उत्तराखंड के नेताओं पर अफसरशाही हावी…नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ने कहा-तो सरकार किस काम की?
भाजपा और कांग्रेस के दिग्गजों के बीच सियासी बहस
सरकार ने दिये थे निर्देशः सभी प्रमुख सचिवों, सचिवों, मंडलायुक्तों, पुलिस महानिदेशक,जिलाधिकारियों और सभी विभागाध्यक्षों को शिष्टाचार निभाना अनिवार्य
देहरादून। उत्तराखंड में अफसरशाही को लेकर अब सत्तासीन भाजपा और कांग्रेस के दिग्गजों के बीच सियासी बहस छिड़ गई है। हालांकि मामला मुख्यमंत्री तक पहुंचने के बाद मुख्य सचिव ने सभी अपर मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों, सचिवों और अपर सचिवों को मंत्रियों की बैठकों में उपस्थिति सुनिश्चित करने के निर्देश दे दिए हैं। बहरहाल अब सवाल इस बात का है कि आखिर अफसरों की मनमानी और जनप्रतिनिधियों के बीच आपसी तालमेल कब और कैसे बनेगा। गौर हो कि प्रदेश में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के बाद सबसे ताकतवर समझे जाने वाले दिग्गज भाजपा नेता मदन कौशिक की अहमियत इससे समझी जा सकती है कि उन्हें सरकार में शासकीय प्रवक्ता की जिम्मेदारी दी गई है। जिसमें मदन कौशिक अब तक अपनी कुशल कार्यशैली का परिचय दे चुके है वहीं विधानसभा में भी संसदीय कार्यमंत्री का दायित्व वह बखूबी निभा चुके है। अनेक जनमुद्दों पर विपक्ष के सवालों का जवाब देने के साथ ही जटिल मसलों का हल निकालने की कला उनके पास है। ऐसे में राज्य के अनेक ऐसे दिग्गज नेता है जो अक्सर अफसरों की कार्यप्रणाली या फिर उनके अड़ियल रूख पर घोर नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं। जनसमस्याओं के निस्तारण की बात हो या फिर विकास कार्यों को मंजूरी की अधिकांश मसलों पर अधिकारियों और नेताओं के बीच विवाद गहराता जा रहा है। कई जनपदों में अधिकारियों पर मनमानी का आरोप लगाया गया, जबकि अधिकारियों द्वारा भी नेताओं को नसीहते दे दी गई। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड को अलग राज्य बने अब 20 साल होने जा रहे हैं। सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो, या भाजपा की, अफसरों के व्यवहार से तंग आकर विधायकों और मंत्रियों ने सार्वजनिक मंचों पर अपनी व्यथा जाहिर करने से गुरेज नहीं किया। इसी सरकार की बात की जाए तो वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत से लेकर यशपाल आर्य, सतपाल महाराज, अरविंद पांडेय और राज्य मंत्री रेखा आर्य तक कई मौकों पर अफसरों की कार्यशैली और मंत्रियों के साथ उनके रवैये पर तल्ख टिप्पणी कर चुके हैं। वहीं अधिकारियों और मंत्रियों के बीच चल रही नूराकुश्ती क्षेत्र के दिग्गज विधायकों के साथ ही चल रही है। सत्तारूढ़ भाजपा के किच्छा से विधायक राजेश शुक्ला ने विधानसभा अध्यक्ष को जिलाधिकारी ऊधमसिंह नगर के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की सूचना दी है। वहीं सत्तासीन भाजपा के विधायक राजकुमर ठुकराल भी विकास कार्यों व अन्य मुददो के प्रति अधिकारियों की लचर कार्यप्रणाली को लेकर सीएम से शिकायत कर चुके है। महत्वपूर्ण बात यह कि यह सब कुछ तब हो रहा है जब हाल ही में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने नौकरशाही पर तल्ख टिप्पणी की थी। मुख्यमंत्री ने कहा था कि जनप्रतिनिधियोंका दर्जा अधिकारियों से ऊपर है। अधिकारियों को जनप्रतिनिधियों का हर हाल में सम्मान करना चाहिए। अधिकारी अक्सर ये भूल जाते हैं, लिहाजा उन्हें समय-समय पर याद दिलाना पड़ता है। उस वक्त भी सचिवालय