गेमचेंजर बन सकते है हरदा,2022 में बागियों की वापसी!

कांग्रेस में नई रणनीति के संकेत,हाईकोर्ट में फंसा है स्टिंग का पेंच

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उत्तराखंड में सियासी ‘तख्तापलट’ की तैयारी में जुटे हरीश रावत
देहरादून(दर्पण ब्यूरो)। उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई भाजपा को शिकस्त देने के लिए कांग्रेस अब हर मुमकिन कोशिश में जुट गई है। वहीं दूसरी तरफ आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव में हरीश रावत कांग्रेस के लिये गेमचेंजर साबित हो सकते है। पूर्व सीएम हरदा ने 2016 में कांग्रेस की सरकार को गिराने वाले बागी विधायकों की पार्टी में वापसी के द्वार खोल दिये है। हांलाकि उन्होंने यह बयान सोशल मीडिया पर लाईव चर्चा के दौरान दिया है मगर हरीश रावत द्वारा अपनी सियासी रणनीति का खुलासा खुले मंच से कहना कही न कहीं सियासी विरोधियों के लिये नया संकट खड़ा कर सकता है। 2022 के विधानसभा चुनाव में कुछ ही समय बचा हों तब हरदा के इस सियासी चैलेंज ने प्रदेश की अंदरूनी सियासत में खलबली सी मचा दी है। प्रदेश में तत्कालीन कांग्रेस सरकार में अपने तीन वर्ष के सियासी कैरियर में हरीश रावत अपनी कई फैसलों से लोकप्रियता हासिल कर चुके है। जबकि पिछले विस चुनाव में करारी हार के बावजुद वह विपक्ष की भूमिका में भी हमेशा बने हुए है। तीन वर्ष सरकार चलाने के बाद पिछले कई वर्षों से वह निरंतर पहाड़ से लेकर मैदान तक प्रदेशवासियों की समस्याओं,स्थानीय उत्पादों की ब्रांडिंग करने, श्रमिको, किसानो, सड़कों,शिक्षा स्वास्थ्य एवं विकास कार्यों के साथ हर मुद्दे पर राज्य सरकार की जवाबदेही तय करते रहे है। ऐस में हरीश रावत की सक्रियता का अंदाजा भी इस बात से लगाया जा सकता है कि कोरोना महामारी के दौरान भी हरीश रावत प्रदेशभर के जनपदों में अपने उपस्थिति दर्ज करवा रहे है। इतना ही नहीं सोशल मीडिया के जरिये हरीश रावत कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ पदाधिकारियों से सीधे सम्पर्क साधकर अपने सियासी मैजेमेंट को मजबूत कर रहे है। भले ही कांग्रेस प्रदेश संगठन के कुछ नेताओं का साथ हरीश रावत को नहीं मिल रहा हो परंतु पार्टी के अधिकांश पुराने नेता भी हरदा की रणनीति को तवज्जो देते है। उत्तराखंड में कांग्रेस की सियासत में भी बदलाव के आसार बन रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत ने बागी नेताओं की वापसी को लेकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि कांग्रेस से बगावत करने वाले पार्टी और जनता से माफी मांगते हैं तो उनकी वापसी पर उन्हें आपत्ति नहीं होगी। उन्होंने अपनी पीड़ा को भी बयां करते हुए कहा कि बागी नेता लोकतंत्र के अपराधी रहे हैं। उन्होंने सरकार गिराकर राज्य में अस्थिरता लाने का महापाप भी किया है। गौरतलब है कि वर्ष 2016 में नौ बागी विधायकों में शामिल विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, अमृता रावत, सुबोध उनियाल, कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन, डॉ शैलेंद्र सिंघल, रेखा आर्य, शैलारानी रावत ने भाजपा का दामन थाम लिया था। जबकि कांग्रेस के कद्दावर नेता यशपाल आर्य व पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज भी कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा में शामिल हो गये थे। एक साथ बड़े नेताओं की बगावत से उत्तराखंड में कांग्रेस की सियासी जमीन सिमट चुकी है। राजनीतिक विश्लेसकों की माने तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में हरीश रावत, डा- इंदिरा हृद्येश,प्रीतम सिंह, किशोर उपाध्याय व अन्य फ्रंटल संगठनों के समर्थकों में एकजुटता का आभाव पार्टी की सबसे कमजोरकड़ी साबित हो रही है। वर्ष 2017 में विधानसभा में भाजपा के हाथों बुरी तरह पराजित हुई कांग्रेस पार्टी के नेताओं को विधानसभा चुनाव के बाद सहकारिता, नगर निकाय, लोकसभा चुनाव और पंचायत चुनाव समेत अब तक हुए तमाम चुनाव में कांग्रेस को पराजय ही नसीब हुई है। अब अगर भविष्य में हरीश रावत की रणनीति को बल मिलता है तो फिर एक बार कांग्रेस के दिन बहुरने में देर नहीं लग सकती है। जबकि प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने वाली भाजपा को बड़ा झटका भी लग सकता है।
कांग्रेस में नई रणनीति के संकेत,हाईकोर्ट में फंसा है स्टिंग का पेंच
देहरादून। उत्तराखंड की सियासत में सबसे चर्चित स्टिंग कांड को लेकर एकबार फिर बहस छिड़ सकती है। उत्तराखंड में वर्ष 2016 में हरीश सरकार के खिलाफ विधायकों की बगावत पर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और कार्यसमिति के सदस्य हरीश रावत ने भी पार्टी की नई रणनीति के संकेत दिए। कांग्रेस की पिछली हरीश रावत सरकार को पहले गिराने में अहम भूमिका निभाने वाले दस विधायकों और कद्दावर नेताओं को लेकर पूर्व सीएम हरीश रावत के रुख में पहली बार बदलाव दिख रहा है। बागी नेताओं पर हर वक्त तल्ख रहने वाले हरीश रावत ने मीडिया से बातचीत में कहा कि बागी क्षमा मांगते हैं तो पार्टी में उनकी वापसी का रास्ता खुल सकता है। गौर हो कि पूर्व सीएम हरीश रावत और तत्कालीन कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट में मामला लंबित चल रहा है। इतना ही नहीं तत्कालीन सीएम हरीश रावत का तथाकथित तौर पर किये गये स्टिंग के प्रसारण को लेकर भी फैसला नहीं आया है। ऐसे में पिछले दिनों सुनवाई के दौरान सीबीआई और हरीश रावत अपना पक्ष रख चुके है। वहीं हरक सिंह रावत द्वारा याचिका को वापिस लिये जाने के संकेत भी मिले है। वहीं अब चार वर्ष में पहली बार अचानक हरदा ने अपनी चुप्पी तोड़ दी है तो दूसरी तरफ प्रदेश की सत्तासीन भाजपा सरकार की अंदरूनी सियासत में भी खलबली मच गई है।

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