सुगम और दुर्गम का तिकड़म समाप्त कर सकती है सरकार

उत्तराखंड में सुगम और दुर्गम की बजाये स्थानीय और जरूरत के आधार पर होना चाहिये सभी महकमों के कर्मचारियों का तबादला

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देहरादून। तेज गति से बढ़ते आधुनिकीकरण के इस दौर में उत्तराखंड जैसे छोटे एवं पहाड़ी प्रदेश की भौगोलिक प्ररिस्थितियों और यहां के समाजिक जीवन पर असर पड़ने लगा है। यहां की सवा करोड़ आबादी का एक तिहाई हिस्सा पहाड़ी क्षेत्रो में बसे हुए है। लेकिन भौतिक सुख भोगने की लालसा में प्रदेश में पलायान का दौर कुछ इस कदर हावी होने लगा है जिसका अनुमान अब अंगुलियों में गिनकर ही लगाया जा सकता है। इस एक तिहाई आबादी में से अब गिने चुने परिवार ही गांव में दिखाई द ेते है। ऐसा भी नहीं है कि पूरा गांव पलायन कर गया है मगर नौकरी चाकरी और रोजी रोटी के लिये परिवार के परिवार शहरों की ओर जा रहे है। यह सिलसिला बढ़ता जा रहा है। बड़ा सवाल यह भी उठा है कि आखिर देश में सबसे अधिक नौकरीपेशा लोग यहा है और प्रतिव्यक्ति आय में प्रदेश अव्वल है। तबादले को लेकर अक्सर ही चर्चायें की जाती है लेकिन ठोस नियमों के अभाव में यह व्यवस्था पूरी तरह से लड़खड़ा जाती हैं। गौर किया जाये तो किसी भी सरकारी कर्मचारी के लिये सुगम और दुर्गम की कैटेगिरी को ही समाप्त कर देना चाहिये। अगर सही प्रकार से नियमों का पालन किया जाये तो समस्या का समाधान हो सकेगा। कई बार देखा गया है कि कर्मचारी अपने परिवार की व्यवस्थाओं के लिये जूझता रहता है। ऐसा क्यों हो रहा है। इस दिशा में कार्ययोजना बननी चाहिये। नये सिरे से कानून बनाने के लिये व्यपक चर्चा की जरूरत है। मोटी सैलरी लेने वाले कर्मचारियों को वैसे तो आर्थिक परेशानी नहीं होती है मगर काम तो काम है फिर चाहे वह सुगम हो या फिर दुर्गम। सेना के जवानों के लिये जो कानून बनाया जाता है उसका सख्ती से पाहल होता है। सरकारी कर्मचारियों को भी सेना से प्रेरणा लेकर काम करना चाहिये। पिछले दिनों तबादले को लेकर महिला शिक्षिका के हंगामे के बाद सरकार काफी किरकिरी भी हो चुकी है। लेकिन अब तबादलों को सरकार ऐतिहासिक निर्णय लेने की तैयारी में हैं। पारदर्शी व भ्रष्टाचार विहीन तबादलों के लिए राज्य सरकार ने आनन-फानन में तबादला कानून पारित करने के साथ ही लागू तो कर दिया, मगर अब कानून को लागू करने में आ रही दिक्कतों के चलते वह उसमें बदलाव के लिए मजबूर हो गई है। अपर मुख्य सचिव कार्मिक राधा रतूड़ी ने सभी विभागों के अपर मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों, मंडलायुक्तों, सचिवों, प्रभारी सचिवों, सभी विभागाध्याक्षों ,कार्यालयाध्यक्षों और जिलाधिकारियों को पत्र भेजकर कहा है कि लोकसेवकों के वार्षिक स्थानांतरण अधिनियम-2017 में कुछ संशोधन प्रस्तावित हैं। अगर विभागों के पास कानून में संशोधन के लिए कुछ सुझाव हैं तो वे 15 दिन के भीतर कार्मिक विभाग को भेजें। बता दें कि तबादला कानून की विभिन्न धाराओं व विभिन्न पहलुओं को लेकर कार्मिक अक्सर विभाग से पूछते रहते हैं। यही नहीं जब से तबादला कानून लागू हुआ है, तब से बहुत से विभागों को इस कानून के दायरे से बाहर भी कर दिया गया है। यही नहीं कानून के तहत हुए तबादलों से कई विभागों के कर्मचारी नाखुश हैं। यहां तक कि कानून के उल्लंघन के समाचार भी लगातार आ रहे हैं। उधर, शासन के कई विभागों का तर्क है कि यह कानून व्यावहारिक नहीं है क्योंकि इसके तहत विभाग के हाथ बंध जाते हैं। मसलन किसी अस्पताल में कई विशेषज्ञ एक साथ चाहिए हों तो कानून आड़े आ जाता है। यही नहीं कहीं अगर सरकार को कोई बड़ी परियोजना बनानी हो तो तबादला कानून के कारण वह वहां उसके लायक व उस स्तर के तकनीकी विशेषज्ञ तैनात नहीं कर सकती।