हाईकोर्ट में याचिका खारिज,निकाय चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप से इनकार
याचिकाकर्ता को चुनाव के बाद अपील करने की छूट,प्रदेश में सात नगर निगमों के मेयर सीट के आरक्षण को दी थी चुनौती
नैनीताल। प्रदेश में निकाय चुनाव के लिये नगर निगमों के मयर पदों के लिये जारी आरक्षण की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका को खरिज कर दिया है। साथ ही कोर्ट ने चुनाव प्रक्रिया के दौरान किसी भी तरह का हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। इतना ही नहीं कोर्ट में सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने यह भी कहा है कि अगर आरक्षण को लेकर आपत्ति है तो वह चुनाव के बाद भी याचिका दाखिल की जा सकती है। उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट ने सूबे के नगर निगम मेयर सीट के आरक्षण को चुनौती देती याचिका को ऽारिज कर दिया है। कोर्ट के फैसले के बाद निकाय चुनाव के खरिज होने की संभावनायें भी समाप्त हो गई। हांलाकि अब याचिकाकर्ता पर निर्भर करता है वह हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौदी दे या नहीं या फिर चुनाव के बाद हाईकोर्ट में दोबारा अपील की जाये। वहीं हाईकोर्ट के इस फैसले से सरकार ने भी राहत की सांस ली है। हाईकोर्ट के अधिवत्तफ़ा डीके त्यागी ने जनहित याचिका दायर कर कहा था कि रुड़की को छोड़ सात निगमों में से पांच को आरक्षित कर दिया जो। जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है। कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति मनोज तिवारी की ऽंडपीठ ने मामले पर सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य में निकाय चुनावों की अधिसूचना जारी हो चुकी है, इसलिए निकाय चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप उचित नहीं है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को छूट देते हुए कहा कि अगर लगता है इसमें कानूनी पेंच है तो चुनाव बाद चुनाव याचिका दािऽल कर सकते हैं। याचिका ऽारिज होने से सरकार व निर्वाचन आयोग को बड़ी राहत मिली है। अधिवत्तफ़ा डीके त्यागी ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि सरकार ने सात नगर निगमों में मेयर पद के लिए आरक्षण का निर्धारण गलत तरीके से किया है। सरकार ने रुड़की को छोड़कर देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, रुद्रपुर, काशीपुर, हल्द्वानी, कोटद्वार नगर निगमों का चुनाव करा रही है। इन सात निगमों में से मेयर के लिए पांच पदों को आरक्षित कर दिया गया, जबकि दो पद अनारक्षित हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के िऽलाफ है। याचिकाकर्ता के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में साफ किया है कि आरक्षण किसी भी पद के लिए 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता, मगर सरकार ने आरक्षण 70 फीसद कर दिया है, जो असंवैधानिक है, लिहाजा आरक्षण नए सिरे से तय किया जाये। गौर हो कि निकाय चुनाव की समयसीमा मई में समाप्त हो चुकी है। जबकि छः माह के विलंब के बाद चुनाव प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इसके बावजूद अब कोर्ट में आरक्षण के खिलाफ याचिका दाखिल ोने से नेताओं के साथ सरकार और निर्वाचन आयोग भी परेशानी में डाल दिया था। आखिरकार अब हाईकोर्ट ने चुनाव में किसी भी तरह का हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए इस याचिका को भी खारिज कर दिया है। जिसके बाद अब चुनाव प्रकिया निर्बाध रूप से संपन्न हो सकेगी।