संदिग्ध व संभावित रोगियों की जांच सबसे बड़ी चुनौती

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केन्द्र सरकार के आवाहन पर विगत 22मार्च को पूरे देश में ऐतहासिक बंद,शाम पांच बजे स्वास्थ्य, स्वच्छता, पुलिस, प्रशासन को देश द्वारा अभूतपूर्व सैल्यूट के बाद एकाएक देश में अनेकों प्रदेेशों में राज्य सरकारों द्वारा 31मार्च तक जनता कफ्रर्यू की अवधि को बढ़ा दिया है। इससे बहुत बड़ी आबादी सेल्फ आईसोलेट हो चुकी है। अब जब देश में कोरोना वाइरस को लेकर इतने सख्त कदम उठायेे जा रहें है,तो सवाल उठना लाजमी है कि स्वास्थ्य सुविधाओं में जमीनी तैयारी क्या है। इस वत्तफ़, इतना कहना उचित होगा की बड़ी आबादी को आईसोलेट करने के प्राथमिक कदम के बाद केन्द्र व राज्य सरकारों को ज्यादा सुचिंतिंत, सुसंगत और ठोस रणनीति का ऐलान करना होगा। भारत जैसी भारी घनत्व की जनसंख्या वाले देश में किसी भी महामारी को सामुदायिक स्तर तक फैलने से बचाने हेतु सबसे प्राथमिक कदम बड़ी संख्या में संदिग्ध व संभावित रोगियों की जांच ही होगी, जिससे प्राप्त आंकड़ों के आधार पर अगले बड़े कदम उठाये जा सकेंगें। कोविड-19 के मामले में भारत सरकार का सबसे पहला कदम अधिक से अधिक लोगो को जांच के दायरे में लाना होगा। सवा सौ करोड़ से भी अधिक की आबादी वाले भारत में कोरोना वायरस की टेस्टिंग के लिए 52 सेंटर्स हैं ओर देश की क्षमता रोजाना 10000 टेस्ट करने की है लेकिन भारत कुछ दिनों पहले तक हर रोज सिर्फ 90 टेस्ट ही कर रहा था पिछले दो-तीन दिन से हर रोज 500 से 700 सैंपल टेस्ट किए जा रहे है इसलिए फिलहाल कम मामले सामने आ रहे हैं। दरअसल अभी तक देश मे सिर्फ उन्ही लोगों के परीक्षण किये जा रहे है जो या तो कोरोना वायरस से प्रभावित किसी देश की यात्र करके लौटे हैं या फिर कोरोना वायरस के किसी पुष्टि मामले से जुड़े हैं और उनमें 14 दिनों के क्ववेरंटाइन में रऽने के बाद भी लक्षण नजर आते हों। अभी तक कोरोना के लगभग 25000 परीक्षण ही किए गए है यानी अभी उस क्षमता का 7 से 10 फीसदी इस्तेमाल हो रहा है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सभी देशों से इस महामारी पर रोक लगाने के लिए ज्यादा से ज्यादा परीक्षण करने की सलाह दी है। अन्य देशों की बात करें तो सार्वधिक प्रभावित देश इटली में हर 10 लाऽ आबादी पर 826 लोगों का टेस्ट किया जा रहा हैजबकि भारत मे 10 लाऽ लोगों पर लगभग 8 लोगो की टेस्टिंग हो रही हैं। अब भारत सरकार को क्या करना चाहिये। हमारी राय में भारत को दुनिया के अन्य देशों से सबक लेकर कोविड-19 की जांच मुफ्रत या न्यूनतम राशि पर कराने का फैसला करना चाहिए। एक अच्छी बात यह है कि सरकार ने अब कुछ मान्यता-प्राप्त निजी जांच-लैब्स को भी कोविड-19 की जांच करने की इजाजत दे दी है। हमारी सरकार के पास अपना स्वास्थ्य-तंत्र उतना सक्षम और विशाल तो है नहीं कि हालात ऽराब होने की स्थिति में बड़े पैमाने पर बीमार लोगों की जांच सरकारी अस्पतालों या शासकीय लैब्स में करा सकें। ऐसे में निजीकृत-लैब्स का सहारा लेना जरूरी था। सरकार के इस बेहतर फैसले को बड़े स्तर में लागू किये जाने, संभावित मरीजों को स्वयं जांच के लिये आगे आने के लिये प्रेरित करने में अबं असली समस्या जांच की रकम में है। निजीकृत लैब्स को जांच के लिए 4500 रूपये तक वसूलने की इजाजत दी गई है। इसमें से 3000 रूप्ये टैस्टिंग लागत व 1500 रूपये स्क्रीनिंग टैस्ट शामिल है। भारत की आम जनता के हिसाब से यह बहुत ज्यादा है। अगर कोई पाजिटिव पाया गया तो इलाज का ऽर्च भी उसे ही झेलना है! यदि एक व्यत्तिफ़ पोजिटिव पाया गया तो उसके पूरे परिवार व संपर्कों को जांच की इस मंहगी प्रक्रिया से गुजरना एक गरीब, निम्न मध्य वर्गीय या यहां तक कि मध्यवर्गीय परिवार के लिए यह बड़ा बोझ होगा! अगर हमारे मुल्क में भी स्वास्थ्य बजट को कम से कम 6 फीसदी लगा गया होता और देश में हर इलाके में अच्छे सरकारी अस्पतालों की अच्छी ऽासी संख्या होती तो आज भारत के सामने इतनी गंभीर स्थिति नहीं पैदा होती! फिलवत्तफ़, इन समस्याओं और सीमाओं के बीच आपदा से जूझने, जनता, समाज और देश को उससे उबारने की कोशिशों पर जोर देना होगा! सरकार इन लैब्स को न्यूनतम राशि में जांच करने को कहे या फ्री-जांच के लिए उन्हें जरूरी उपकरण आदि मुहैया कराये या उन्हें अपने स्तर से एक निश्चित रकम का भुगतान करने का फैसला करे ! वैश्विक आपदा की इस घड़ी में शासन को इतना तो फर्ज निभाना चाहिए साथ ही, टेस्ट में जो लोग पॉजिटिव निकले उन्हें तुरंत आइसोलेशन में रऽने की व्यवस्था करनी चाहिए।

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