गंगा मां के बेटे…तुमने क्यों नहीं सुनी पुकार?

सानंद के मरते ही बहने लगी ‘सियासी’ आंसूओं की गंगा,केंद्र सरकार की मानवीयता को नहीं जगा पायी सानंद की तपस्या,भाजपा के खिलाफ विपक्ष को मिला सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा

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देहरादून 12 अक्टूबर। देवभूमि उत्तराखंड में मोक्षदायिनी गंगा की निर्मलता और अविरलता के साथ ही अन्य हिमालयी नदियों के लिए प्रभावी कानून बनाने को लेकर 112 दिनों से तप (अनशन) कर रहे स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (प्रोफेसर गुरुदास अग्रवाल) अपना बलिदान कर गये। देश की सत्तासीन भाजपा सरकार के लिये आगामी चुनाव में सानंद की मौत सबसे बड़ा मुद्दा भी बन सकती है। स्वामी सानंद की मौत होते ही जहां अनशन को अनेदेखा वाली सरकार के साथ ही विपक्षी दलों के नेताओं के भी सियासी आंसूओं की गंगा बहने लगी। वहीं लंबे समय से अनशनरत स्वमी सानंद की मांगों को लेकर केंद्र सरकार बेरूखी भी कहीं न कही उनकी मौत के लिये जिम्मेदार है। उनकी मौत से पहले चिर निंद्रा में सोये सत्ता पक्ष के नेताओं की नजरें मातृसदन में अनशन पर बैठे संत की ओर नहीं गई। स्वामी सानंद की मौत के बाद देशभर से लोगों की प्रतिक्रियायें आ रही है। कोई उनकी मौत के लिये केंद्र सरकार को कोस रहा है तो कोई उनकी मौत पर संवेदनायें व्यक्त कर रहे है। डाक्टरों के अनुसार उनके शरीर में पोटेशियम और ग्लूकोज निचले स्तर पर आ गया था, इसकी वजह से दोपहर उन्हें हृदयघात आया। 86 वर्षीय सानंद अविवाहित थे। सत्यासी स्वामी सानंद ने एम्स ऋषिकेश को अपनी देह दान की हुई थी, लिहाजा पार्थिव शरीर को अभी एम्स में ही रखा गया। यहीं उनके अंतिम दर्शन के लिये उनके अनुयायी और परिजन भी पहुंचे। हालांकि पीएम नरेंद्र मोदी ने उनकी मौत के चंद पलों में ही अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए उनके बलिदान का सम्मान भी करने का प्रयास किया है। मगर जिस प्रकार इतने लंबे अरसे से अनशन पर बैठे बयोवृद्ध संत की पुकार को खुद पीएम मोदी जो स्वयं गंगा की निर्मलता के लिये देशभर में आये दिन जनजागरण करते हुए लंबे चैड़े उपदेश देते रहते है। इसके बावजूद लोगों में पीएम मोदी की इस बेरूखी या फिर मजबूरी बहस का विषय बन गई है। सोशल मीडिया पर लगातार केंद्र सरकार की अनेदेखी को लेकर सवाल किये जा रहे है। बहरहाल जिस प्रकार पूर्व में स्वामी निगमानंद की मौत को लेकर हंगामा हुआ था आज ठीक उसी घटना को दोहरा दिया गया। सवाल फिर उठने लगे हैं कि आखिर गंगा की अविरलता और निर्मला के लिये स्वामी सानंद के बलिदान से पूर्व केंद्र ने मानवीय पहल क्यों नहीं की। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010 में केंद्र की तत्कालीन यूपीए की सरकार के आदेश पर राज्य की निशंक सरकार ने प्रदेश में निर्माणधीन कई हाईड्रो प्रोजेक्टों को बंद करने का फैसला ले लिया था। इस पावर प्रोजैक्ट में 600 मेगावाट की लोहारी नागपाला हाईड्रो प्रोजेक्ट और फिर 380 मेगावाट की भैरोघाटी जलविद्युत परियोजना व 480 मेगावाट की मनेरीभाली जलविद्युत प्रोजेक्ट को बंद कर दिया गया था। इसके बाद भी वर्ष 2012 में स्वामी सानंद के आंदोलन शुरू किया तो राज्य सरकार ने प्रदेश