इन्दिरा हृदयेश ने संघर्षों से हासिल किया था राजनीति का शिखर

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राज्य गठन की पृष्ठभूमि तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
हल्द्वानी। उत्तराखण्ड में बुद्धिजीवियों, प्रबुद्ध लोगों के साथ उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली में सम्मान एवं ख्याति प्राप्त लौह महिला एवं उत्तराखंड कांग्रेस की वरिष्ठतम नेत्री डाॅ.श्रीमती इन्दिरा हृदयेश का मूल निवास स्थान सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ का दशौली गांव है। यह गांव बेरीनाग विकासखण्ड में है। गांव के निकट कोटगाड़ी का मन्दिर है। यह मन्दिर अपनी न्याय की मान्यता के लिये पूरे देश में विख्यात है। डा. इंदिरा के पिता स्व0 पंडित टीकाराम पाठक आजादी की लड़ाई के महान सेनानायकों में एक थे। गांधी जी के नेतृत्व में देश की आजादी के लिये टीकाराम पाठक जी ने कई पदयात्रायें की और बाद में गांधी जी के नेतृत्व में डांडी मार्च में सक्रिय भूमिका निभाई। टीकाराम पाठक जी में देशप्रेम और आजादी का जज्बा कूट-कूटकर भरा था। वे डांडी मार्च में ब्रिटिश हुकूमत के डंडे एवं घोड़ों की टापों से अचेत हुये थे। इनके स्वतंत्रता संघर्ष के बारे में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपनी जीवनी में उल्लेख करते हुये उन्हें अपने अनन्य सहयोगियों में से एक बताया है। पंडित टीकाराम पाठक कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता थे। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने टीकाराम पाठक को वर्ष 1930 में संयुक्त प्रान्त कांग्रेस कमेटी का सदस्य मनोनीत किया। बचपन में ही श्रीमती इन्दिरा ने देश सेवा, सच्चाई, ईमानदारी और कत्र्तव्यनिष्ठा का पाठ अपने पिता से विरासत में मिला था। श्रीमती हृदयेश ने अपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पिता के पद्चिन्हों का अनुसरण करते हुये वर्ष 1962 में समाजसेवा का व्रत लेकर राजनीति में प्रवेश किया और उत्तराखण्ड की राजनीति के शिखर पर पहुंची। मां श्रीमती रमा पाठक परिवार की सामान्य घरेलू महिला थी। श्रीमती रमा पाठक में भी देशप्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। दो बहिनों में इन्दिरा जी बड़ी थी। आज की तरह उस समय लड़कियों को बाहर पढ़ने की आजादी नहीं थी। लेकिन मेधावी इन्दिरा की प्रतिभा और उनके उच्च शिक्षा ग्रहण करने की लालसा को कोई नहीं रोक सका। कठोर परिश्रम एवं संघर्षों के बीच अपना जीवन स्वयं संवारा। लखनऊ विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एम0ए0 तथा कानपुर से पी0एच0डी0 की उपाधि प्राप्त की। इन्दिरा मेधावी छात्रा के साथ-साथ संघर्षषील भी थी। छात्र जीवन में सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय भूमिका में रही। स्कूल, कालेज में सदैव अव्वल रही। शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त इन्दिरा ने ललित आर्य महिला इण्टर काॅलेज में अध्यापन का कार्य शुरू किया। इसी विद्यालय में 38 वर्षों तक प्रधानाचार्या के पद पर रहीं। बतौर शिक्षक एवं प्रधानाचार्या इन्दिरा हृदयेश सदैव अनुशासनप्रिय तथा छात्रों एवं अभिभावकों में लोकप्रिय रही। पठन-पाठन की गतिविधियों में इन्दिरा हृदयेश का महत्वपूर्ण योगदान रहा। स्वर्गीय पंडित जगन्नाथ शर्मा के सुपुत्र हृदयेश कुमार के साथ दाम्पत्य सूत्र में बंधने के बाद डाॅ0 इन्दिरा पाठक डाॅ0 ;श्रीमतीद्ध इन्दिरा हृदयेश बनी। इन्दिरा हृदयेश ने अनेक शिक्षक एवं श्रमिक आन्दोलनों का नेतृत्व किया तथा कई बार जेल यात्रायें भी की। शिक्षकों की