चर्चा उतनी नहीं होती वहां, फिर भी महफिल लूटते हैं..सीएम त्रिवेंद्र ने खेला गैरसैण कार्ड,हरदा हुए स्लिप डिस्क!

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देहरादून। चर्चा उतनी नहीं होती वहां, फिर भी महफिल लूटते हैं–आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव के पूर्व प्रदेश के प्रमुख सियासी दलों के दो दिग्गज नेताओं ने प्रदेशवासियों को रिझाने के लिये अपने अपने दावे करने शुरू कर दिये है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व सीएम हीश रावत और मौजूदा भाजपा सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत गैरसैण के मुद्दे को लेकर आमने सामने आ गये है। हांलाकि सबसे महत्वपूर्ण राज्य की स्थायी राजधानी के लिये अब भी सम्पूर्ण संभावनाओं की तलाश शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैण में विधिवत भूमिधर होने का संदेश देकर उत्तराखंड में पहाड़वासियों के मन में नई आशा की किरण जगा दी है। वहीं दूसरी तरफ उत्तराखंड के मैदानी जनपदों में राजमार्गों की बदहाल स्थिति पर मोर्चा खोलते हुए कांग्रेस के पूर्व सीएम हरीश रावत भी सड़कों पर उतर आये है। इतना ही नहीं मौजूदा भाजपा सरकार पर गैरसैण की अवहेलना करने और विकास ठप करने का दावा कर वह खुद भराड़ीसैण में संकल्प लेने पहुंच गये थे। हरदा के स्थायी राजधानी बनाने के संकल्प के बाद सत्तासीन भाजपा में भी जबरदस्त हलचल साफ देखी जारही है। हांलाकि कांग्रेस के तमाम विधानसभा क्षेत्रें में अपेक्षा के अनुरूप विकास कार्यों में सरकार की उपेक्षा का आरोप भी पूर्व सीएम ने मढ़ा है।धारचूला मुनस्यारी के आपदाग्रस्त क्षेत्रें के दौरे के बाद हरीश रावत ऊधमसिंहनगर व हरिद्वार की सड़कों पर कभी रोपाई तो कभी बैलगाड़ी की सवारी को लेकर चर्चाओं में आ गये है। लिहाजा विपक्षी दल कांग्रेस के तमाम विधायक अब आगामी विधानसभा सत्र में एक बार फिर हमलावर हो सकते है। इतना ही नहीं कोरोना महामारी के बीच विपक्षी दलों के नेताओं पर दर्ज मुकदमें समेत राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर भी विपक्ष ने कई सवाल खड़े कर दिये है। विपक्ष के नेताओं के अनुसार क्वारंटाईन सेंटर में व्यवस्थाआें में लापरवाही समेत कोरोना मरीजों की देखभाल को लेकर भी तमाम तरह की शिकायते आ रही है। उधर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर राजधानी देहरादून स्थित प्रतिष्ठिन दून अस्पताल के कोरोना वार्डो में जलभराव को लेकर चिंता व्यक्त की है। पूर्व सीएम ने लिखा है कि पिछले कुछ दिनों से राज्य के हॉस्पिटल जिनमें बड़े-बड़े हॉस्पिटल्स भी हैं, हल्द्वानी में सुशीला तिवारी हॉस्पिटल है, दून हॉस्पिटल है, कुछ ऐसे समाचार आ रहे हैं जो बहुत चिंतित कर रहे हैं और कोरोना वार्डस की दुर्दशा का मामला कांग्रेस पहले भी उठा चुकी है और आज मुझे कुछ लोगों के फोन आये कि देहरादून में जो कोरोना वार्ड है उनमें पानी भर रहा है, कोई देऽ नहीं रहा है, तो ये जो सिलसिला है, असल में कोरोना के मरीज भी हमारे ही राज्य की नागरिक हैं और हमारी प्राथमिकताएं होनी चाहिये उनका इलाज जो है, एक एम्स हॉस्पिटल को छोड़कर की बाकी जगह से शिकायतें बहुत आ रही हैं, इस पर मैं उम्मीद करता हूं कि स्वास्थ्य सचिव महोदय ध्यान देंगे। खस्ताहाल सड़कों पर पूर्व सीएम की बैलगाड़ी की सवारी पर