आईएएस की कार्यप्रणाली से राज्यमंत्री रेखा आर्य नाराज,सीएम से पूछा

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अगर अधिकारी की गलती हुई तो उसे क्या सजा मिलेगी?
देहरादून(उद ब्यूरो)। उत्तराखंड में मंत्रियों और अधिकारियों के बीच आपसी तालमेल की कमी से विवाद तेजी से गहराने लगा है। राज्य मंत्री रेखा आर्य का एक और बड़ा बयान सामने आया है। मुख्यमंत्री द्वारा मुख्य सचिव को जांच के आदेश का परोक्ष रूप से स्वागत करते हए उन्होंने जांच की दिशा तय करने की भी मांग की है। रेखा आर्य ने कहा है कि क्या गारंटी है कि आईएएस के खिलाफ जांच दूसरा आईएएस निष्पक्ष तरीके से करेगा। साथ ही साथ रेखा आर्य ने एक खुला सवाल मुख्यमंत्री से भी पूछा है कि अगर अधिकारी की गलती हुई तो उसे क्या सजा मिलेगी? मिलेगी भी या नहीं इस पर भी रेखा आर्य ने मुख्यमंत्री से मीडिया बाइट के जरिये जवाब मांगा है। इस मामले में जहां निदेशक ने अपने पद पर काम नहीं करने का ऐलान किया है वहीं दूसरी तरफ चाहते वहीं मुख्यमन्त्री ने भी एक सदस्यीय जांच समिति वरिष्ठ आईएएस मनीषा पंवार के नेतृत्व में बनाई है। वहीं रेखा अर्य ने आईएएस अधिकारी की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिये है। इतना ही नहीं रेखा आर्य ने कहा कि सचिव और विभागों के निदेशकों की सीआर मंत्री लिखें तो बेहतर होता। पिछले 3 सालों में किसी भी सचिव और निदेशक की सीआर लिखने के लिए मेरी पास फाइल नहीं आई है। उन्होंने कहा कि मुख्य सचिव को पत्र लिखकर जानकारी मागूंगी कि उनको कितने अधिकारियों की सीआर लिखने के लिए फाइन भेजी गई। उन्हांेंने यह भी सवाल उठाया कि आईएएस अधिकारियों को बिना सीआर के कैसे प्रमोशन मिल रहे हैं। रेखा आर्य ने कहा कि यह बेहद चिंताजनक है। साथ ही उन्होंने मुख्य सचिव को वभी चिट्टòी लिखी है, जिसमें उन्होंने आईएएस वी षणमुगम से जुड़े प्रकरण के बारे में लिखा है। पत्र में लिखा गया है कि अधिकारी ने उनके आदेशों के बाद भी मनमर्जी से सभी जिला कार्यक्रम अधिकारियों को आदेश जारी कर दिए कि पूर्व में काम कर रही एजेंसी के कर्मियों से कोई काम ना लिया जाएगा। रेखा आर्य ने भी कहा है कि इससे करीब 400 कर्मचारियों को नुकसान उठाना पड़ा है। उन्होंने कहा कि निष्क्रिय रहकर काम न करने वाले अफसर सबसे बड़े भ्रष्टाचारी हैं। महिला सशत्तफीकरण एवं बाल विकास विभाग में मानव संसाधन की आपूर्ति के मद्देनजर आउट सोर्स एजेंसी के टेंडर में नियमों का पालन नही किए जाने की शिकायत मिलने पर विभागीय मंत्री रेखा आर्य ने टेंडर के साथ ही कार्यादेश निरस्त करने के आदेश दिए थे। साथ ही पत्रावली तलब की थी। निदेशक के फोन न उठाने और पत्रावली न भेजने पर मंत्री ने निदेशक का पता लगाने के लिए पुलिस को तहरीर तक दे दी। तब से यह मामला सुर्खियों में है। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद प्रकरण की जांच अपर मुख्य सचिव मनीषा पंवार को सौंपी गई है। शुक्रवार को राज्यमंत्री आर्य ने मुख्य सचिव को पत्र भेजकर इस प्रकरण पर सिलसिलेवार जानकारी दी। उन्होंने कहा है कि विभाग में राष्ट्रीय पोषण मिशन, मातृ वंदना योजना, वन स्टाप सेंटर, महिला हेल्पलाइन, महिला शत्तिफ केंद्र समेत अन्य योजनाओं में आउट सोर्सिग एजेंसी के जरिये कार्मिक रखे जाते हैं। गत वर्ष चयनित एजेंसी का कार्यकाल इस साल मई में खत्म हो गया था। इस पर निदेशक को नई एजेंसी का चयन होने तक गत वर्ष की एजेंसी की सेवाएं जारी रखने को कहा गया। ऐसा करने की बजाए 15 सितंबर को सभी 380 आउट सोर्स कर्मियों की सेवाएं समाप्त कर दी गई और नई एजेंसी के लिए 19 सितंबर को टेंडर खोलकर एजेंसी का चयन कर दिया गया। वह भी तब जबकि इसमें नियमों की अनदेखी की शिकायत होने पर उनके द्वारा इसे निरस्त करने के आदेश दिए गए थे। मंत्री ने पत्र में यह भी आरोप लगाया है कि मौजूदा निदेशक उनके आदेशों, निर्देशों की लगातार अवहेलना करते आ रहे हैं। टेंडर मामले में भी निदेशक अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास कर रहे हैं। विभागीय सचिव को भी इस बारे में बताने पर आदेशों का पालन नहीं हुआ। पत्र में टेंडर प्रक्रिया स्थगित करने के साथ ही निदेशक के खिलाफ कार्रवाई को कहा गया है। वहीं दूसरी तरफ रेखा आर्य ने अपने ही अधीनस्थ विभागीय निदेशक के खिलाफ प्रदेश से गायब हो जाने की एफआईआर तक करवा कर अपनी ही सरकार को असहज कर दिया है। लेकिन आज एक नाटकीय घटनाक्रम में रेखा आर्य के विभाग के निदेशक आईएएस षणमुगम ने भी रेखा आर्य से जुड़े विभाग में काम न करने के अपने इरादे जाहिर किये हैं। एक न्यूज चैनल पर दिये बयान के अनुसार वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने इस आशय की चिट्टòी मुख्य सचिव ओमप्रकाश को भेज कर कहा है कि वह विभाग के पद पर काम नहीं करना चाहते हैं। बहरहाल जांच की दिशा तय करने में अब मुख्यमंत्री के समक्ष बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। वहीं इस विवाद में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज भी कूद पड़े हैं। सतपाल महाराज ने रेखा आर्या के पक्ष में खड़े हो गये है। उन्होंने कहा है कि राज्य में अफसरों की सीआर मंत्रियों को लिखनी चाहिए। ऐसी यवस्था न होने से अधिकारी बेलगाम हो रहें हैं। बताया जा रहा है कि कैबिनेट के मंत्रियों को विभागीय सचिवों की सीआर लिखने का अधिकार तो पहले से ही मिला हुआ है। मुख्य सचिव ओमप्रकाश के अनुसार विभागीय मंत्री के पास अपने सचिव की सीआर लिखने का अधिकार उत्तराखंड में भी है। अगर मंत्री सीआर लिखते हैं, तो अंतिम अनुमोदन के लिए संबंधित फाइल को मुख्यमंत्री के पास भेजा जाता है। उन्होंने बताया कि जो विभाग मुख्यमंत्री के पास होते हैं, उनके सचिवों और मुख्य सचिव की सीआर लिखने का अधिकार सीएम के पास होता है।

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