छोटी-छोटी समस्याओं के लिये सदैव संघर्ष करती रही। इस से आगे चलकर उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन प्रारम्भ किया। वर्ष 1962 में डाॅ0 ;श्रीमतीद्ध इन्दिरा हृदयेश ने राजनीति में सक्रिय रूप से पदार्पण किया और 1974 तक एक सामान्य कार्यकर्ता की भांति कांग्रेस पार्टी की मजबूत एवं लोकप्रिय बनाने में अथक योगदान दिया। वर्ष 1974 में कांग्रेस के सहयोग से कुमाऊं और गढ़वाल स्नातक शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से विधान परिषद् की सदस्य के लिये चुनाव मैदान में उतरीं। श्रीमती इन्दिरा हृदयेश भारी मतों से विजयी हुई और चार बार लगातार इसी निर्वाचन क्षेत्र से रिकार्ड मतों से विधान परिषद् के लिये निर्वाचित होती रहीं। श्रीमती हृदयेश ने पीठासीन बोर्ड के पैनल सदस्य के रूप में उ0प्र0 विधान परिषद् में सदन की अध्यक्षता की। इन्दिरा हृदयेश उत्तर प्रदेश में आष्वासन समिति, विकास प्राधिकरण की जांच समिति, अखिल भारतीय जनजाति महिला एसोसिएशन, विभिन्न शैक्षिक ट्रस्ट एवं संस्थाएं, विधायी समाधिकार समिति, लोक लेखा समिति, याचिका समिति, नियम समिति, पर्वतीय विकास बोर्ड की अध्यक्ष रहीं। इसके साथ ही राज्य उपभोक्ता संरक्षण समिति, राज्य आमींनियां पुनर्वास समिति, राज्य बीस सूत्रीय कार्यक्रम समिति, राज्य महिला कल्याण बोर्ड, राज्य शिक्षा राष्ट्रीयकरण समिति, राज्य पाठड्ढचर्या समिति की सदस्य रहीं। एच0एन0 बहुगुणा विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद् की प्रतिनिधि सदस्य, जी0बी0 पन्त कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय पन्तनगर के प्रबन्धन बोर्ड की सदस्य रहीं। उत्तरांचल राज्य के गठन के समय श्रीमती इन्दिरा हृदयेश कांग्रेस की विधायक थीं और उन्हें कांग्रेस पार्टी द्वारा कांग्रेस संसदीय दल का नेता बनाया गया। बाद में आश्वासन समिति की सभापति मनोनीत की गई। वर्ष 2002 में उत्तरांचल राज्य के प्रथम विधान सभा निर्वाचन में डाॅ0 ;श्रीमतीद्ध इन्दिरा हृदयेश हल्द्वानी विधान सभा क्षेत्र से निर्वाचित हुई। कांग्रेस केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा पंडित नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया गया और तिवारी मंत्रिपरिषद् में वरिष्ठतम् मंत्री के रूप में डाॅ0 ;श्रीमतीद्ध इन्दिरा हृदयेश को लोक निर्माण, राज्य सम्पत्ति, संसदीय कार्य, सूचना तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की जिम्मेदारी मिली। 2012 में हल्द्वानी विधानसभा से पुनः लगभग 24000 मतों के भारी अन्तर से जीत कर उत्तराखण्ड विधानसभा में पहंुची। 2012 से 2017 तक उत्तराखण्ड सरकार में वित्त, वाणिज्य कर, औद्योगिक विकास, नियोजन, उच्च शिक्षा, विधायी एवं संसदीय कार्य जैसे महत्वपूर्ण विभागों का दायित्व इनके पास रहा। वर्तमान में वह नेता विधान मण्डल दल एवं नेता प्रतिपक्ष उत्तराखण्ड के रूप में कार्यरत थी।
शिक्षक नेता के बाद क्षेत्र के विकास को समर्पित रही डा. इंदिरा
हल्द्वानी। पर्वतीय जनपदों की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार नीति एवं नियोजन के स्तर पर कार्य कराने के लिये श्रीमती इन्दिरा हृदयेश अलग पृथक राज्य की पक्षधर रही थीं। यहीं कारण था कि उत्तराखण्ड आन्दोलन में इनकी उल्लेखनीय भूमिका रही। राज्य गठन हेतु उत्तर प्रदेश विधान परिषद् में जोरदार पैरवी की और राज्य गठन की पृष्ठभूमि तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उत्तर प्रदेश विधान परिषद् में पृथक उत्तराखण्ड राज्य गठन के बारे में श्रीमती इन्दिरा हृदयेश द्वारा दिये गये ओजस्वी वक्तव्य आज भी