सूत्रों की मानें तो तबादला कानून से सबसे ज्यादा परेशान विधायक हैं जो अब मनमाने ढंग से तबादले नहीं करवा पा रहे हैं। यही नहीं तबादला कानून के लपेटे में कई मंत्रियों व नेताओं की पत्नियां व परिजन भी आ रहे हैं। अगर कानून मौजूदा रूप में लागू रहा और इन मामलों को लेकर कोई अदालत चला गया तो इन मंत्रियों व नेताओं को अपने परिजनों को मनमाफिक स्थान पर रखना नामुमकिन होगा। माना जा रहा है कि इन्हीं सब वजहों से सरकार तबादला कानून को अपने मनमाफिक बनाना चाहती है।पिछले दिनो सरकार ने सराहनीय पहल करते हुए पलायन आयोग का गठन किया और प्रदेशभर की सर्वे रिपोर्ट का खुलासा भी किया। इस रिपोर्ट में प्रदेश में पलायन और समाजिक जीवन पर आधारित आकड़े दिये गये हैं जिसे देखकर सरकारी सिस्टम पर कई सवाल भी खड़े होते हैं। अब समस्याओं को लेकर सवाल उठाये जाते है कि मूलभूत सुविधायें नहीं हैं,बिजली और पानी की समस्या, सड़कों और स्कूल, अस्पताल, कालेज आदि की व्यापक व्यवस्थायें नहीं होना भी बड़ा कारण माना जाता है। ऐसे में प्रदेश के भीतर ही अगर पलायन को रोका जाता है तो उसके लिये सरकार को नियम कानून और कार्ययोजनाओं में बदलाव लाने के कदम उठाने चाहिये। जनसमस्याओं को देखकर ही नीति बनायी जाये तो बार बार कानून बदलने की आवश्यकता नहीं होगी। राज्य गठन के बाद 18 वर्ष बीत चुके हैं मगर राज्य में एक तरफ पहाड़ी एवं दुर्गम जिलों में बढ़ते पलायन से जनता अब भी जूझ रही है वहीं शिक्षा,स्वास्थ्य औरसड़क जैसी मूलभूत सरकारी सुविधाओं को पहुंचाने में सरकार को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। वहीं दूसरी तरफ सरकारी नीतियों के कारण अब सरकारी कर्मचारियों को पोस्टिंग की मार झेलनी पड़ रही है। सरकारी फरमानों के फेर में कर्मचारियों को अपने परिजनों की व्यवस्थाओं को पूरा करने में भारी परेशानी हो रही है। इस समस्या का समाधान करने के लिये कर्मचारी संगठनों के साथ ही विभिन्न दलों ने मांग भी उठाई है। हांलाकि तबदलो को लेकर सरकार की नीतियं हमेशा सवालों के घेरे में रहती हैं। हाल ही में प्रदेश सरकार ने तबादला कानून एक्ट लागू कर सुगम और दुर्गम को अनिवार्य कर दिया था। इस तिकड़म को सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों पर भिड़ाने में सरकार सफल हो गई लेकिन इसमें पारदर्शिता की खामियां भी सामने आ गई। इस एक्ट को लागू करने के बाद कर्मचारियों के बीच जो मौजूदा हालात दिख रहे और जो विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं उससे भी इस समस्या का समाधान करना आवश्यक हो गया है। प्रदेश हित के लिये सभी को अब काम ईमानदारी से करना चाहिये और सुगम और दुर्गम की बजाये क्षेत्रीय और स्थानीय आधार पर सभी महकमों के कर्मचारियों का तबादला किया जाये। इससे जहां तबादला एक्ट को नयी पहचान मिलेगी वहीं कर्मचारी वर्ग भी खुशी खुशी काम करेगा। अगर कुछ क्षेत्रों में समस्या आ भी जाती है तो उसे वैकल्पिक व्यवस्थाअें से दूर किया जा सकता है। पिछले दिनों तबादले को लेकर ही प्रदेश के मुख्यमंत्री और एक महिला शिक्षिका के बीच छिड़ा द्वंद भी कानून को बदलने के लिये मजबूर कर गया। हालाकि सरकार ने अब बैकफुट पर आकर नये सिरे तबादला कानून में बदलाव करने का निर्णय लिया गया है। अब अगर बदलाव करना ही है तो नीतियों में खुली छूट देकर विकास कार्यों और अन्य जनसेवा के कार्याें की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है। अक्सर तबादलों को लेकर कर्मचारी समस्याओं से घिरे रहते हैं जबकि अपने परिवार को साथ लेकर काम करना हर कोई कर्मचारी चाहता है। गौर हो कि प्रदेश में त्रिवेंद्र सरकार सरकारी कर्मचारियों के तबादले को लेकर अब बड़ा बदलाव करने की तैयारी कर रही है। सूत्रों की माने तो इस बार सरकार कर्मचारियों को स्थानीय स्तर पर खुली छूट देकर कुछ नया करने के मूड में है।

(ईवनिंग डेली डेस्क)

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