और कें्रद की आधा दर्जन से अधिक पावर प्रोजेक्टों पर रोक लगा दी थी। वहीं इसके बावजूद वर्ष 2011 में ही गंगा में अवैध खनन पर पूर्ण रूप से रोक लगाने की मांग को लेकर अनशन कर रहे निगमानंद की भी अस्पताल में मौत हो गई। इसके बावजूद आज तक न तो निगमानंद की मांगों पर गौर किया गया और अब तो गंगा रक्षा के लिये स्वामी सानंद जैसे सन्यासी का भी बलिदान हो गया। उनकी मौत के बाद जनभावनाओं को भी ठेस पहुंची हैं। इधर सानंद की मौत को लेकर देश की सियासत भी गरमा गई है। पर्यावरण प्रेमियों के साथ ही राजनीतिक जानकारों की माने तो अगर मोदी सरकार ने पूर्ववर्ती सरकारों की तरह समय रहते कुछ वर्षों तक भी रोक लगा दी होती तो आज स्वामी सानंद का त्याग, तपस्या का स्मरण हो रहा होता जबकि उनके प्राण भी बचाये जा सकते थे। गौरतलब है कि हरिद्वार के मातृ सदन में अनशनरत 86 साल के बुजुर्ग संत ने दो बार पीएम मोदी को चिट्ठी भेजी। इस दरम्यान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, कांग्रेस प्रवक्ता जितिन प्रसाद अलग-अलग कार्यक्रमों में हरिद्वार पहुंचे हैं। अमित शाह तो दो बार हरिद्वार आए। एक बार पीएम मोदी भी देहरादून पहुंचे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के हरिद्वार में दर्जनों दौरे हुए। प्रदेश के दो कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक व सतपाल महाराज का तो घर ही हरिद्वार में है। लेकिन इस फेहरिस्त में शामिल एक भी नेता ने स्वामी ज्ञानस्वरूरप सानंद का हाल-चाल जानने की जहमत नहीं उठाई। स्वामी सानंद को अपना भाई बताने वाली उमा भारती तो रक्षाबन्धन पर भी उन्हें राखी बांधने नहीं पहुंची।पिछले दिनों पूर्व सीएम हरीश रावत और फिर दो दिन पर्वू ही भाजपा सांसद व पूर्व सीएम डा. रमेश पोखरियाल निशंक भी मातृसदन पहुंचे थे। जितना दुख स्वामी सानन्द की मौत पर आज कांग्रेस नेता जता रहे हैं, विपक्ष में रहते भाजपाई भी स्वामी के आंदोलनों से उतना ही दुखी होते थे। सत्ता में रहने पर न कांग्रेस ने गंगा पुत्रों की अहमियत समझी और न भाजपा ने कद्र जानी। मातृसदन में बीते 112 दिनों में कुछ पर्यावरणविद, चंद विपक्षी दलों के नेता और गिनती के सन्त ही स्वामी सानंद से मिले होंगे। लेकिन अब समय आ गया है कि स्वामी सानंद द्वारा उठाई गई मांगांे पर गंभीरता से विचार करने के लिये। उधर, मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद ने जिला प्रशासन पर सानंद की हत्या का आरोप लगाया। घोषणा की है कि नवरात्रों के बाद वह स्वयं इस आंदोलन को आगे बढ़ाएंगे। कहा कि, स्वामी सानंद की हत्या में शामिल अधिकारियों व मंत्रियों को सजा दिलाने की मांग को लेकर कठोर तपस्या (अनशन) करेंगे। उल्लेखनीय है किसात साल पहले मातृसदन के एक अन्य संत निगमानंद ने भी इसी मुद्दे पर 114 दिन के तप के बाद दम तोड़ दिया था।
प्रोफेसर जीडी अग्रवाल से स्वामी सानंद कहलाने लगे
