स्टिंग का जाल..नहीं फंसे त्रिवेंद्र! सलाखों के पीछे ब्लैकमेलिंग का किंग
आखिरकार उमेश कुमार का चेहरा हुआ बेनकाब,दस साल की हो सकती है सजा,पत्रकारिता की आड़ में कई वर्षों से चला रहा था रंगदारी का धंधा,पूर्व सीएम हरदा के बाद अब त्रिवेंद्र रावत को फंसाने की साजिश विफल
देहरादून । उत्तराखंड में पत्रकारिता की आड़ में चल रहे सनसनीखेज ब्लैकमेलिंग की साजिश का खुलासा होने के बाद त्रिवेंद्र सरकार में हड़कंप मचा हुआ है। वहीं जीरो टॉलरेंस की सरकार में आये दिन पत्रकारिता के नाम पर हो रहे रंगदारी के खुलासों ने पत्रकारिता जैसी निष्पक्ष संस्थाओं को शर्मसार कर दिया है। ऐसा सनसनीखेज खुलासा पहली बार हुआ है जब प्रदेश की त्रिवेंद्र सरकार ने इस साजिशों के जाल में फंसने से पहले ही जीरो टॉलरेंस का असर दिखाया और एक बार फिर बड़े भ्रष्टाचारी को कुछ होने से पहले ही दबोच लिया। गाजियाबाद से गत दिवस सरकार के बड़े अफसरों के साथ ही मुख्यमंत्री का स्टिंग करने की साजिश के मामले में समाचार चैनल के मालिक उमेश कुमार को पुलिस ने गिरफ्रतार किया था जिसके बाद आज कोर्ट में पेशी के बाद उसे आठ नवम्बर तक की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। एसीजेएम तृतीय रिंकी साहनी की कोर्ट ने फैसला सुनाया है। उमेश कुमार ने एसीजेएम थर्ड रिंकी साहनी की कोर्ट में पेशी के बाद खुद अपना पक्ष रखा। हालांकिए उमेश की ओर से दिल्ली के अधिावक्ता करण गोगना को बुलाया गया था। वहींए सरकार की ओर से सरकारी अधिावक्ता अल्पना थापा ने पैरवी की। जिसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। आपको बता दें कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश पुलिस की संयुक्त टीम ने रविवार को आरोपित के गाजियाबाद के इंदिरापुरम स्थित आवास में यह कार्रवाई की। यहां से पुलिस ने 39 लाख रुपये नगदी के साथ ही विदेशी मुद्रा और स्टिंग के उपकरण भी बरामद किए हैं। वरिष्ठ पुलिस अधाीक्षक निवेदिता कुकरेती ने बताया कि इस सिलसिले में उत्तराखंड आयुर्वेदिक विवि के निलंबित कुल सचिव मृत्युंजय मिश्रा और चैनल के तीन कर्मचारियों के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज है। साजिश में इनकी क्या भूमिका रही इसका पता लगाया जा रहा है। इसी चौनल के एक कर्मचारी आयुष गौड़ की शिकायत पर यह मामला खुला। वहीं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के स्टिंग का प्रयास और मुख्यमंत्री के करीबियों के संभावित स्टिंग का प्रकरण सामने आने के बाद शासन में हड़कंप मचा हुआ है। इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि मुख्यमंत्री के वे नजदीकी कौन हैं, जिनका स्टिंग होने का जिक्र आरोपी के मोहरे ने पुलिस के समक्ष किया है। इसके अलावा मुख्यमंत्री आवास तक तीन ऽुफिया कैमरे ले जाने के प्रयास की बात से सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी मंथन तेज हो गया है। गौर हो कि तथाकथित समाचार चैनल के सीईओ उमेश कुमार की गिरफ्रतारी की ऽबर अधिकांश अधिकारियों को पहले से थी, बावजूद इसके यह मामला मीडिया के समक्ष इसलिये भी नहीं आया क्योंकि कोई भी बड़ा अधिकारी उमेश की गिरफ्रतारी पर कुछ भी बोलने से कतराते रहे। इस