प्रशासन की ओर से बाकायदा सभी अपर मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों, सचिवों, मंडलायुक्तों, पुलिस महानिदेशक, जिलाधिकारियों और सभी विभागाध्यक्षों को विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए गए। इसमें सभी सरकारी सेवकों को संसद व विधानसभा सदस्यों के प्रति शिष्टाचार को निभाना अनिवार्य करार दिया गया था। इस सबके बावजूद मुख्यमंत्री की नसीहत को एक महीना भी नहीं गुजरा और ताकतवर कैबिनेट मंत्री को अफसरों की मनमनी का सामना करना पड़ गया।
नौकरशाहों के बचाव में उतरे कांग्रेसी दिग्गज
कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक की बैठक में विभागीय सचिवों के नहीं पहुंचने का मामला तूल पकड़ने लगा है। कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने बुधवार को अफसरों की मनमानी पर कांग्रेस ने जहा अधिकारियों का बचाव कियाा वहीं राज्य सरकार पर भी सियासी पलटवार किया है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने मुद्दे को जनप्रतिनिधियों के सम्मान की लड़ाई कहने की बजाये सत्तासीन भाजपा नेताओं को ही जिम्मेदार ठहरा दिया है। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता एवं नेताप्रतिपक्ष डा- इंदिरा हृदयेश का एक बयान सोशल मीडिया में तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें उन्होनें प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। इस मामले को लेकर हांलाकि नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने नौकरशाहों का पक्ष लिया है मगर डा- इंदिरा ने राज्य की भाजपा सरकार पर तल्ख टिप्पणी करने से सियासत गरमा गई है। प्रदेश सरकार के मंत्री और विधायक भले ही नौकरशाही को बेलगाम कह रहे हों, लेकिन नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने राज्य के नौकरशाहों का समर्थन किया है। इंदिरा हृदयेश का कहना है कि पुरानी कहावत है कि घोड़ा अपने घुड़सवार को पहचानता है, जब घुड़सवार ही कमजोर हो जाता है, तो घोड़ा अपने घुड़सवार को लात मारकर गिरा देता है। इस कहावत में नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने नौकरशाहों को घोड़ा और मंत्री-विधायकों को घुड़सवार बताया है। उनका कहना है कि अफसरों पर बेवजह के इल्जाम लगाने से बेहतर है कि सरकार को अपनी कमियों के बारे में देखना चाहिए। जब राज्य के अंदर अधिकारी सरकार के विधायकों और मंत्रियों की नहीं सुन रहे हैं तो वह सरकार किस काम की। उन्होंने कहा कि मैं विपक्ष में रहकर भी मुख्य सचिव से लेकर जिले के अधिकारियों से काम करवा लेती हूं। किच्छा विधायक राजेश शुक्ला के उधमसिंह नगर के डीएम नीरज खैरवाल के खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष को भेजे गए विशेषाधिकार हनन पत्र पर उनका कहना है कि किसी भी विधायक को सार्वजनिक तौर पर अपमानित किया जाना विशेषाधिकार हनन बनता है। इस मामले में विधायक के विशेषाधिकार हनन पत्र को पढ़ेंगी और उसके बाद ही कोई प्रतिक्रिया देंगी। उनका कहना है कि विशेषाधिकार हनन बड़ा मामला होता है। नौकरशाही को भी इसको हल्के में नहीं लेना चाहिए। वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने प्रदेश में नौकरशाही के हावी होने को लेकर सरकार पर तंज कसा। उन्होंने कहा कि प्रदेश में अफसरशाही हावी है। अधिकारी, मंत्रियों की सुनने को तैयार नहीं हैं। कई दफा ऐसा भी देखने को मिला है, जब अदालत को प्रशासनिक कामकाज के लिए सरकार को नसीहत देनी पड़ी।
# एन.एस.बघरी ‘नरदा’