देहरादून। 1932 में जन्मे जीडी अग्रवाल का कांधला, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.) जन्म स्थान है। जीडी अग्रवाल की पढ़ाई-लिखाई आइआइटी रुड़की से सिविल इंजीनियरिंग में हुई है। इन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट की उपाधि कैलिफॉर्निया विश्वविद्यालय से प्राप्त की। उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग में डिजाइन इंजीनियर के तौर पर अपनी नौकरी की शुरूआत की। बाद में आइआइटी कानपुर में पढ़ाने लगे। सिंचाई विभाग में डिजाइन इंजीनियर का काम बड़ी बांध परियोजनाओं के डिजाइन करना, नहरी व्यवस्था को बढ़ाना आदि जीडी अग्रवाल के काम का क्षेत्र था। ‘टिहरी डैम स्टडी कमेटी’ का एक झगड़ा कुछ लोग बार-बार याद करते हैं। टिहरी डैम पर काफी विवाद के बाद डॉ. मुरली मनोहर जोशी के अध्यक्षता में बनी इस कमेटी के बांध की ऊंचाई पर एक विवाद में जीडी अग्रवाल ने कहा था कि बांध की ऊंचाई बढ़ाने से गंगाजल की गुणवत्ता में कोई फर्क नही आएगा । 13 जून 2008 को जीडी का पहला अनशन गंगा बचाने को लेकर हुआ था। उसके बाद से आइआइटी वाले जीडी का सन्यासी जीडी के रूप में रूपांतरण सचमुच हो गया और वह प्रोफेसर जीडी अग्रवाल से स्वामी सानंद कहलाने लगे। आज के दिन वह माँ गंगा की रक्षा करते करते हमसे अलविदा हो गये ।
प्रधानमंत्री मोदी और कांग्रेस सुप्रीमो राहुल ने जताया दुख
नई दिल्ली/ देहरादून। पर्यावरणविद जीडी अग्रवाल के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के निधन पर दुख व्यक्त किया। ट्वीट में कहा कि शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण, विशेषकर गंगा स्वच्छता के प्रति उनका जुनून हमेशा याद रखा जाएगा। मेरी श्रद्धांजलि। वहीं पर्यावरणविद जीडी अग्रवाल के निधन पर दुख जताते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि ‘हम उनकी लड़ाई को आगे ले जाएंगे। राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, मां गंगा के सच्चे बेटे प्रोपफेसर जीडी अग्रवाल नहीं रहे। गंगा को बचाने के लिए उन्होंने स्वयं को मिटा दिया। उन्होंने कहा, हिंदुस्तान को गंगा जैसी नदियों ने बनाया है। गंगा को बचाना वास्तव में देश को बचाना है। हम उनको कभी नहीं भूलेंगे। हम उनकी लड़ाई को आगे ले जाएंगे।
नदियों के प्रति भी अपना दृष्टिकोण बदलना होगा
देहरादून। स्वामी सानंद की मौत पर उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा ने गहरी संवेदना व्यक्त की है। एक तरफ गंगा के नाम पर राजनीति के उच्च शिखरों पर पहुँचे हुए लोग है । गंगा को माँ या न जाने कितने ही अलंकरणों से पुकारने वाले सत्ता पर विराजमान लोग हैं। नमामी गंगा के नाम पर हजारों करोड़ रूपया पानी की तरह बहाया जा रहा है दूसरी ओर गंगा को बचाने के लिए सामाजिक कर्मियों व संतों को अपनी जान देनी पड़ रही है । यह क्रम कब तक चलता रहेगा कोई कुछ नहीं कह सकता। हमें अपनी सभ्यता व मानव जीवन को बचाना है तो नदियों के प्रति भी अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। नदियों का जीवन सास्वस्त है मानकर चलने वालों को नदियों को भी जीने का अधिकार देना होगा । एक तरह नदियों पर बोधों तथा टनलों की श्रंखलाएँ हम बनाने पर तुले पड़े है और दूसरी तरफ अविरल व निर्मल गंगा की भी कल्पना करते हैं । उत्तराखण्ड में गंगा सहित महत्वपूर्ण नदियों तथा उनकी सहायक नदियों पर बाँधो व टनलों की श्रृंखला बद्ध योजनायें प्रस्तावित हैं वहीं अविरल व निर्मल नदी का भी शोर है । तथा दूसरी ओर उत्तराखण्ड के खेत भी प्यासे हैं तथा लोग भी प्यासे हैं । लेकिन स्वामी जी के बलिदान को देश समझेगा ऐसा मुझे विश्वास है ।
