उत्तराखंड से बड़ी खबर.. संन्यास के लिये मेरे शुभचिंतक करें 2024 का इंतजार : हरीश रावत
…कई हारें झेली मगर मैंने राजनीति में न निष्ठा बदली और न रण छोड़ा
देहरादून(उद ब्यूरो)। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक बार फिर उत्तराखंड की सियासत में जबरदस्त हलचल शुरू कर दी है। कांग्रेस पार्टी में आपसी खींचतान के बीच सोमवार दोपहर राष्ट्रीय महासचिव ने कांग्रेस नेताओं को संबोधित एक पोस्ट करते हुए नया दांव खेल दिया है। कांग्रेस के लोकप्रिय एंव दिग्गज नेता ने इस पोस्ट में प्रदेश के करोंड़ों शुभचिंतकों को भाउक संदेश देने का भी प्रयास किया है। आगामी 2022 के विधानसभ चुनाव की चर्चाओं के बीच 2024 के के लोकसभा चुनाव को मोहरा बनाते हुए हरदा ने अपने सियासी शुभचिंतकों की प्रतीक्षा पर विराम लगाने का ऐलान कर डाला। इतना ही नहीं श्री रावत ने विरोधी गुट को अपने संन्यास के लिये 2024 का इंतजार करने की उम्मीद जताते हुए मार्मिक तंज भी कसा है। महाभारत के युद्ध में अर्जुन को जब घाव लगते थे वो बहुत रोमांचित होते थे। राजनैतिक जीवन के प्रारंभ से ही मुझे घाव दर घाव लगे कई.कई हारें झेली मगर मैंने राजनीति में न निष्ठा बदली और न रण छोड़ा। मैं आभारी हूं उन बच्चों का जिनके माध्यम से मेरी चुनावी हारें गिनाई जा रही हैं इनमें से कुछ योद्धा जो rss की क्लास में सीखे हुए हुनर मुझ पर आजमा रहे हैं। वो उस समय जन्म ले रहे थेए जब मैं पहली हार झेलने के बाद फिर युद्ध के लिए कमर कस रहा थाए कुछ पुराने चकल्लस बाज़ हैं जो कभी चुनाव ही नहीं लड़े हैं और जिनके वार्ड से कभी रुकांग्रेस जीती ही नहींए वो मुझे यह स्मरण करा रहे हैं कि मेरे नेतृत्व में कांग्रेस 70 की विधानसभा में 11 पर क्यों आ गई! ऐसे लोगों ने जितनी बार मेरी चुनावी हारों की संख्या गिनाई हैए उतनी बार अपने पूर्वजों का नाम नहीं लिया हैए मगर यहां भी वो चूक कर गये हैं। अल्मोड़ाए पिथौरागढ़ए चंपावत व बागेश्वर में तो मैं सन् 1971.72 से चुनावी हार.जीत का जिम्मेदार बन गया थाए जिला पंचायत सदस्यों से लेकर जिलापंचायतए नगर पंचायत अध्यक्षए वार्ड मेंबरों विधायकों के चुनाव में न जाने कितनों को लड़ाया और न जाने उनमें से कितने हार गये ब्यौरा बहुत लंबा है मगर उत्तराखंड बनने के बाद सन् 2002 से लेकर सन् 2019 तक हर चुनावी युद्ध में मैं नायक की भूमिका में रहा हूंए यहां तक कि 2012 में भी मुझे पार्टी ने हैलीकॉप्टर देकर 62 सीटों पर चुनाव अभियान में प्रमुख दायित्व सौंपा। चुनावी हारों के अंकगणित शास्त्रियों को अपने गुरुजनों से पूछना चाहिए कि उन्होंने अपने जीवन काल में कितनों को लड़ाया और उनमें से कितने जीतेघ् यदि रुअंकगणितीय खेल में उलझे रहने के बजाय आगे की ओर देखो तो समाधान निकलता दिखता है। श्री त्रिवेंद्र सरकार के एक काबिल मंत्री जी ने जिन्हें मैं उनके राजनैतिक आका के दुराग्रह के कारण अपना साथी नहीं बना सका उनकी सीख मुझे अच्छी लग रही है। मैं संन्यास लूंगा अवश्य लूंगा मगर 2024 में देश में राहुल गांधी जी के नेतृत्व में संवैधानिक लोकतंत्रवादी शक्तियों की विजय और श्री राहुल गांधी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही यह संभव हो पायेगा तब तक मेरे शुभचिंतक मेरे संन्यास के लिये प्रतीक्षारत रहें।