सत्ता के नशे में मदमस्त न रहें भाजपाई

जमीन से जुड़े भाजपा कार्यकर्ताओं की अनदेखी का भुगत रही खामियाजा

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सुनील राणा
रूद्रपुर। आखिर क्या कारण है कि वर्ष 2014 और वर्ष 2019 में केंद्र में भाजपा की प्रचण्ड बहुमत से सरकार बनी थी। वर्ष 2014 के बाद पूरा विपक्ष एक स्वर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आक्रामक हो गया था। देश भर के विपक्षी दल जो एक दूसरे को फूटी आंख भी नहीं सुहाते थे वह केंद्र से भाजपा की सरकार को बेदखल करने के लिए वर्ष 2019 में एक मंच पर आ गये थे लेकिन वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने जिस प्रकार से भाजपा को या यूं कहें कि नरेंद्र मोदी को अपना समर्थन दिया था वह देश की इस राजनीति में विलक्षण समय कहा जा सकता है कि जब वर्ष 2019 में भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में आयी थी और पुनः भाजपा की सरकार बनी थी लेकिन क्या कारण हैं कि देश के वही मतदाता इन विधानसभा चुनाव में भाजपा को सिरे से नकार रहे हैं। एक के बाद एक होने वाले विधानसभा चुनाव में राज्यों की जनता भाजपा को स्वीकार नहीं कर पा रही। जहां एक ओर लोकसभा के चुनाव कहीं न कहीं राष्ट्रहित और देश हित को लेकर जनता से जुड़े होते हैं वहीं विधानसभा चुनाव राज्य की मूलभूत समस्याओं को लेकर सामने आते हैं। ऐसे में कहीं न कहीं यह माना जा सकता है कि जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें रही थीं वहां के भाजपा नेता जनता से जुड़े मुद्दों को सुलझाने में नाकाम साबित हुए वहीं जिन जमीन से जुड़े नेताओं ने भाजपा में रहते हुए अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया वह आज हाशिये पर क्यों चले गये? जिसका सीधा कारण नजर आता है कि सत्ता के नशे में मदमस्त होकर भाजपा के नेता जमीनी कार्यकर्ताओं की हकीकत ही भूल चुके हैं और लगातार भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की जा रही है। स्थिति यह बन चुकी है कि निहित स्वार्थ के लिए भाजपा को अपनाने वाले लोगों को पार्टी में सम्मान दिया जा रहा है और जिन लोगों ने धरातल पर रहकर भाजपा को एक पौधे से वटवृक्ष के रूप में पल्लवित किया है वह स्वयं के वजूद के लिए आज भाजपा के इन्हीं नेताओं की वजह से हाशिये पर बैठे हुए हैं। उत्तराखंड में भी कमोबेश यही स्थिति नजर आती है। कई बार विपक्ष के नेता यह आरोप लगा चुके हैं कि राज्य में ब्यूरोक्रेसी पूरी तरह हावी हो चुकी है और कहीं न कहीं इसमें सच्चाई भी नजर आती है क्योंकि भाजपा के जनप्रतिनिधि सत्ता में आते ही सर्वेसर्वा बन जाते हैं और पार्टी में आधिपत्य की लड़ाई को लेकर एक दूसरे को नीचा दिखाने में कभी नहीं चूकते। जब से केंद्र में नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली है और जिस प्रकार से देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में पीएम मोदी ने देश का सम्मान बढ़ाया है उससे जाहिर सी बात है कि कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा है और कार्यकर्ताओं के इसी हौसले की बदौलत केंद्र के अलावा कई राज्यों में भाजपा की सरकारें बनीं। तो मानों भाजपा नेताओं को यह गुमान हो गया कि सत्ता तो सदैव ही उनके दरवाजे पर दस्तक देती चली आयेगी क्योंकि मोदी है तो मुमकिन है। लेकिन वह यह भूल गये कि एक जनप्रतिनिधि होने के नाते राज्य की जनता और कार्यकर्ताओं का सम्मान करना उनका कर्तव्य है। मात्र मोदी के नाम पर ही अपनी राजनीति को जीवनपर्यन्त चमकाया नहीं जा सकता। क्योंकि जब तक जनप्रतिनिधि का दायित्व मिलने के बाद जनता से जुड़े मूल मुद्दों और समस्याओं का समाधान नहीं किया जायेगा तो जनता भी उन्हें नकार देगी। देश में एक के बाद एक कई राज्य गंवाने के बाद अब भाजपा को यह मंथन करना पड़ेगा कि आखिर क्या कारण है कि देश के सालों से अटके हुए अनेक मुद्दे सुलझाने के बाद भी जनता उन्हें क्यों नकार रही है? इसका कहीं न कहीं सीधा कारण स्थानीय जनता की समस्याओं का समाधान करना और जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करना निकलकर भी सामने आयेगा। सिर्फ समाचार पत्रें में लाइम लाइट रहने से क्षेत्र का विकास नहीं हो सकता। यदि क्षेत्र का विकास करना है तो जमीन पर उतरकर काम करना होगा। अंत में सिर्फ इतना कि देश की जिन महान विभूतियों की जयंती व पुण्य तिथि पर इन्हीं समाचार पत्रें में जनप्रतिनिधि जो जनता को संदेश देते हैं यदि उस संदेश का 10 प्रतिशत भी अपने जीवन में आत्मसात कर लें तो संभवतः जनता के दुःखों और समस्याओं का स्वतः ही अंत हो जायेगा।

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