हर हाल में कैसे मिलेगा मालिकाना हक? आशियाने बचा लो सरकार!!

नजूल भूमि के मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस कर रही सिर्फ सियासत, अब तक नहीं पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

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ऊधम सिंह नगर,4 अक्टूबर। जिला मुख्यालय रूद्रपुर में नजूल भूमि पर काबिज हजारों परिवारों के समक्ष बेघर होने का संकट खड़ा हो चुका है। जबकि इस मुद्दे को लेकर कब्जेदारों को बचाने के लिये जहां सत्तापक्ष के नेता गरीबो की चिंता करने की दुहाही भर ही दे रहे है। वहीं विपक्षी नेता भी सिर्फ बयानबाजी कर सियासी रोटियां सेकने का काम कर रहे है। अब तक सत्तासीन भाजपा हो या फिर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का कोई नुमाईनदा गरीबों के पक्ष को लेकर सुप्रीम कोर्ट में नहीं पहुंचा है। जिससे लोगों में बेचैनी बढ़ती जा रही है। संवेदनशील मुद्दे पर सियासी दलों की राजनीति से सवाल यह भी उठता है कि गरीबों की चिंता किसी को है तो वह कौन है? आखिर कौन बचायेगा गरीबों के हजारों आशियानों को? आखिर इस संवेदनशील मुद्दे पर कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल खुलकर समर्थन क्यों नही कर रहे। हांलाकि न्यायालय के आदेश के चलते इस मुद्दे को लेकर सभी पक्ष पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए है जो गरीबों को इस गंभीर संकट से बचाने के लिये अच्छे संकेत नहीं हैं। अगर एकजुट होकर पैरवी नहीं की गई तो आशियानाों की तबाही निश्चित है। इधर सरकार की तरफ से भी नजूल भूमि एवं मलिन बस्तियों को बचाने के लिये रोजना नये नये आश्वासन की दिये जा रहे हैं। हांलाकि प्रभावितों ने सरकार के प्रति अब भी उम्मीद बांधी हुई है और मान रहे है कि कुछ न कुछ सरकार अवश्य करेगी। इधर नजूल नीति को लेकर सरकार अध्यादेश लाने या फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का मन बना रही है। इसको लेकर व्यापक रूप से मंथन चल रहा है। इसके साथ ही पूर्व की नीतियों का भी विस्तार से परीक्षण किया जा रहा है। अगर सरकार इस मृद्दे पर जल्द से जल्द बड़ा निर्णय लेती है तो कब्जेदारों की राह आसान हो जायेगी। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों सरकार की ओर से नजूल भूमि पर बसे लोगों को बचाने के लिये पैरवी भी की गई। हाईकोर्ट में अतिक्रमण हटाने को लेकर एक वर्ष का समय मांगा गया लेकिन सरकार के इस शपथ को खारिज करते हुए कोर्ट ने सख्त आदेश दे दिये। हाईकोर्ट के अनुसार अब तक अतिक्रमण हटाने में सरकार पूरी तरह से नाकाम साबित रही है। इतना ही नहीं हर हाल में अतिक्रमण हटाने के लिये कोर्ट ने कार्ययोजना बताते हुए रूद्रपुर में लगभग 550 एकड़ नजूल लैंड पर बसे कब्जेदारों को हटाने के आदेश देकर तीन सप्ताह में कार्यवाही करने को कहा है। इस कार्यवाही की जद में आने वाले एसएसी वर्ग के प्रभावितों बकायदा पीएम आवास योजना के तहत घर देने की व्यवस्था करने को भी कहा है। इस तरह अगर प्रशासन ने कार्यवाही शुरू की तो लगभग 14 हजार मकान ध्वस्त होंगे। कोर्ट के आदेश के अनुसान वर्ष 2008 के सर्वे के आधार पर ही मकान ध्वस्त किये जायेंगे। इधर कोर्ट के आदेश का समय भी गुजर रहा है अफसर कभी भी एक्शन में आ सकते है। जिससे कब्जेदारों की धड़कनें भी तेज हो रही है। कोर्ट के आदेशों का अनुपालन करते हुए सरकार अगर सभी प्रभवितों के लिये योजना बनाती है तब भी कहीं न कही कब्जेदार भूमि छोड़ने का विरोध कर सकते हैं क्योंकि नजूल लैंड और मलिन बस्ती को लेकर पूर्ववर्ती सरकारों में नीतियां बन चुकी हैं। यह दो अगल अगल मसले हैं। मनिल बस्ती के कब्जेदारों के लिये तो सरकार अध्यायादेश ले आयी है मगर अब मुश्किलें नजूल भूमि वालों की बढ़ गई है। गौर हो कि नजूल भूमि पर बसे लोग हर हाल में मालिकाना हक हासिल करना चाहते हैं जो कई दशकों से यहां बसे हुए है। कानून के जानकारों की माने तो नियमित रूप से राजस्व, ‘हाउस टैक्स’ देने वाले इन हजारों परिवारों को बचाने या फिर कहीं और बसाने के लिये सरकार के पास विकल्प भी हैं लिहाजा या तो शीर्ष कोर्ट की शरण में जाकर पक्ष रखा जाये या फिर अध्यादेश के जरिये कल्याणकारी नीति कानून घोषित किया जाये। बता दें कि राज्य सरकार की नीतियों को कोर्ट ने असंवैधानिक बताकर निरस्त कर दी है। जबकि अब सरकार के पास हाईकोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी बनाने के लिये अन्य कोई रास्ता भी नहीं बचा है। वहीं नजूल भूमि पर बसे हजारों परिवारों को बचाने के लिये सत्ता पक्ष के नेता लगातार सकारात्मक निर्णय लेने की बात कर रहे है। जबकि कांग्रेस नेता इस ध्वस्तीकरण अभियान के लिये सिर्फ भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए सवाल उठा रहे है। प्रभावित परिवारों में जहां सरकार की कमजोर पैरवी के प्रति रोष व्याप्त है वहीं इस मुद्दे पर विपक्ष के नेताओं की लचर इच्छाशक्ति को लेकर भी तरह तरह की चर्चाय हो रही है। बहरहाल अब भी उच्च न्यायालय के इस कठोर आदेश से प्रभावित होने वाले हजारों परिवार उम्मीदों से भरी नजरों से प्रदेश की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार की तरफ नजरें टिकाये हुए हैं,उम्मीद की जा रही है कि इस तबाही से बचाने के लिये वह संभव ही कोई निर्णय अवश्य लेगी।

