भाजपा के खिलाफ महौल बनाने में कांग्रेस फेल

अधिकांश निकायों में हरदा की गैरहाजिरी से कांग्रेस को हुआ नुकसान

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देहरादून। निकाय चुनाव में इस बार भी भगवा लहर छायी रही। अधिकांश निकायों के साथ ही पांच नगर निगमों में भाजपा का परचम लहराया है तो वहीं इस बार जनता ने दो मेयर की सीटें कांग्रेस झोली में डाली है। वहीं दूसरी तरफ स्थानीय निकाय चुनावों के प्रचार में कांग्रेस के चुनावी मैनेजमैट को लेकर भी पार्टी के भीतर चर्चायें है। निकाय चुनाव में सत्तासीन भाजपा से मुकाबले के लिये कांग्रेस पास कई मुद्दे होने के बावजूद उसका चुनावी प्रचार बेदम दिखाई दिया। इसकी पहली बड़ी वजह यह नजर आ रही कि हरीश रावत जैसे मंजे हुए राजनीतिक िऽलाड़ी का प्रदेश में हुए चुनाव में सही उपयोग नहीं हो सका। इस बार के निकाय चुनाव में कांग्रेस के पास सरकार के िऽलाफ मुद्दों का भारी भरकम पिटारा था। कांग्रेस के पास निकाय चुनावों के लिए सीधे भाजपा पर हमला करने के लिए कई मुद्दे थे। वह चाहे शहरी क्षेत्र में हाईकोर्ट के आदेश के बाद अतिक्रमण के िऽलाफ कार्रवाई हो या फिर कथित स्टिंग आपरेशन के जरिये सरकार को अस्थिर करने की कोशिशें। भाजपा के संगठन महामंत्री पर महिला के यौन शोषण के आरोप हों या भाजपा महानगर अध्यक्ष विनय गोयल के महिला कार्यकर्ताओं के लिए कहे गये आपत्तिजनक शब्द। इसके साथ ही महंगाई व निकायों में भारतीय जनता पार्टी के पिछले शासन की नाकामी। कांग्रेस के नेता इन चुनावों में इन मुद्दों की बात तो रऽते रहे, मगर वे उतने प्रभावशाली तरीके बात नहीं रऽ पाये कि मतदाता भाजपा या औरों को नकार कर कांग्रेस की ओर जाता। द्रपुर समेत प्रदेश की मलिन और नजूल भूमि के कब्जेदारों को मालिकाना हक दिलाने का मुद्दा भी कांग्रेस उतनी सक्रियता ने नहीं भुना पायी। जबकि भाजपा ने अपने पक्ष में माहौल भी बनाया और चुनाव भी जीत लिया। राजनीतिक हलकों में र्चचा है कि इन मुद्दों को प्रभावशाली तरीके से जनता के बीच रऽने के लिए हरीश रावत सरीऽे नेता की जरूरत थी। कांग्रेस के भीतर वर्चस्व की लड़ाई जिस रास्ते पर चली उससे हालात ऐसे बन गये कि हरीश रावत ने ऽुद को चुनावों से किनारे रऽा। प्रत्याशियों के नामांकन के तुरंत बाद वह नौ दिन के असम दौरे पर चले गये। वहां से लौटने के बाद भी वह चुनावों में ज्यादा दिन नहीं रहे। उन्होंने देहरादून, हरिद्वार, कोटद्वार, रूद्रपुर, किच्छा, खटीमा, सितारगंज क्षेत्रें में तीन दिन का भ्रमण जरूर किया लेकिन पार्टी के स्तर पर उन्हें इस चुनाव में लगाने के लिए कोशिशें नहीं हुई। चुनाव में सांकेतिक रूप से प्रतिभाग करने के पीछे माना जा रहा है कि हरीश रावत उन्हें केंद्रीय राजनीति में इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिलने के बाद भी प्रदेश में उन्हें भरपूर तवज्जो न देने से आहत हैं। प्रदेश में इस बार भी कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन तो किया नहीं मगर जनता के बीच आत्मविश्वास वापस लाने की जद्दोजहद में जुटी उत्तराऽंड कांग्रेस को कई में तगड़ा झटका दिया है। जिसमें वह जीत के बेहद करीब आकर भी हार गई है। देहरादून के साथ ही