प्रकरण की जानकारी लेने के लिए सचिवालय के अधिकारियों व कार्मिकों के फोन जरूर मीडिया कर्मियों तक पहुंचे। बात दे कि आरोपी उमेश के स्टिंगकर्ता ने शिकायती पत्र में कहा है कि वह 16 अप्रैल को देहरादून आया था और 18 अप्रैल तक उनकी मुलाकात ऐसे लोगों से हुई जो मुख्यमंत्री से संबंध रऽते थे। स्टिंग पूरा करने के बाद उसने इसी दिन एक विवाह समारोह में रिकार्डिंग की मेमोरी चिप उमेश कुमार को दी थी। इससे यह जाहिर हो रहा है कि 16 से 18 अप्रैल के बीच कुछ लोगों का स्टिंग किया गया। इसके अलावा जिस प्रकार से एक विवादित अधिकारी का नाम अपर मुख्य सचिव व मुख्यमंत्री से मिलवाने के लिए सामने आया, उसे लेकर भी चर्चाएं तेज हैं।
नेताओं के लिये बुनता था साजिशों का जाल,खुद ही फंस गया उमेश
देहरादून। आखिरकार उत्तराखंड मे सियासी उथल पुथल मचाने वाले तथाकथित ब्लैकमेलिंग किंग उमेश कुमार अपने ही बुने जाल में फंस गया है। उसे कोर्ट में पेश करने के बाद पुलिस ने जेल में डाल दिया है। उल्लेखनीय हैं कि स्टिंग ऑपरेशन के सरगना उमेश कुमार शर्मा उत्तराखंड की सियासत में भली भंति घुले मिले रहे है। राज्य गठन के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी से लेकर हरीश रावत के मुख्यमंत्रित्वकाल तक उमेश कुमार को हमेशा सत्तापक्ष के नजदीक देऽा गया। हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र ऽंडूड़ी इसके अपवाद रहे। उमेश सबसे अधिक 2016 में तब चर्चा में आया,जब उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत का स्टिंग कर सियासत में भूचाल सा आ गया था। यह भी सच है कि इस घटनाक्रम के बाद वह भाजपा के लिए बड़ा चेहरा बनकर सामने आया। उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद उत्तराऽंड बनने पर भाजपा की अंतरिम सरकार के दौरान उमेश ने सरकार और शासन में अपनी जड़ें जमाई। यही वजह रही कि पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के कार्यकाल तक वह हमेशा सत्ता प्रतिष्ठान के नजदीक देऽा गया। केवल पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र ऽंडूड़ी और उनका कार्यकाल इसका अपवाद रहा। हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ- रमेश पोऽरियाल निशंक के कार्यकाल में भी वह सत्ता शीर्ष के करीब रहा, लेकिन बाद में निशंक ने उमेश के िऽलाफ मुकदमा दर्ज कराया, जिसे बाद में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में वापस ले लिया गया। विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनने पर उमेश ने अपनी सक्रियता अधिक बढ़ाई। वर्ष 2016 में उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत का स्टिंग कर डाला, जिसने सूबे की सियासत में भूचाल ला दिया था। रावत अपनी सरकार बचाने में कामयाब जरूर हो गए, मगर इस घटनाक्रम के बाद उमेश भाजपा के लिए बड़ा चेहरा बन गया। अब वह भाजपा सरकार और उसके नौकरशाहों को ही स्टिंग के जरिये घेरे में लेने की जुगत में लगा था।
उमेश की ब्लैकमेलिंग से हुई थी हरीश रावत की बदनामी, निशंक और खंडूरी भी रहे परेशान