लगातार बढ़ रहा अतिक्रमण जिम्मेदार अफसर बेपरवाह
रूद्रपुर। सूबे के अधिकांश नगरीय क्षेत्रें में सरकारी भूमि, नजूल लैंड, मलिनबस्ती, सड़कों के किनारे, फुटपाथों के ऊपर, वन भूमि, कृषि भूमि जहां देखो वहीं अतिक्रमण नजर आता है। लेकिन इसके बावजूद जिम्मेदार विभागों के अफसरों की नजरें इस ओर नहीं जाती। बेपरवाह अफसरों की नाकामी से शहरों में आबादी भी बढ़ती जा रही है जो लगातार अतिक्रमण कर न सिर्फ आवासीय भवन बना रहे है जबकि कुछ बड़े व्यवसायी भी अफसरों से मिलीभगत कर इस खेल में लगे हुए है। आये दिन नयी नई कालोनियां विकसित हो रही है वहीं गरीब वर्ग के लोग भी जानबूझ कर नियमों की अनदेखी करते है। इस तरह अतिक्रमण को रोकने में सरकारी अफसर पूरी तरह से नाकाम साबित हुए है। गौर हो कि प्रदेश के विभिन्न शहरों में अतिक्रमण हटाने के लिये संबंधित विभागों के अफसर खासा सक्रियता दिखा रहे है। रोजना नये नये फरमान दिखाकर आवासीय भवनों के साथ ही व्यवसायिक प्रतिष्ठानों की नापजोख कर लाल निशान लगा दिये जा रहे है। अफसरों के रवैये से लोगों में उनके प्रति रोष व्याप्त है। पिछले कई महिनों से अतिक्रमण हटाने को लेकर चलाये जा रहे ध्वस्तीकरण से हजारों लोगों के साथ ही व्यापारियों को भी भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। आखिर इस प्रकार अतिक्रमण को बढ़ावा देने वाले जिम्मेदार अफसरों पर कार्यवाही क्यों नहीं होती। बहरहाल अतिक्रमण हटाने के लिये हाईकोर्ट के आदेश का पालन करने के नाम पर जितनी सक्रियता अफसरो ने ध्वस्तीकरण करने में दिखायी है अगर इनती ही सक्रियता उन्होंने अतिक्रमण को रोकने में दिखायी होती तो आज हजारों परिवारों के समक्ष बेघर होने का संकट नही आता। शहरों में व्यवस्थायें बनाने में अफसर पूरी तरह से नाकाम रहे है। नालियों के निर्माण एवं फुटपाथ से अतिक्रमण हटाने में अब तक कार्यवाही शुरू नहीं की गई है जिससे यातायात बाधित हो रहा है।