सरकार ने दिखाई पूरी संवेदनशीलता: त्रिवेंद्र सिंह रावत
देहरादून। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (प्रो. जीडी अग्रवाल) के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। अपने शोक संदेश मे मुख्यमंत्री ने कहा कि गंगा को लेकर विभिन्न मुद्दों के लिए अनशनरत स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के निधन से उन्हें गहरा दुख पहुंचा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वामी सानंद की मुख्य मांग थी कि गंगा के लिए अलग से एक्ट बनाया जाए और राज्य में तमाम जलविद्युत परियोजनाओं को रद किया जाए। इस कार्य के अध्ययन और उस पर योजना बनाने में थोड़ा समय लगता है। हमारी सरकार और केंद्र सरकार लगातार उनसे संपर्क में थी, बातचीत होती थी। जैसे ही उन्होंने नौ अक्टूबर को जल का त्याग किया, उन्हें तत्काल ऋषिकेश एम्स में भर्ती कराया गया था। एम्स के डाक्टरों ने भी उनकी जान बचाने का भरसक प्रयास किया।
सानंद ने गंगा की सेवा के लिए जीवन आहूत किया: प्रेमचंद अग्रवाल
देहरादून। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद के देहावसान का समाचार पाकर विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल एम्स पहुंचे। प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद ने गंगा की सेवा के लिए अपना जीवन आहूत किया है। उन्होंने स्वामी सानंद को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि गंगा की अविरलता व निर्मलता को लेकर उनकी मांगे जायज थी, जिन पर विचार किया जाना चाहिए था। संभव है कि सरकार की कुछ मजबूरियां रही हैं। उन्होंने कहा कि स्वामी सानंद का देहावसान किन कारणों से हुआ यह पोस्टमॉर्टम के बाद ही पता चल पाएगा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने स्वामी सानंद का व्रत तुड़वाने के लिए हर संभव प्रयास किया, इसलिए यह कहना गलत है कि केंद्र सरकार स्वामी सानंद के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित नहीं थी।
नेताओं को सानंद की मांग अच्छी नहीं लगी: सुरेश भाई
देहरादून। जाने माने पर्यावरणविद सुरेश भाई ने कहा कि गंगा एक्ट बनाने की दुहाई देने वाली मोदी सरकार के सामने ही गंगा एक्ट की मांग के लिये पिछले 112 दिन से उपवास पर बैठे स्वामी सानंद ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए है। उनके प्राणों की बलि ऐसे वक्त ली गई है। जब देश में नमामि गंगे के नाम पर करोडों रपए खर्च हो रहे हैं। स्वामी सानंद शान्ति और अहिंसा के बल पर उपवास कर 112 दिन से सरकार को कैबिनेट में गंगा एक्ट पास कराने के लिए कह रहे थे। गंगा के नाम पर भक्त बने राजनेताओं को स्वामी सानंद की मांग अच्छी नहीं लगी है और उनकी तपस्या को भंग किया गया। उनके प्राण पखेरू गंगा के चरणों में लीन हो गये है। 2014 में जिन्होंने कहा था कि उन्हें गंगा ने बुलाया है। अब पूछा जाएगा कि सानंद जैसे तपस्वी सन्त और महापुरूष की बलि ही इसके नाम पर होनी थी।
अनशन के दबाव में छोड़ दिया जल:प्रो. रविकांत