उत्तर प्रदेश विधान परिषद् की कार्यवाही का हिस्सा है। राज्य संघर्ष के दौरान चर्चित मुजफ्रफर नगर, मसूरी, खटीमा तथा नैनीताल गोलीकांड से काफी व्यथित हुई और इसकी तीखी भत्र्सना की तथा विधान परिषद् में इन घटनाओं के बारे में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार को श्रीमती इन्दिरा हृदयेश के कठघरे में खड़ा किया था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार में जन्मी वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री डाॅ0 श्रीमती इन्दिरा हृदयेश ने लम्बा राजनैतिक सफर संघर्ष, त्याग एवं सेवा में व्यतीत किया है। गरीब सामाजिक परिवेश से निकलकर मूल रूप से एक शिक्षिका किस तरह शिक्षक नेता और बाद में सत्ता के शीर्ष तक पहंुची है यह अपने आप में इनकी विलक्षण प्रतिभा को दर्शाता है। इसका उदाहरण डाॅ0 श्रीमती इन्दिरा हृदयेश हैं। उनमें अटूट आत्मविश्वास, अनथक चुनौतियां को सहर्ष स्वीकार करने की विलक्षण शक्ति एवं संघर्ष की अद्वितीय प्रवृति से डाॅ0 ;श्रीमतीद्ध इन्दिरा हृदयेश ‘लौह महिला’ के रूप में चर्चित थी। लोक निर्माण मंत्री के रूप में इन्दिरा हृदयेश ने कई नये आयाम स्थापित कियें। डाॅ0 इन्दिरा हृदयेश दृढ़ इच्छा शक्ति, अटूट लगन आत्म विश्वास के कारण प्रतिदिन विकास कार्यों को निरन्तर गति प्रदान कर मूर्त रूप दे रही थी। अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों मंे भागीदारी एवं सम्मानः ट्रेड यूनियन, सरकारी, अर्द्धसरकारी कर्मचारी संगठन, सफाई मजदूर संगठन, जनजातीय, पिछड़े, निरक्षर एवं कामकाजी महिलाओं के साथ जुड़कर इन वर्गों के हितों के लिए इन्दिरा हृदयेश ने लम्बा संघर्ष किया। वर्ष 1974 में विश्व शांति सम्मेलन का आयोजन नई दिल्ली में किया गया। इस सम्मेलन में श्रीमती इन्दिरा हृदयेश को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। सन् 2000 में अमेरिकन वायोग्राफिकल इंस्टीटड्ढूट आॅफ यू0एस0ए0 ने इन्दिरा हृदयेश को वोमेन आॅफ द ईयर का सम्मान प्रदान कर उत्तराखण्ड की नारी शक्ति का गौरव बढ़ाया। उत्तरांचल में विभिन्न संगठनों ने विशिष्ठ कार्यों हेतु इन्दिरा हृदयेश का नागरिक अभिनन्दन एवं सम्मान किया था। संसदीय परम्पराओं में महत्वपूर्ण योगदानः उत्तर प्रदेश विधान परिषद् की सदस्य के रूप में डाॅ0 ;श्रीमतीद्ध इन्दिरा हृदयेश ने अपने 22 वर्षों के कार्यकाल में सदन के अन्दर एवं सदन के बाहर अपनी एक विशिष्ठ पहचान बनाई। अत्यन्त मेधावी, परिश्रमी एवं संसदीय कार्य में निपुण डाॅ0 इन्दिरा हृदयेश ने उत्तराखण्ड से जुड़े हुये जनजीवन एवं कर्मचारी, शिक्षकों की आवाज लगातार सदन में उठाई। विदेशों में किया था भारत का प्रतिनिधित्वः श्रीमती इन्दिरा हृदयेश ने कई देशों में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया था। सन् 1965 में श्रीलंका, सन् 1984 में सिंगापुर तथा थाईलैण्ड, सन् 1998 में वियना, जर्मनी, Úांस, स्विटजरलैण्ड एवं ग्रेट ब्रिटेन तथा सन् 2000 में चीन, जापान, कनाडा तथा अमेरिका आदि देशों की यात्रा की। नवगठित उत्तरांचल राज्य में सन् 2003 में जोहन्सवर्ग, साउथ अÚीका, मिश्र, सन् 2004 में आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, थाईलैण्ड का भ्रमण किया। इसी सन् 2006 में अमेरिका, थाईलैण्ड, मलेशिया और सिंगापुर का भ्रमण किया। विदेश भ्रमण के दौरान इन्दिरा हृदयेश ने वहां के विकास कार्यों की नई तकनीक का गहन अध्ययन किया। उसी सोच से वह उत्तराखण्ड का भी विकास चाहती थी तथा उसके माॅडल के रूप में हल्द्वानी का विकास करना प्रारम्भ किया था।

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