उत्तराखंड सरकार के मुख्य स्थाई अधिवक्ता परेश त्रिपाठी का निधन,अधिवक्ताओं ने दी श्रद्धांजलि
नैनीताल। हाईकोर्ट में उत्तराखंड सरकार के मुख्य स्थाई अधिवक्ता सीएससी परेश त्रिपाठी का असामयिक निधन हो गया। उनके निधन से न्यायिक व अधिवक्ता जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। सैकड़ों लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया, न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी, न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे, कमिश्नर अरविंद ह्यांकी, आईजी अजय रौतेला, महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर, पूर्व महाधिवक्ता विजय बहादुर नेगी, समेत अनेक अधिवक्ता, अधिकारियों व उनके दोस्तों ने उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित की। हाईकोर्ट में उत्तराखंड सरकार के मुख्य स्थाई अधिवक्ता (सीएससी) परेश त्रिपाठी का बीते रविवार को असामयिक निधन हो गया। अंतिम संस्कार सोमवार को नैनीताल के श्मशान घाट पर होगा। मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के देयरी द्वाराहाट निवासी 51 वर्षीय परेश त्रिपाठी दीपावली में अपने लखनऊ स्थित आवास गए थे। 17 नवंबर से हाईकोर्ट खुल रहा है, इसलिए रविवार शाम को ही लखनऊ से लौटे थे। मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के देयरी द्वाराहाट निवासी 51 वर्षीय परेश त्रिपाठी दीपावली में अपने लखनऊ स्थित आवास गए थे। 17 नवंबर से हाईकोर्ट खुल रहा है, इसलिए रविवार शाम को ही लखनऊ से लौटे थे। शाम को तल्लीताल मेविला कंपाउंड स्थित आवास पहुंचने पर अचानकउन्हें सीने में दर्द हुआ। तत्काल उन्हें बीडी पाडेय अस्पताल ले जाया गया। जहा चिकित्सकों ने उनका उपचार शुरू किया, मगर रात करीब नौ बजे उनका निधन हो गया। सूचना पर महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर, हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार अनुज संगल, अपर महाधिवक्ता अजय बिष्ट समेत तमाम अधिवक्ता भी अस्पताल पहुंच गए। जरूरी औपचारिकता के बाद शव को एम्बुलेंस में आवास पर ले जाया गया। उनके पीछे परिवार में पत्घ्घ्नी, बेटी श्रेया व बेटे जैश हैं। उत्तराखंड हाईकोर्ट में मुख्य स्थाई अधिवक्ता परेश त्रिपाठी के निधन से राज्य सरकार को बड़ा नुकसान हुआ है। त्रिपाठी ना केवल अकेले कोर्ट में जूझते थे बल्कि उन्होंने अनेक बार सरकार को मुश्किलों से निकाला। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट से राहत दिलाने के मामले में त्रिपाठी ने अहम भूमिका निभाई थी। बहुमुखी प्रतिभा के धनी त्रिपाठी को हटाने के लिए भी प्रयास हुए मगर उनका विकल्प नहीं होने की वजह से हर बार सरकार को उनकी ढाल बनकर खड़ा होना पड़ा। अब उनके स्थान पर नए सीएससी की नियुक्ति करना सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण हो गया है। बेहद मिलनसार 51 वर्षीय त्रिपाठी हाईकोर्ट में सरकार के खिलाफ मुकदमों के दबाव के बावजूद हंसमुख रहते थे। उनके चेहरे में कभी चिंता की लकीर नजर नहीं आई। अनेक मामलों में उन्होंने सरकार की मजबूत पैरवी कर फजीहत होने से बचाई। वह उच्च न्यायालय में सरकार व कोर्ट के बीच अहम कड़ी थे। मुख्य सचिव ओमप्रकाश समेत अनेक सचिव उनसे हमेशा परामर्श लेकर ही काम करते थे। त्रिपाठी कोर्ट के आदेश को चंद मिनटों में ही शासन को समझाने के साथ ही उससे पार पाने का तरीका भी बताते थे। आरएफसी ललित मोहन रयाल बताते हैं कि सीएससी त्रिपाठी की बौ(िक क्षमता अद्वितीय थी। वह हर मामले की पैरवी से पहले देर रात तक अध्ययन करते थे। उन्हें न्यायिक के साथ ही प्रशासनिक व विभागीय मामलों की गहरी समझ थी। उत्तराखंड हाईकोर्ट में सरकार के खिलाफ हर सिविल मामले में ढाल बनने वाले त्रिपाठी के निधन की सूचना पूरे शहर में आग की तरह फैल गई मगर कोई पुलिस या प्रशासन का अधिकारी अस्पताल नहीं आया। महाधिवक्ता समेत सरकार के अहम अधिवक्ता पहुंच गये थे। पुलिस की ओर से एसआई दीपक बिष्ट व अन्य थे। बताया जाता है कि जिले के प्रशासनिक अफसरों को मोबाइल से काॅल की गई मगर रिसीव नहीं किया। इसको लेकर अधिवक्ताओं में खासा आक्त्रोश भी देखा गया। सीएससी त्रिपाठी हाईकोर्ट में एक दर्जन से अधिक अधिवक्ताओं के गाॅड फादर थे। उनके निधन पर उनकी जूनियर सोनिया चावला समेत अन्य अस्पताल में फूट फुटकर रोने लगे कि हमारे सिर से आज बाप का साया उठ गया, अब कैसे आगे काम करेंगे। महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर भी शव देख आंसू रोक नहीं पाए। यहात्रिपाठी की सिफारिश पर अनेक अधिवक्ता सरकार के पैनल में शामिल किए गए थे। ऐसे सभी अधिवक्ताओं के चेहरे पर गम साफ नजर आया। सीएससी त्रिपाठी रविवार को लखनऊ से नैनीताल आ रहे थे। उनके बुकिंग वाली गाड़ी के चालक को पहाड़ की सड़क में चलाने में दिक्कत हुई तो हल्द्वानी से वह खुद ही नैनीताल तक ड्राइव कर लाए। चिड़ियाघर रोड से उनके आवास को जाने वाली जिला पंचायत वाली रोड की चढ़ाई में उन्हें दर्द शुरू हुआ। जैसे तैसे उन्होंने घर तक गाड़ी पहुंचा दी।बताया जाता है कि अधिक दर्द होने पर वह वहीं पर बैठ गए तो उन्हें अस्पताल ले जाया गया। उनके साथी यहां तक कहते सुने गए कि यदि अस्पताल में उन्हें बेहतर उपचार मिलता या सुविधाएं होती तो उन्हें बचाया जा सकता था।यहा त्रिपाठी के परिवार में पिछले दो साल में चार सदस्यों की मृत्यु हो गई।