ऋषिकेश। एम्स निदेशक प्रो. रविकांत ने कहा कि स्वामी सानंद अपना उपचार कराना चाहते थे। उनके ऊपर अनशन करने को लेकर दबाव था। जिस कारण उन्हें मजबूरन अनशन पर बैठना पड़ा। उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई जब उन्होंने जल का भी त्याग कर दिया। स्वामी अनशन से उठना चाहते थे , लेकिन उन पर दबाव डालकर अनशन पर बिठाए रखा गया। मरने से पहले स्वामी सानंद ने एम्स अस्पताल को सूचित किया था कि वह मरने के बाद शरीर को एम्स को दान कर देंगे। इसके लिए उन्होंने एम्स को एक पत्र भी दिया था। अगर स्वामी सानंद का परिवार उनके मृत शरीर को मांगता है तो शव दे दिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि स्वामी सानंद मातृ सदन के स्वामी शिवानंद की प्रेरणा पर ही अनशन पर बैठे थे। इससे पहले स्वामी शिवानंद के शिष्य निगमानंद की भी अनशन के दौरान मौत हो गई थी। गौर हो कि निगमानंद की मां ने भी कहा था कि उन्हें अनशन के लिये मजबूर किया गया।
स्वामी सानंद गंगा की आखिरी उम्मीद थे
अपीलों, वार्ता और दबाव के बाद शायद बारीक सी उम्मीद के चलते वह जल दिवस के दिन आमरण अनशन पर बैठे थे। वह रोजाना तीन गिलास पानी पीते थे। उन्होंने नवरात्रि के पहले दिन नौ अक्टूबर से जल त्याग करने का मन बनाया था। उनकी मांगों पर जब प्रधानमंत्री ने भी प्रतिक्रिया नहीं दी तो उन्होंने गंगा के लिए बलिदान का फैसला लिया। उम्मीद है कि उनका बलिदान संभवतः सरकार की आत्मा को जगा सकेगा। – डॉ. रवि चोपड़ा, पर्यावरणविद
पर्यावरणविद् राजेंद्र सिंह का कहना है कि पर्यावरणविद, राष्ट्रभक्त प्रो जीडी अग्रवाल का निधन बेहद दुख है। उन्घ्होंने कहा कि सरकार तमाम तरह के बाबाओं से मुलाकात करती है, लेकिन सरकार ने इस संत की अनदेखी की है।  -पर्यावरणविद् राजेंद्र सिंह
पर्यावरण प्रेमियों और नेताओं ने सानंद के बलिदान को किया नमन
केंद्र सरकार की हठधर्मिता एवं गंगा के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैये के कारण गंगा की अविरलता और स्वच्छता की मांग को लेकर 111 दिन से अनशनरत प्रख्यात पर्यावरणविद स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद जी (प्रो जी.डी. अग्रवाल) का निधन अत्यंत दुखद घटना है परमेश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें,-नेता प्रतिक्ष डा. इंदिरा हृद्येश
गंगा के अनन्य भक्त और पर्यावरणविद प्रो० जी०डी० अग्रवाल जिनको दुनिया और उनके भक्तगण संत सानंद के नाम से जानते है, उनकी आत्मा को उनका शरीर छोड़ने के लिए विवश किया गया। यह एक विवाद का विषय है। वह लंबे समय से अनशन पर थे। – पूर्व सीएम हरीश रावत
माँ गंगा के सच्चे बेटे स्वामी सानंद जी को भावभीनी श्रद्धांजलि। माँ गंगा को बचाने के लिए 111 दिन के आमरण अनशन के उपरांत आपने देह त्याग दिया। सरकार की उदासीनता के चलते हमने एक लोकनायक खो दिया।आपको शत-शत नमन। –प्रीतम सिंह, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष
उत्तराखंड ने एक पर्यावरणविद खो दिया है। उन्होंने पूर्व में ही सरकार से कहा था कि इन्हें तभी दिल्ली एम्स में रेफर किया जाये लेकिन सरकार की लापरवाही से स्वामी सानन्द की मौत हो गई है। गंगा की रक्षा के प्रति पीएम मोदी की वादा खिलाफी के विरोध में जल त्यागने का निर्णय बड़ा ही चिंताजनक था। – पूर्व कंग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय

@-N.S.Baghari (Narda) http://www.uttaranchaldarpan.in/

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