भाजपा सरकार मौन साध चुकी है। हरदा का वैसे तो मकसद सड़कों की बदतर स्थिति की ओर सरकार का ध्यान दिलाना था, लेकिन सियासी गलियारों में चर्चा है कि एजेंडा दरअसल कुछ और भी रहा है। एक तीर से दो नहीं, कई निशाने साधने में माहिर हरदा फिर सबको आईना दिऽा गए। हरदा के नित नए और अनूठे अंदाज से मौजूदा भाजपा सरकार को उतनी उलझन नहीं हुई है,मसलन सीएम त्रिवेंद्र के साढ़े तीन वर्ष के कार्यकाल में अब तक कोई भी बड़ा जनआंदोलन कांग्रेस पार्टी खड़ा नहीं कर पायी है। जबकि पार्टी में उनके ही संगठन के मुिऽया और विधायक दल की नेता कितनी कोशिश कर लें, चर्चा उतनी नहीं होती, परंतु हरदा महज बैलगाड़ी पर सवारी हो कर महफिल लूट ले जाते हैं। सड़कों की बदहाली को लेकर सड़को पर उतरने के बाद सोशल मीडिया पर उन्होंने अपने शुभचिंतकों के लिये संदेश लिखा है कि दोस्तों, शरीर ने आिऽरकार मेरी गलतफहमियां दूर कर दी हैं, कल ढंढेरा से लंढौरा तक की बैलगाड़ी यात्र के बाद स्लिप डिस्क जैसा आभास हो रहा है, सीढ़ी उतरना, बैड में चढ़ना कठिन हो रहा है, इसलिये क्षमा चाहता हूं अगले तीन-चार दिन मैं लोगों से नहीं मिल पाऊंगा, लेकिन टेलीफोन पर मैं बातचीत के लिये आपको उपलब्ध रहूंगा। उनकी इस पोस्ट से तो माना जा सकता है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत अब भी अपनी सक्रियता से पीछे नहीं हटने वाले हैं। पहाड़ से लेकर मैदान तक जनसमस्याओं के लिये संवेदनशील रहना भी हरदा की लोकप्रियता को बल दे रहा है। वर्चुअल संवाद के जरिये भी पूर्व सीएम हरीश रावत के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह काफी सक्रियता से काम करते रहे है। जनमुद्दों को लेकर कांग्रेस के सभी संगठनों के प्रमुख नेताओं को अभियान में शामिल होना चाहिये जबकि ऐसा देखने को भी नहीं मिलता है। कार्यक्रमों की रूपरेखा तय होने के बावजूद पार्टीनेता अलग अलग ऐजेंडे पर चलने लगते है। जबकि वरिष्ठ नेताओं के ऐजेंडे को प्रमुखता देने की कमी से सरकार की जवाबदेही भी तय नहीं हो सकती है। जनसमस्याओं के लिये एकरूपता से आंदोलन शुरू किया जाये तो पार्टी को मजबूती मिलेगी। माना जा रहा है कि उत्तराखंड में भजपा की डबल इंजन सरकार अब भी उतनी ही मजबूती से चल रही और जीरो टॉलरेंस के साथ जनउम्मीदों पर भी खरा उतरने की भरसक कोशिश करती रही है। उत्तराखंड का सबसे भावनात्मक मुद्दा जिसमें गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी का दर्जा देकर त्रिवेंद्र सरकार ने मानो भाजपा के लिये सियासी लाईफलाईन को और आगे बढ़ा दिया है। गैरसैण में जहा ंविधानसभा भवन के साथ अब आवासीय भवनो व मिनी सचिवालय समेत पेयजल के लिये पंपिंग योजना शुरू होने की उम्मीद है। वहीं पहाड़ से पलायन करने वाले प्रवासियों के लिये भी नई उम्मीद जाग रही है। इसके बावजूद अब खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के गैरसैण में भूमिधर होने का संदेश को जहां रिवर्स पलायन से जोड़कर देखा जा रहा है वहीं सियासी गलियारों में सीएम के इस मास्टरस्ट्रोक को लेकर भी तमाम भाजपा व कांग्रेस के नेताओं के लिये सबसे जबरदस्त पैतरा माना जा रहा है। ऐसे में अब गैरसैण प्रेमी नेताओं के समक्ष अपनी सियासी इच्छाशक्ति का प्रर्दशन करने की भी चुनौती है।
# एन.एस.बघरी “नरदा”

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