उत्तराखंड में देवस्थानम बोर्ड के फैसलों पर भाजपा में घमासान !

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पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तोड़ा मौन, विधायकों की सहमति से की घोषणा
देहरादून। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में लिए गए फैसलों कों वर्तमान तीरथ सरकार ने पलटना शुरू कर दिया है। उत्तराखंड में गैरसैंण कमिश्नरी और देवस्थानम बोर्ड के गठन को अपनी सरकार की महत्वपूर्ण उपलब्धि करार देते हुए तीरथ सरकार के नजरिये को नई सरकार की नई सोच और निर्णय बताते हुए किसी भी तरह की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके द्वारा ये फैसले व्यापक जनहित में लिए गए। इनके पीछे ठोस आधार के साथ ही विधायकों की सहमति भी थी। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत न सिर्फ अपने फैसलों की पैरवी में उतरे हैं, बल्कि इनमें की जा रही तब्दीली पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से नाराजगी भी जाहिर की है। शनिवार को डिफेंस काॅलोनी स्थित आवास पर पत्रकारों से बातचीत में रावत ने कहा कि गैरसैंण कमिश्नरी बनाने का निर्णय ग्रीष्मकालीन राजधानी परिक्षेत्र के सुनियोजित विकास और भविष्य की सोच के साथ लिया गया था। हम चाहते थे कि यह कमिश्नरी गढ़वाल व कुमाऊं की मिली-जुली संस्कृति का नया प्रयाग बने। पूर्व मुख्यमंत्री ने दावा किया कि सदन में कमिश्नरी की घोषणा से पहले उन्होंने वहां के विधायकों की राय ली थी, क्योंकि उन्हें आशंका थी कि इस तरह के सवाल भी उठेंगे। सभी का कहना था कि इसे लेकर किसी तरह की आपत्ति नहीं होनी चाहिए, क्योंकि गैरसैंण राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। गैरसैंण के भावी विकास की दृष्टि से यह जरूरी भी था। गैरसैंण राजधानी परिक्षेत्र के सुनियोजित विकास के लिए 10 साल के लिए 25 हजार करोड़ का रोडमैप बनाया गया था, जिस पर काम भी शुरू हो गया है। उन्होंने कहा कि गैरसैंण में नियमित रूप से विधानसभा सत्र होंगे। ऐसे में वहां कानून व्यवस्था बनाने, जनता की मांगों के त्वरित निराकरण और क्षेत्र के सुनियोजित विकास को वरिष्ठ आइएएस व आइपीएस के नियमित रूप से बैठने के लिए गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने की सोच थी। रावत ने कहा कि पूर्व में कुछ व्यत्तिफयों ने पिथौरागढ़ को नई कमिश्नरी में शामिल करने को कहा था, जिस पर विचार की बात कही गई थी। उन्होंने कहा कि जहां तक संस्कृति का सवाल है तो अल्मोड़ा को निश्चित तौर पर कुमाऊं का सांस्कृतिक केंद्र माना जाता है, मगर संस्कृति गंगा की तरह है। उसमें जो भी मिल जाए, मगर वह कभी अपना रूप नहीं बदलती बल्कि उसे आत्मसात कर लेती है। उन्होंने कहा कि जहां तक कैबिनेट का गैरसैंण कमिश्नरी को स्थगित करने का निर्णय है तो उस पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। यह सरकार की अपनी सोच और निर्णय है। सरकार द्वारा चारधाम देवस्थानम बोर्ड पर पुनर्विचार की बात कहे जाने के संबंध में पूर्व मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि बदरीनाथ व केदारनाथ तो पहले से बदरी-केदार मंदिर समिति के जरिये एक एक्ट से संचालित होते हैं। इसके तहत 51 मंदिर हैं। हमने एक भी नया मंदिर बोर्ड में नहीं जोड़ा। उन्होंने कहा कि यमुनोत्री धाम को एसडीएम की देखरेख में संचालित किया जाता है। वर्ष 2003 तक गंगोत्री धाम भी प्रशासक के तौर पर एसडीएम की देखरेख में संचालित होता था। अब किन कारणों से यह व्यवस्था बदली, उसके लिए पिछला अध्ययन करना पड़ेगा। देवस्थानम बोर्ड का मकसद सिर्फ श्रद्धालुओं के लिए बेहतर व्यवस्था बनाना था। मंदिर समितियों ने भी वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड की तर्ज पर यहां भी बोर्ड बनाने का सुझाव दिया था। यहां तक कि पूर्णागिरि व चितई के लिए भी समितियां ऐसी व्यवस्था चाहती रहीं। उन्होंने कहा कि हमने वर्षों से मंदिरों में पूजा अर्चना कर रहे पंडों, पुरोहितों और हक-हकूकधारियों के हितों से कोई छेड़छाड़ नहीं की।
चारधाम के हक-हकूकधारियों की जल्द बुलाई जाएगी बैठक: महाराज