फुटपाथ बनाने की बजाये खरोंच दिये घरों के छज्जे
रूद्रपुर। सूबे के विभिन्न शहरी जनपदों में अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया जा रहा है। यहां बाजारों में लागों ने अपनी दुकानों के आगे फुटपाथ और नालियों के ऊपर अतिक्रमण किया हुआ है। जबकि दुकान का अधिकांश सामान भी सड़को के किनारे ही सजा दिया जाता है। इससे राहगीरों के साथ ही यातायात व्यवस्था में भारी दिक्कते आती है। इसी समस्या के निजात दिलाने के लिये याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में अपील की है। अपील पर सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय में तत्काल अतिक्रमण हटाने के आदेश दिये थे। यहां रूद्रपुर में नगर निगम ने अभियान भी चला दिया और अब तक हजारों दुकानों और आवासीय घरों के आगे से अतिक्रमण तोड़ दिया है। इस अभियान की जद में कई लोगों के मकानों के छज्जे भी जेसीबी के तोड़ दिये है जिससे भवन क्षतिग्रस्त हो चुके है। प्रभावितो की माने तो अफसरों से गुहार लगाने के बावजूद भवनों को क्षतिग्रस्त किया गया। इतना ही नहीं कई बहुमंजिला भवनों को भी अफस्रों ने नहीं छोड़ा है जबकि इन भवनों को बनाने में ही कई वर्ष लगे है। वहीं गई बड़े भवनों को लोग खुद ही तोड़ने में लगे हुए है जबकि कई ऐसे भी मकान है जो अतिक्रमण की जद में होने के बावजूद तोड़े नहीं गये है। जबकि आस पास के अन्य घर व प्रतिष्ठान भी इस अभियान से प्रभावित हो गये है। जिन लोगों ने अतिक्रमण नहीं किया है और आसपास की दुकानों में मची तोड़ फोड़ से उनको भी परेशानी झेलनी पड़ रही है। प्रभावितों का कहना है कि आखिर नगर निगम पहले फुटपाथ बनाने के लिये काम शुरू करता तो व्यवस्थायें सुधार सकती है। अभियान के दौरान भारी मात्र में मलवा बीच सड़क पर गिर रहा है। ऐसे तो व्यवस्थायें सुधरने की बजाये और भी अधिक विकट होती जा रही है। गौरतलब है कि नगर निगम द्वारा नगर के मुख्य बाजार में भारी मात्र में तोड़फोड़ कर मलवा निस्तारण नहीं किया जा रहा है। जगह जगह ईंटों के ढेर लगे हुए हैं जबकि विभिन्न गलियों में बने मार्ग भी अवरूद्ध हो रहे है जिससे राहगीरों के साथ ही खरीदारी के लिये आने वाले लोगों,स्कूली बच्चों व अन्य छोटे बड़े वाहनों के गुजरने में हादसे की आशंका बनी हुई है। लागों का कहना है कि अगर अभियान चलाना ही है तो व्यवस्थित रूप से चलाया जाये। आखिर निगम एक सिरे से अभियान शुरू क्यों नहीं कर रहा और साथ साथ निर्माण कार्य भी शरू नहीं किया जा रहा है। बहरहाल निगम की कार्यवाही को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं कि आखिर शिकायत तो फुटपाथ पर कब्जे हटाने को लेकरकी गई थी फिर निगम के तानाशाह अफसर मकानों के छज्जे क्यों खरोच रहे हैं जबकि फुटपाथ और नालियों का निर्माण अब तक शुरू नहीं किया गया है। बाजार में त्यौहारों का सीजन चरम पर है लिहाजा प्रशासन को उचित व्यवस्था बनाने के लिये काम जल्द से जल्द शुरू करना होगी।  

 -@ N.S.Baghari ( Narda) Uttaranchal darpan.in…..

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