एसडीआरएफ के जवानों ने खोजे केदारनाथ आपदा में मरे लोगों के कंकाल
देहरादून। केदारनाथ में एसडीआरएफ के सब इंस्पेक्टर कर्ण सिंह रावत के नेतृत्व में पांच सदस्यीय टीम ने नर कंकालों की खोज के लिए सबसे दुर्गम क्षेत्र को खंगाला। यह दल सोनप्रयाग से केदारनाथ होते हुए गरूड़चट्टðी, गोमुखड़ा, तोषी और त्रियुगीनारायण के ऊपरी जंगल में चार दिन तक खोजबीन में जुटा रहा। 28 किमी लंबे ट्रैक के चारों तरफ लगभग 100 किमी से अधिक पैदल दूरी नापते हुए टीम में शामिल जवानों ने यहां खाई से लेकर पहाड़ी और झाड़ियों से होते हुए खड़ी चट्टðानों व गुफाओं को पार किया। आए दिन मौसम की दुश्वारियों के बीच उन्हें चार नर कंकाल मिले। केदारनाथ आपदा में लापता हुए लोगों के कंकालों की खोजबीन के लिए 16 सितंबर को चार दिवसीय को खोजबीन अभियान शुरू किया गया था। अभियान के पहले दिन एसआई कर्ण सिंह के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय टीम सोनप्रयाग से गौरीकुंड होते हुए केदारनाथ पहुंची। उन्होंने बताया कि 17 की सुबह सात बजे टीम केदारनाथ से अपने साथ चार दिन का राशन, सब्जी व पेट्रो मैक्स लेकर गरूड़चट्टðी के ऊपर की तरफ बढ़ी। दिन चढ़ने के साथ तेज होती धूप और सीधी खड़ी चढ़ाई वाले रास्ते पर आगे बढ़ना मुश्किल हो रहा था। पसीने से भीगते हुए 19 किमी का चढ़ाई वाला रास्ता तय कर टीम दोपहर बाद लगभग ढाई बजे गोमुखड़ा पहुंची, लेकिन यहां पहुंचे अभी दस मिनट भी नहीं हुए थे कि झमाझम बारिश के साथ घना कोहरा छाने लगा, जिससे नर कंकालों की खोज शुरू नहीं हो पाई। टीम लीडर कर्ण सिंह के अनुसार लगभग दो घंटे बाद मौसम में कुछ सुधार होने तक टेंट खड़ा किया और अगले दिन की योजना बनाने में जुट गए। इस दौरान स्वयं ही रात्रि का भोजन भी तैयार किया और नौ बजे तक सो गए। हेड कांस्टेबल भगत सिंह व कांस्टेबल मनोज जोशी, पंकज राणा ने बताया कि 18 सितंबर की सुबह छह बजे ही वह अपने मिशन पर आगे की तरफ बढ़ने लगे। जैसे-जैसे आगे बढ़ते गए, रास्ता दुर्गम होता रहा। बताया कि रास्ते के दोनों तरफ खाई से होकर घने जंगल, चट्टðानें और गहरी गुफाओं से होते हुए वह गौरी माई खरक पहुंचे, जहां पर पत्थरों के समीप कुछ दूरी पर दो नर कंकाल मिले। 19 सितंबर की सुबह टेंट के दोनों तरफ पांच किमी क्षेत्र में खोजबीन करते हुए ऊपर पहाड़ी से होते हुए रात्रि 10 बजे सोनप्रयाग पहुंचे। टीम लीडर कर्ण सिंह के अनुसार, जिन जगहों पर कंकाल मिले हैं, उससे लगता है कि यात्री अपनी जान बचाने को यहां तक पहुंचे होंगे, लेकिन पानी के अभाव में थकान के कारण वे आगे नहीं बढ़ पाए और उनकी मौत हो गई होगी। आपदा के दिन केदारनाथ में मौजूद रहे अधिवक्ता अरुण प्रकाश वाजपेयी का कहना है केदारनाथ के सात से दस किमी के किमी के दायरे में ही मलबा सफाई व सघन खोजबीन की जाए तो और नर कंकाल मिल सकते हैं। ज्यादातर लोग तो केदारनाथ व रामबाड़ा में ही मलबे में दबकर मर गए थे। सात वर्षों में सिर्फ 703 नर कंकाल मिले हैं। जबकि लापता का आंकड़ा हजारों का है।