देहरादून। चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के साथ ही इसके दायरे में आने वाले मंदिरों को बोर्ड के नियंत्रण से मुत्तफ करने पर पुनर्विचार की मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की घोषणा के बाद सरकार सक्रिय हो गई है। संस्कृति एवं धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज के अनुसार जल्द ही चारधाम के तीर्थ पुरोहितों के साथ ही हक-हकूकधारियों की बैठक बुलाकर उनसे सभी बिंदुओं पर मंथन किया जाएगा। त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में चारधाम बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री और इनसे जुड़े मंदिरों की व्यवस्था को लेकर उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम लाया गया। पिछले साल फरवरी में इस अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद चारधाम देवस्थानम बोर्ड का गठन किया गया। बोर्ड के दायरे में चारधाम से जुड़े 47 मंदिरों के अलावा चार अन्य मंदिर शामिल किए गए। हालांकि, चारधाम के तीर्थ पुरोहितों के साथ ही हक-हकूकधारी बोर्ड का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि बोर्ड में उनके हितों पर कुठाराघात किया गया है। सरकार में नेतृत्व परिवर्तन के बाद मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने साफ किया था कि देवस्थानम बोर्ड के संबंध में तीर्थ पुरोहितों व हक-हकूकधारियों से वार्ता की जाएगी। अब उन्होंने हरिद्वार में बोर्ड और इसमें शामिल 51 मंदिरों को बोर्ड के नियंत्रण से बाहर करने के संबंध में पुनर्विचार की बात कही है। संस्कृति एवं धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज ने शनिवार को कहा कि जल्द ही चारधाम के तीर्थ पुरोहितों व हक-हकूकधारियों की बैठक बुलाई जाएगी, जिसमें विभिन्न बिंदुओं पर सभी पक्षों से विचार लिए जाएंगे। उन्होंने बताया कि वैसे भी पूर्व में एक एक्ट के तहत गठित बदरीनाथ- केदारनाथ मंदिर समिति के अधीन पूर्व में 45 मंदिर शामिल थे। बदरीनाथ व उससे जुड़े 29 और केदारनाथ व उससे जुड़े 16 मंदिरों की व्यवस्था यह समिति देखती आ रही थी। देवस्थानम बोर्ड के बनने पर समिति और ये मंदिर उसके अधीन आ गए। गंगोत्री व यमुनोत्री के अलावा चंद्रबदनी मंदिर, सेम मुखेम मंदिर ;टिहरीद्ध रघुनाथ मंदिर ;देवप्रयागद्ध व श्रीराज राजेश्वरी मंदिर ;श्रीनगर-पौड़ीद्ध को बोर्ड में शामिल किया गया।
सीएम ने किया जनभावनाओं का सम्मान: अजय भट्ट
देहरादून। गैरसैंण कमिश्नरी के पिछली सरकार के फैसले को स्थगित करने के कैबिनेट के निर्णय पर मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को नैनीताल से सांसद अजय भट्ट का साथ मिला है। भट्ट ने सरकार के इस फैसले को स्वागतयोग्य कदम करार दिया। साथ ही चारधाम देवस्थानम बोर्ड पर पुनर्विचार किए जाने की मुख्यमंत्री की घोषणा पर संतोष जाहिर किया है। सांसद भट्ट ने यहां एक वत्तफव्य में कहा कि गैरसैंण कमिश्नरी बनाने की घोषणा के दिन से ही कुमाऊं मंडल के बागेश्वर और अल्मोड़ा जिले में काफी विरोध हो रहा था। जनप्रतिनिधि होने के नाते जनभावनाओं को उन्होंने सरकार के समक्ष रखा था। उन्होंने कहा कि अब गैरसैंण कमिश्नरी व देवस्थानम बोर्ड जैसे संवेदनशील मुद्दों पर जनभावनाओं का सम्मान करते तीरथ सरकार जो निर्णय ले रही है, उसके लिए वह बधाई की पात्र है। भट्ट के अनुसार उन्होंने पूर्व में भी यह बात रखी थी कि चारधाम देवस्थानम बोर्ड के संबंध में पहले चारधाम के तीर्थ पुरोहितों व हक-हकूकधारियों से चर्चा की जानी चाहिए। यद्यपि तब भी सरकार ने अच्छा कार्य करने के उद्देश्य से देवस्थानम बोर्ड का गठन किया, मगर कुछ विषयों पर हक-हकूकधारियों के मन में अपने हितों को लेकर शंकाएं थी। उन्होंने आशा व्यत्तफ की कि मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत भविष्य में इस प्रकार के किसी भी विषय में निर्णय लेने से पहले सभी हक-हकूकधारियों, पंडा व पुरोहित समाज से वार्ता के बाद ही कदम उठाएंगे।
सुब्रमण्यम स्वामी और अध्यात्मिक गुरू सदगुरू ने भी सरकार के इस फैसले को सराहा
देहरादून। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत द्वारा देवस्थानम बोर्ड पर पुनर्विचार करने के फैसले का बड़े पैमाने पर स्वागत हो रहा है। इस कड़ी में भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी और अध्यात्मिक गुरू सदगुरू ने भी सरकार के इस फैसले को सराहा है। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि यह हिंदुओं की एक बड़ी जीत है। उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम लागू होने के बाद हक-हकूकधारी इसका विरोध कर रहे थे। भाजपा नेता व राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी ने इस मसले पर हक-हकूकधारियों का समर्थन करते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की थी। उन्होंने इसमें सरकार के फैसले पर सवाल उठाए थे। हांलाकि तब हाईकोर्ट ने राज्य सरकार ने देवस्थानम बोर्ड के गठन की प्रक्रिया पर सहमति जतायी थी।

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