हल्द्वानी और रूद्रपुर और काशीपुर में कांग्रेस ने भाजपा को टक्कर दी है। निकाय चुनाव में भाजपा से मुकाबले के लिये कांग्रेस के स्टार प्रचारक भी कुछ खासा असर नहीं दिखा पाये है। प्रदेश प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह,राजेश धर्माणी, प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह भले ही सक्रियता दिखाते रहे मगर चुनावी रणनीति बनाने में भाजपा से पीछे ही रह गये है। जबकि पूर्व सीएम हरीश रावत की गैरमौजूदगी को लेकर भी तरह तरह की चर्चायें है। हरीश रावत को प्रचार के लिय प्रदेश हाईकमान से तवज्जों नहंी मिलने की वजह भी कांग्रेस के लिये नुकसान देह साबित हुई है। जबकि हल्द्वानी की मेयर सीट पर स्थानीय विधायक होने के बावजूद नेता प्रतिपक्ष डा- इंदिरा अपना प्रभाव नहीं छोड़ पायी। रावत को स्टार प्रचारकों की सूची में भले ही शामिल किया गया, लेकिन पार्टी की ओर से बड़े नेताओं ऽासकर हरीश रावत के लिए कोई कार्यक्रम तय नहीं किया गया। प्रचार के लिए उनका कार्यक्रम उन्होंने ऽुद तय किया। प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह व सह प्रभारी राजेश धर्माणी के साथ ही अन्य नेताओं के दौरे भी हुए। नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश इस पूरे चुनाव में हल्द्वानी से बाहर नहीं निकल पायीं। इसके बावजूद हल्द्वानी नगर निगम भी हाथ नहीं आया। निकायों के इन परिणामों को भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ही लोकसभा चुनाव से पहले का लिटमस टेस्ट मानकर चल रहे थे। दोनों ही दलों ने इसके लिए पुरजोर कोशिश भी की। बागियों से नुकसान न हो इसके लिए पहला राउंड उन्हें मनाने का भी चला, लेकिन बाद में अनुशासन के नाम सख्ती भी हुई, लेकिन परिणाम आशानुरूप नहीं रहे। पिछले वर्षाे के निकाय चुनावों को देऽा जाए तो कांग्रेस को इस बार नुकसान हुआ है। हालांकि निकाय अध्यक्षों के चुनाव में कांग्रेस का आंकड़ा कुछ सुधरा है, लेकिन वार्डवार की गयी तुलना में यह साफ हो गया है कि कांग्रेस पिछले निकाय चुनाव की तुलना में इस बार और नीचे चली गयी है। 2008 में जहां कांग्रेस पार्षदों के 21 फीसद सीटों पर जीत दर्ज की थी, पांच साल बाद 2013 में यह आंकड़ा नीचे आकर 19-56 पर आ गया। इस वर्ष चूंकि कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए काफी दम लगाया था, लेकिन परिणाम सामने आये तो कांग्रेस को महज 17 फीसद पार्षद की सीटें ही मिल पायी।
‘‘नगर निकायों के चुनावों में उत्तराखंड के नगरीय मतदाताओं ने कुछ हमको दिया है कुछ भाजपा को भी दिया है। हमें स्थितियों पर चिंतन करने को कहा है तो भाजपा को चिंता दी है। हमें सोचना है मतदाता हम तक आते आते रुक क्यों गया! भाजपा को हरिद्वार और डोईवाला की हार के निहितार्थ खोजने हैं। किच्छा ने मुझे भी सौगात दी है, 13 हजार वोटों से कांग्रेस के उम्मीदवार जीते हैं, धन्यवाद किच्छा। अच्छे एकजुट संघर्ष के लिए कांग्रेसजनों को कोटिशः धन्यवाद। सौहार्दपूर्ण मतदान के लिए सभी का धन्यवाद।’’
हरीश रावत, कांग्रेस महासचिव

http://www.uttaranchaldarpan.in @Narendra Baghari (Narda)

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