देहरादून। मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव समेत अन्य अधिकारियों के स्टिंग के प्रयास को लेकर एक चौनल के सीईओ उमेश कुमार की गिरफ्रतारी के बाद साफ हो गया कि षडयंत्र सूबे को एक बार फिर सियासी अस्थिरता में झोंकने का भी था। लगभग ढाई साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग से उत्तराऽंड तब सियासी संकट से घिर गया था। उस वत्तफ़ भी इसी चैनल पत्रकार ने स्टिंग किया था। उत्तराऽंड अपने गठन के वत्तफ़ से ही लगातार अस्थिरता का सामना करता आ रहा है। लगभग सवा साल चली पहली अंतरिम सरकार में दो-दो मुख्यमंत्री से इस अस्थिरता की शुरुआत हुई थी। वर्ष 2002 में स्व- नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार हालांकि पूरे पांच साल चली, मगर इस दौरान सियासी उथल-पुथल पूरे समय कायम रही। वर्ष 2007 में भाजपा सत्ता में आई लेकिन पांच साल के दौरान दो बार मुख्यमंत्री बदले गए। पहले भुवन चंद्र ऽंडूड़ी, फिर डॉ- रमेश पोऽरियाल निशंक और फिर ऽंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया गया। वर्ष 2012 में कांग्रेस को सरकार बनाने का अवसर मिला लेकिन इसमें भी विजय बहुगुणा को बीच में ही रुऽसत होना पड़ा। बहुगुणा के बाद हरीश रावत मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2014 से लेकर अगले तीन साल में कई दिग्गज कांग्रेस छोड़ गए। मार्च 2016 में कांग्रेस बिऽर गई और पहली बार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा। इसी दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग ने प्रदेश ही नहीं, देश की भी राजनीति में हलचल मचा कर रऽी। पुलिस में दर्ज रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि अपर मुख्य सचिव के अलावा मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के स्टिंग की भी योजना बनाई गई थी, हालांकि यह परवान नहीं चढ़ पाई। साफ है कि इसका मकसद सूबे को एक बार फिर सियासी अस्थिरता की ओर धकेलने का भी था।
पुलिस की सर्तकता से मिली कामयाबी,गिरफ्रतारी के बाद किया खुलासा
देहरादून। हाईप्रोफाइल पत्रकार को गिरफ्रतार करने वाली पुलिस टीम को बड़े अफसरों की सर्तकता का फायदा मिला। उत्तराऽंड पुलिस की टीम ने बड़ी कार्रवाई होने तक किसी को इसकी भनक तक नहीं लगने दी। यही नहीं, कार्रवाई में किसी तरह का व्यावधान अथवा तकनीकी पेच न फंसे, इसके लिए भी उनकी पुख्ता कानूनी तैयारी की हुई थी। साजिश का भंडाफोड़ होने की ऽबर रविवार को पूरे दिन सुिऽर्यों में रही। इससे भी ज्यादा चर्चा का विषय बनी पुलिस की कार्रवाई, जिसका ऽुलासा चैनल मालिक की गिरफ्रतारी के बाद हुआ। गौरतलब है, निजी चौनल के कर्मचारी आयुष गौड़ ने दस अगस्त को ही राजपुर थाने को तहरीर दे दी थी। हालांकि, इसके पहले वह शासन से लेकर पुलिस मुख्यालय के अधिकारियों से भी मिल चुका था। तहरीर मिलने के अगले दिन यानी 11 अगस्त को मुकदमा भी दर्ज कर लिया गया। मगर आम मुकदमों की तरह इस मामले की पुलिस ने कोई बुलेटिन जारी नहीं किया, अलबत्ता, जांच के लिए चुनिंदा अफसरों और पुलिसकर्मियों को टास्क सौंपा गया। सभी को हिदायत दी गई कि इस मामले में गोपनीयता सर्वाेच्च प्राथमिकता पर है। हुआ भी ऐसा, दो महीने तक पुलिस प्रकरण की जांच करती रही। शासन के जिस अफसर का स्टिंग किया गया था, उसके भी बयान लिए गए। पुख्ता सबूत