6 साल से कार्यवाहक कुलपतियों के हवाले है पंतनगर विवि
असलम कोहरा
पंतनगर। हरित क्रांति के माध्यम से देश को ऽाद्यान्न में आत्मनिर्भय बनाने ही नहीं वरन ऽाद्यान्न के निर्यात की शत्तिफ़ देने वाले देश के पहले कृषि विवि यानि पंतनगर कृषि विवि का प्रबंधन और संचालन पिछले 6 साल से अस्थाई व्यवस्था की भेंट चढ़ा हुआ है। चाहे कांग्रेस की या अब मौजूदा भाजपा की सरकार हो, पंतनगर विवि लंबे समय से एक अदद स्थाई यानि पूर्वकालिक कुलपति के लिए मोहताज बना हुआ है। विवि को कार्यवाहक कुलपतियों के हवाले करने का सिलसिला जो 6 साल पहले 9 अगस्त 2012 को शुरू हुआ था, वो थमने का नाम नहीं ले रहा है। लगातार कार्यवाहक कुलपतियों की आई इस बाढ़ से ‘कार्यवाहक कुलपति’ शब्द अब तकियाकलाम का रूप ले चुके हैं, और लोग अब इन शब्दों के आदी भी हो चुके हैं। हाल ही में 25 सितंबर को पिछले कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर एके मिश्रा का कार्यकाल समाप्त हुआ तो एक बार फिर कार्यवाहक कुलपति इस सीट पर बैठा दिया गया। 26 सितंबर को पंतनगर विवि की कमान फिर से कार्यवाहक कुलपति के रूप में कुमायूं कमिश्नर राजीव रौतेला (आईएएस) को सौंप दी गई। मालूम हो कि पंतनगर विवि में कार्यवाहक कुलपति की नियुत्तिफ़ का दौर बीते 9 अगस्त 2008 को पूर्णकालिक कुलपति डॉ बीएस बिष्ट के तीन वर्ष के कार्यकाल के पूरा होने के बाद 9 अगस्त 2012 से शुरू हुआ। इसके बाद 9 अगस्त 2012 से 8 मई 2013 तक डा0 सुभाष कुमार (आईएएस), 9 मई 2013 से 26 अप्रेल 2014 तक डॉ0 आलोक जैन (आईएएस), 27 अप्रेल 2014 से 14 अक्टूबर 2014 तक डॉ0 मैथ्यू प्रसाद तथा 15 अक्टूबर 2014 से 20 मार्च 2015 तक डॉ0 एचएस धामी कार्यवाहक कुलपति बनाए गए। इसके बाद डॉ0 मंगला राय को 21 मार्च 2015 को तीन वर्ष के लिए पूर्णकालिक कुलपति के रूप में नियुत्तफ़ किया गया, लेकिन पंतनगर विवि के अंदर कुछ विवादों के कारण वह भी 26 सितंबर 2016 को त्यागपत्र देकर पंतनगर विवि को लावारिस छोड़कर चले गए। 27 सितंबर 2016 से 25 सितंबर 2017 तक डॉ0 जे- कुमार ने तथा उनके बाद 26 सितंबर 2017 से 26 सितंबर 2918 तक प्रोफेसर एके मिश्रा ने कार्यवाहक कुलपति के तौर पर पंतनगर विवि की बागडोर संभाली। प्रो0 मिश्रा के बाद एक बार फिर उत्तराऽंड सरकार पूर्णकालिक कुलपति नियुत्तफ़ करने में अक्षम साबित हुई। यह ठीक है कि कुमायूं कमिश्नर राजीव रौतेला एक कुशल प्रशासक हैं और उन्हें प्रशासन एवं प्रबंधन का लंबा अनुभव है। लेकिन फिर भी कार्यवाहक शब्द की अपनी कमजोरी तो बनी ही रहेगी। सवाल यह है कि क्या रौतेला कुमायूं कमिश्नर के एक भारी प्रशासनिक भार और जिम्मेदारियों के बीच पंतनगर विवि के कुलपति की जिम्मेदारियों के निर्वाहन के लिए वांछित ध्यान और समय दे पाएंगे ? क्या इस स्थिति में पंतनगर विवि से जुड़ी समस्याओं का समुचित समाधान निर्धारित समय पर हो पाएगा? विवि में नियमित कर्मचारियों की भारी संख्या में लगातार हो रही सेवानिवृति के चलते कार्मिकों की कमी एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रही है। सड़कों और हॉस्टल्स की ऽस्ता हालत को सुधारने के लिए फंड आदि की कमी भी बनी हुई है। कर्मियाें एवं शिक्षकों की कई मांगे शासन स्तर पर लंबित हैं। हालांकि राजीव रौतेला का कहना है कि व्यत्तिफ़ की कार्यक्षमता असीमित है, और वह कुलपति के रूप में पूरी जिम्मेदारी निभाएंगे। अगर कुलपति और प्रशासनिक अधिकारी दोनों के पदों का सामंजस्य कर और इन पदों की शत्तिफ़यों का लाभ विवि को देने के लिए राजीव रौतेला अपने कथन को अमली जामा पहना सकें तब तो यह पंतनगर विवि के लिए बहुत सुऽद रहेगा।