उत्तराखंड के 255 रणबांकुरों ने कुर्बानी दी थी कुर्बानी,78 सैनिक घायल हुए

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देहरादून । उत्तराखंड के वीर योद्धाओं ने समय-समय पर अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया है। 1971 के युद्ध की बात करें तो भारतीय सेना की इस विजयगाथा में उत्तराखंड के रणबांकुरों के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता। इस युद्ध में उत्तराखंड के 255 रणबांकुरों ने कुर्बानी दी थी। रण में दुश्मन से मोर्चा लेते हुए उत्तराखंड के 78 सैनिक घायल हुए। इन रणबांकुरों के अदम्य साहस का लोहा पूरी दुनिया ने माना। इस जंग में दुश्मन सेना से दो-दो हाथ करने वाले सूबे के 74 जांबाजों को वीरता पदक मिले थे। शौर्य और साहस की यह गाथा आज भी भावी पीढ़ी में जोश भरती है। इतिहास गवाह है कि वर्ष 1971 में हुए युद्ध में दुश्मन सेना को नाको चने चबवाने में उत्तराखंड के जवान पीछे नहीं रहे। तत्कालीन सेनाध्यक्ष सैम मानेकशाॅ ;बाद में फील्ड मार्शलद्ध और बांग्लादेश में पूर्वी कमान का नेतृत्व करने वाले सैन्य कमांडर ले. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने भी प्रदेश के वीर जवानों के साहस को सलाम किया। युद्ध में शरीक होने वाले थलसेना, नौसेना व वायुसेना के तमाम योद्धा जंग के उन पलों को याद कर जोशीले हो जाते हैं।16 दिसंबर ही वह दिन था, जब पाकिस्तान के लेफ्रिटनेंट जनरल एएके नियाजी ने करीब 90 हजार सैनिकों के साथ भारत के लेफ्रिटनेंट जनरल जसजीत अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर हथियार डाल दिए थे। जनरल नियाजी के आत्मसमर्पण करने के साथ ही यह युद्ध भी समाप्त हो गया। इस दौरान जनरल नियाजी ने अपनी पिस्तौल जनरल अरोड़ा को सौंप दी। भारतीय सैन्य अकादमी ;आइएमएद्ध में रखी यह पिस्तौल आज भी भावी सैन्य अफसरों में जोश भरने का काम करती है। भारतीय सेना का गौरवशाली इतिहास हमेशा से ही युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। आइएमए के म्यूजियम में रखीं 1971 भारत- पाकिस्तान युद्ध की ऐतिहासिक धरोहरें और दस्तावेज युवा अफसरों को अपने गौरवशाली इतिहास और परंपरा को कायम रखने की प्रेरणा देते हैं। इनमें सबसे प्रमुख जनरल नियाजी की पिस्तौल है। ईस्टर्न कमांड के जनरल आफिसर कमांडिंग ले. जनरल अरोड़ा ने यह पिस्तौल आइएमए के गोल्डन जुबली वर्ष 1982 में आइएमए को प्रदान की। इसी युद्ध से जुड़ी दूसरी वस्तु एक पाकिस्तानी ध्वज है, जो आइएमए में उल्टा लटका हुआ है। इस ध्वज को भारतीय सेना ने पाकिस्तान की 31 पंजाब बटालियन से सात से नौ सितंबर तक चले सिलहत युद्ध के दौरान कब्जे में लिया था। जनरल राव ने आइएमए के गोल्डन जुबली वर्ष में यह ध्वज अकादमी को प्रदान किया। 1971 में हुए युद्ध की एक अन्य निशानी जनरल नियाजी की काॅफी टेबल बुक भी आइएमए की शोभा बढ़ा रही है। यह निशानी कर्नल ;रिटायर्डद् रमेश भनोट ने जून 2008 में आइएमए को सौंपी थी।

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