ऊधमसिंहगर के हजारों कब्जेदारों को मिल सकता है ‘तोहफा’

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उत्तराखंड में नयी नजूल नीति लागू करने की तैयारी में त्रिवेद्र सरकार
देहरादून/रूद्रपुर(उद ब्यूरो)। आगामी 2022 के विधासभा चुनाव को देखते हुए राज्य में प्रचंड बहुमत से काबिज त्रिवेंद्र सरकार अब अपने चुनावी वायदों को पूरा करने के लिये सक्रिय हो गई है। बताया जा रहा है कि जनपद ऊधमसिंहगर समेत प्रदेश के अन्य मैदानी जिलों में नजूल भूमि में काबिज हजारों परिवारों को जल्द ही बड़ी राहत मिल सकती है। गौर हो कि इस मुद्दे को लेकर उत्तराखंड में सियासत भी खूब हुई है,मसलन वर्ष 2018 में हुए नगर निगम के चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंहरावत ने एक जनसभा में खुद नजूल नीति को सरल बनाने के साथ ही रूद्रपुर में बसे हजारों परिवारों को उजाड़ने से बचाने के साथ ही मालिकाना हक दिलाने का वायदा किया था। अब एक बार फिर इस मुद्दे को लेकर मंथन शुरू हो गया है। सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के अनुसार उत्तराखंड में नयी नजूल नीति लाने लिये सरकार सभी विधिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए प्रस्ताव तैयार कर रही है। वर्तमान में सरकार नजूल की भूमि केवल सरकारी कार्यों के लिए ही आवंटित कर सकती है। शासन स्तर पर नीति लाने को लेकर कसरत शुरू हो गई है। नजूल भूमि सरकार के कब्जे की ऐसी भूमि है जिसका उल्लेख राजस्व रिकाॅर्ड में नहीं है। ऐसी भूमि का रिकाॅर्ड निकायों के पास होता है। सचिव आवास शैलेश बगौली के अनुसार नजूल नीति लाने के निर्देश प्राप्त हुए हैं, इस पर कार्यवाही चल रही है। इसके सभी पहलुओं का अध्ययन किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि नैनीताल हाईकोर्ट ने पिछले साल इस नीति को निरस्त कर दिया था, जिसके खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की थी साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने स्टे भी दे दिया। गौर हो कि वर्ष 2018 में उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में नजूल भूमि पर काबिज लोगों को राहत देने के उद्देश्य से सरकार नजूल नीति-2009 लेकर आई थी। इसके बाद नजूल भूमि पर काबिज लोगों को भूमि फ्रीहोल्ड कराकर मालिकाना हक देने के लिए कवायद शुरू की गई। इसके लिए निर्धारित धनराशि भी लोगों ने जमा कराई गई थी। इतना ही नहीं नगर निगम के अतिक्रमण हटाओ अभियान चलने पर नजूल भूमि धारक भी इसकी जद में आ रहे थे। इस बीच नैनीताल हाईकोर्ट में नजूल नीति को लेकर कई जनहित याचिकाएं दायर की गई थी। वर्ष 2018 में एक जनहित याचिका दायर कर सरकार की मार्च 2009 को जारी नजूल नीति को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकार नजूल भूमि को अवैध रूप से कब्जा कर रहे लोगों के पक्ष में मामूली नजराना लेकर फ्रीहोल्ड कर रही है, जो असंवैधानिक, मनमानीपूर्ण व नियम विरु( है। इसके अलावा हाई कोर्ट ने भी इस नजूल नीति का स्वतः संज्ञान लेते हुए मामले को ‘इन रिफरेंस नजूल पाॅलिसी आफ दी स्टेट फाॅर डिस्पोजिंग एंड मैनेजमेंट आॅफ नजूल लैंड’ नाम से जनहित याचिका के रूप में दर्ज किया। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में अपने निर्णय में भी नजूल भूमि के उपयोग के लिए व्यवस्था दी है। इसके बावजूद भी सरकार नजूल भूमि का सार्वजनिक उपयोग करने के बजाय अवैध कब्जेदारों व व्यत्तिफ विशेष के पक्ष में कर रही है। गरीब जनता जिसको वास्तविक रूप से इस भूमि की जरूरत है, उसकी इसमें अनदेखी की जा रही है। इसके बाद नैनीताल हाईकोर्ट ने पिछले वर्ष 19 जून को अपने आदेश में नजूल नीति-2009 को निरस्त कर दिया था। हाई कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार की 2009 की नजूल नीति के तहत नजूल भूमि पर अवैध कब्जेदारों के पक्ष में फ्रीहोल्ड करने के प्रावधान को असंवैधानिक व गैरकानूनी मानते हुए रद कर दिया है। कोर्ट ने इस गैर कानूनी काम के लिए सरकार पर पांच लाख जुर्माना लगाया। कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार नजूल भूमि को अतिक्रमणकारियों से मुत्तफ कराकर उसे अपने खातों में निहित करे। इस आदेश से प्रदेश के हजारों परिवारों के समक्ष बेघर होने का खतरा पैदा हो गया था। लेकिन राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए एसएलपी दाखिल कर पुनर्विचार की मांग की थी। अब मौजूदा स्थिति में 2009 की नजूल नीति लागू है। वहीं दूसरी तरफ जनपद ऊधमसिंहनगर के भाजपा विधायक राजकुमार ठुकराल भी विधासभा में इस मुद्दे का हल निकालने के लिये सरकार के समक्ष गुहार लगा चुके है। उन्होंने क्षेत्र की इस बहुप्रतीक्षित मांग को लेकर प्रकिश शुरू करने पर सीएम का आभार व्यक्त किया है।

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