उत्तराखंड में पहली बार काला चावल का उत्पादन

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हल्द्वानी (उद संवाददाता)। किसान की मेहनत और उसका पसीना सही से इस्तेमाल हो तो खेत में अनाज नहीं सोना उगता है और यही साबित किया है उत्तराखंड के एक किसान ने। जिसने पहली बार उत्तराखंड के इतिहास में ऐसा कर दिखाया जो कोई भी ना कर पाया, यह किसान है नैनीताल जिले के गौलापार क्षेत्र के नरेंद्र मेहरा। श्री मेहरा ऑर्गेनिक खेती में दूर-दूर तक नाम कमा चुके हैं। खेती के प्रति उनका जुनून और अलग-अलग तरीके के प्रयोग करने की उनकी इच्छा ने उन्हें एक साधारण किसान से प्रगतिशील किसान तक पहुंचाया है। अपने खेत में पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती करने वाले प्रगतिशील किसान नरेंद्र मेहरा ने अब चीन के राजा महाराजाओं के लिए उत्पादित होने वाला काला चावल पैदा किया है। बहुत से लोग इस काले चावल के बारे में जानते तक नहीं है, जिसे प्रगतिशील किसान नरेंद्र मेहरा ने अपनी मेहनत और पसीने से इसकी खेती अपने खेत में लहलहा दी। भारत में यह चावल मणिपुर असम और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में किसानों द्वारा उत्पादित किया जा रहा है लेकिन मेहरा ने उत्तराखंड में पहली बार काला चावल उत्पादन किया है। श्री मेहरा ने डेढ़ कुंतल काला चावल उत्पादित किया है। उन्होंने मध्य प्रदेश के किसान से काले चावल के बीज मंगाए और अपने यहां ऑर्गेनिक खेती के साथ उसका उत्पादन किया तो उस जिससे उन्हें डेढ़ कुंतल चावल का उत्पादन हुआ और इस चावल को उन्होंने संरक्षित किया है। नरेंद्र मेहरा कहते हैं कि पंतनगर विश्व विद्यालय के वैज्ञानिक भी इस काले चावल की काफी सराहना कर चुके हैं। सबसे खास बात यह चावल जितना पौष्टिक है उतना ही औषधीय गुणों से भरपूर भी है। इस चावल के लिए धान के बीज की कीमत अट्टारह सौ रुपए प्रति किलो है और ऑर्गेनिक तरीके से इसके उत्पादन पर बाजार में 600 रुपये प्रति किलो की डिमांड है। मेहरा का कहना है कि अगर राज्य सरकार काले चावल को बढ़ावा दे और किसानों को इसके उत्पादन के लिए जागरूक करें तो किसानों की आय में काफी वृद्धि हो सकती है।

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