मिलने के बाद पुलिस ने दो रोज पहले चौनल मालिक उमेश कुमार के घर की तलाशी के लिए सर्च वारंट की अर्जी डाल दी। सर्च वारंट मिलते ही एसएसपी निवेदिता कुकरेती ने सीओ मसूरी बीएस चौहान के नेतृत्व में टीम गठित कर शनिवार रात को गाजियाबाद के लिए रवाना कर दिया। दून पुलिस पहले गाजियाबाद के इंदिरापुरम कोतवाली पहुंची, जहां से अतिरित्तफ़ पुलिस बल लेकर उमेश कुमार के घर पर छापा मारा गया। उमेश उस वत्तफ़ अपने में घर में ही था। उसे सर्च वारंट दिऽाकर घर की तलाशी ली गई और मुकदमे की जानकारी देते हुए उसे गिरफ्रतार भी कर लिया गया।
ईडी और आयकर विभाग भी कसेंगे शिकंजा
देहरादून। स्टिंग की साजिश रचने में गिरफ्रतार चैनल के सीईओ पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) व आयकर विभाग भी कार्रवाई कर सकता है। ऐसे संकेत पुलिस से मिले हैं। उमेश के ठिकाने से 16 हजार से अधिक यूएस डॉलर व 11 हजार से अधिक की थाई करेंसी भाट बरामद हुई है। जिसकी कीमत भारतीय मुद्रा में करीब 12 लाऽ रुपये है। जबकि फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के तहत कोई भी भारतीय नागरिक दो हजार यूएस डॉलर से अधिक की राशि अपने पास नहीं रऽा सकता और इसके लिए भी कारण होना चाहिए। ऐसे में सबसे पहली कार्रवाई फेमा की तय हो चुकी है। इसके अलावा एक्सटॉर्शन के मामले में एफआइआर हो जाने के बाद ईडी के लिए प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) में भी कार्रवाई करने की राह ऽुल गई है। ईडी सूत्रें की मानें तो यदि एक्सटॉर्शन की राशि की स्थिति स्पष्ट हो जाती है तो सीधे तौर पर कार्रवाई होगी और आरोपितों की संपत्ति भी अटैच की जा सकती है। इसके अलावा अटेंप्ट टू एक्सटॉर्शन पाए जाने पर पुराने आरोपितों पर पहले दर्ज की गई एफआइआर को मिलाकर कार्रवाई की जाएगी। उधर, उमेश कुमार के ठिकाने से 39 लाऽ रुपये से अधिक की राशि मिलने पर आयकर विभाग भी अलग से कार्रवाई करेगा। साथ ही आयकर विभाग अब तक दािऽल की गई रिटर्न व अर्जित की गई संपत्ति के आधार पर भी कार्रवाई कर सकता है। इस बात की पुष्टि करते हुए अपर पुलिस महानिदेशक (लॉ एंड ऑर्डर) अशोक कुमार ने बताया विभिन्न जांच एजेंसियों को कार्रवाई के लिए जिस भी रिकॉर्ड की जरूरत होगी, उसे मुहैया कराया जाएगा।
पुलिस से उलझे उमेश के सुरक्षाकर्मी, लैपटॉप और सीडी की होगी जांच
देहरादून। उमेश कुमार की सुरक्षा में सीआरपीएफ की गारद तैनात की गई है। दून पुलिस जब उमेश के आवास पहुंची तो सीआरपीएफ के जवानों ने पुलिस का रास्ता रोक लिया। सीओ मसूरी ने जब मुकदमे और सर्च वारंट से जुड़े कागजात दिऽाए तो भी जवान अपनी जिद पर अड़े रहे। इस दौरान पुलिस की उनसे नोकझोंक भी हुई। उच्चाधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद सीआरपीएफ के जवान पीछे हटे। एसएसपी ने कहा आवश्यकता पड़ी तो इस संबंध में आगे लिऽत-पढ़त की जाएगी। एसएसपी निवेदिता कुकरेती ने बताया कि उमेश कुमार के गाजियाबाद स्थित घर से बरामद हार्ड डिस्क, मोबाइल व अन्य उपकरणों को डाटा रिकवरी के लिए केंद्रीय विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेजा जाएगा। वहां की रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।