गलत रास्ते पर चल रहा हूं तो भी बताइए। आप अपनी भावनाओं को मेरे फेसबुक पेज में इस पोस्ट पर कमेंट या फेसबुक मैसेंजर के द्वारा मुझ तक पहुंचा सकते हैं।
जय हिंद!
जय उत्तराखंड.जय उत्तराखंडियतए