सूदखोरों के आतंक से आखिर कब मिलेगी निजात
पिछले एक सप्ताह में सूदखोरों से त्रस्त दो लोग कर चुके हैं आत्महत्या, पुलिस मौन
सुनील राणा
रूद्रपुर,(उद संवाददाता)। जनपद में सूदखोरों का आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है। सूदखोरोें से पीड़ित लोगों के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। पिछले एक सप्ताह में जनपद में सूदखोरों के आतंक से त्रस्त दो लोगों ने आत्महत्या कर ली। उनके आतंक से निजात दिलाने को लेकर विरोध प्रदर्शन भी हुए लेकिन पुलिस सब कुछ जानते हुए भी मौन है। पूर्व में भी पुलिस के आलाधिकारियों को इस मामले को लेकर पीड़ितों ने शिकायत की थी लेकिन सूदखोरों पर कड़ी कार्रवाई न होने के कारण उनके हौसले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। आलम यह हो चुका है कि दो वक्त की रोजी रोटी कमाने के लिए गरीब लोग किसी न किसी वजह से इन सूदखोरों का शिकार बन जाते हैं और वह चाहकर भी उनके चंगुल से मुक्त नहीं हो पाते। रूद्रपुर में तो सूदखोरों ने बाकायदा अपने कार्यालय बना रखे हैं और ब्याज वसूलने के लिए दबंगों की फौज रखी हुई है जिससे उनके चंगुल में जकड़ा व्यक्ति सिर्फ जीवन भर के लिए उनका गुलाम बनने को मोहताज है। सूदखोर 10प्रतिशत ब्याज पर रकम देते हैं। इनके शिकार ज्यादातर फड़, ठेली व छोटे दुकानदार होते हैं। 10प्रतिशत ब्याज का जो पहिया घूमता है वह थमने का नाम नहीं लेता। वैसे तो ब्याज पर पैसे देने के लिये लाइसेंस जारी किया जाता था लेकिन जनपद में वर्ष 2012 के बाद ऐसा कोई भी लाईसेंस जारी नहीं हुआ। रूद्रपुर के आवास विकास, जगतपुरा, इन्दिरा कालोनी सहित अन्य क्षेत्रों में बाकायदा सूदखोरों ने अपने कार्यालय खोल रखे हैं और ब्याज लेने वालों की रजिस्ट्री में प्रविष्टि कर दी जाती है और ब्याज लेने के एवज में जबरन दबाव बनाकर ब्लैंक चेक ले लिये जाते हैं जहां एक बार ब्याज लेने वाले ने सूदखोरों को ब्लैंक चेक दे दिये तो मानों उसने अपनी जिंदगी सूदखोरों के हवाले कर दी। उसके बाद तो मानों प्रतिदिन के हिसाब से वह सूदखोरों को ब्याज चुकता करता जायेगा और मूल धनराशि कभी भी अदा ही नहीं कर पाता क्योंकि चक्रवृद्धि की दर से ब्याज का पहिया घूमता रहता है और मानते चलें कि यदि किसी व्यक्ति ने सूदखोर से 1हजार रूपए ब्याज पर ले लिये तो वह उसका ब्याज चुकता करते करते कब यह धनराशि इतने हजारों में पहुंच जायेगी कि उसे पता भी नहीं चलेगा। पिछले दिनों लालपुर के एक वृद्ध ने भी एक सूदखोर से 10हजार रूपए ब्याज पर लिये थे। इसके एवज में हजारों रूपए चुकता करने के बाद भी वह कर्ज से मुक्त नहीं हो पाया। सूदखोर ने उसको झांसे में लेकर ब्लैंक चेक प्राप्त कर लिया और उस चेक पर लाखों की धनराशि भर चेक को बाउंस करा लिया। बस, फिर क्या था? उस पीड़ित पर सूदखोर का कहर बरपने लगा और वह उसे जेल भेजने की धमकी देने लगा जिससे परेशान होकर उस वृद्ध ने आत्महत्या कर ली। गत दिनों यही मामला काशीपुर में भी आया कि जहां एक युवक ने एक टैम्पो चालक ने कुछ वर्ष पूर्व 20हजार रूपए ब्याज पर लिये थे। सूदखोर ने उससे तीन ब्लैंक चेक और स्टाम्प पर हस्ताक्षर करा लिये। समय बीतने के बाद 20हजार के एवज में टैम्पो चालक सूदखोर को 50हजार रूपए तक दे चुका था लेकिन उसे चेक और स्टाम्प वापस नहीं कर रहा था लेकिन सूदखोर का कर्ज समाप्त नहीं ंहुआ था जिससे परेशान होकर टैम्पो चालक ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। ऐसे अन्य मामले भी कई जगह के सामने आ चुके हैं जहां सूदखोर से त्रस्त लोग पुलिस से गुहार लगा चुके हैं लेकिन पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही। रूद्रपुर में तो यह धंधा बेहद फल फूल रहा है। सूदखोर लम्बी चैड़ी कारों में घूम रहे हैं और शहर की पाश कालोनियों में कोठियां बनाकर रह रहे हैं। उनके कार्यालय में तैनात दबंगों की फौज शाम होते ही ब्याज का चाबुक चलाना शुरू कर देती है। शहर के गली मोहल्लों से वसूली का अभियान शुरू हो जाता है। गरीब ठेली, फड़ वाले यदि किसी कारण आनाकानी करते हैं तो गालियों की ऐसी बौछार शुरू होती है कि मानों पीड़ित ने कोई बेहद गंभीर अपराध कर दिया हो। पूर्व में भी कई बार पीड़ितों ने पुलिस के आलाधिकारियों से इसकी शिकायत की थी लेकिन पुलिस ने कोई ठोस और कड़ी कार्रवाई नहीं की जिससे सूदखोरों के हौसले बुलंद हैं और उनका आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में अब पुलिस अधिकारियों को इन सूदखोरों पर सख्ती से अंकुश लगाना होगा अन्यथा कर्ज के बोझ तले गरीबों को जान देने के अलावा कोई और रास्ता नहीं होगा।
सूदखोरों नेे चेहरे पर ओढ़े हैं कई नकाब
रूद्रपुर,(उद संवाददाता)। शहर में सूदखोरी का धंधा करने वाले सूदखोरों ने चेहरे पर कई नकाब ओढ़ रखे हैं ताकि उन्हें यदि भविष्य में कभी किसी परेशानी का सामना करना पड़े तो वह ओढ़ा हुआ नकाब उनकी आड़ बन सके। शहर में सूदखोरों की जमात बढ़ती जा रही है और धड़ल्ले से 10 प्रतिशत ब्याज का धंधा फल फूल रहा है। जिसकी जद में आयेदिन कोई न कोई पीड़ित आ रहा है और चाहकर भी इन सूदखोरों के पंजे से बच नहीं पा रहा। हालांकि कई बार इसकी शिकायत अधिकारियों से की गयी लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही निकला। शहर के जो सूदखोर हैं उन्होंनेे अपने चेहरे पर कई प्रकार के नकाब ओढ़ रखे हैं और वह समाज में अपनी प्रतिष्ठा का ढिंढोरा पीटते हैं। किसी भी अनैतिक कार्य के लिए बचाव का सबसे बढ़िया नाम समाजसेवी है। बस, एक बार समाजसेवी बन जाओ तो उसकी आड़ में मन चाहे अनैतिक कार्य करते रहो। यह सूदखोर ऐसे ही नामों का सहारा लेकर अपना बचाव करते नजर आ रहे हैं।