महिला का पति मालिक नहीं: सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली। विवाहेत्तर संबंधों के मामले में केवल पुरुष को दोषी मानने वाले 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो प्रावधान महिला के साथ गैरसमानता का बर्ताव करता है, वह असंवैधानिक है। जो भी व्यवस्था महिला की गरिमा से विपरीत व्यवहार या भेदभाव करती है, वह संविधान के कोप को आमंत्रित करती है। व्यभिचार-रोधी कानून एकपक्षीय और मनमाना है। देश के प्रधान न्यायाधीश ने व्यभिचार-रोधी कानून पर फैसला सुनाते हुए कहा कि पति महिला का मालिक नहीं है। यह कानून महिला के जीने के अधिकार पर असर डालता है। हालांकि उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि यह तलाक का आधार हो सकता है। सीजेआइ दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंगटन नरीमन, जस्टिस एएम ऽानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्र की पीठ के अनुसार, व्यभिचार कानून महिलाओं को पतियों की मिल्कियत मानता है। संविधान पीठ ने एकमत से इस मामले में फैसला लिया है। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यह कानून महिला की चाहत और यौन इच्घ्छा का असम्मान करता है। हां, यदि व्यभिचार की वजह से एक जीवन साथी ऽुदकुशी कर लेता है और यह बात अदालत में साबित हो जाए, तो आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा चलेगा। एडल्टरी कानून को रद कर देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद याचिकाकर्ता के वकील राज कल्लिशवरम ने ऽुशी जाहिर करते हुए कहा, यह ऐतिहासिक फैसला है। मैं इस फैसले से बेहद ऽुश हूं। भारत की जनता को भी इससे ऽुश होना चाहिए। वहीं राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेऽा शर्मा ने कहा, मैं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करती हूं। इस कानून को बहुत पहले ही हटा देना चाहिए था। यह ब्रिटिश युग का एक कानून है। हालांकि ब्रिटिश भी इस कानून को रद कर चुके थे, लेकिन हम ही इस कानून से चिपके हुए थे। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आठ अगस्त को इस पर फैसला सुरक्षित रऽा था। सुनवाई करने वाली पीठ में जस्टिस आरएफ नरीमन, एएम ऽानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्र भी शामिल हैं। 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 में विवाहेतर संबंधों को अपराध माना गया है। इसमें विवाहेत्तर संबंध रऽने वाले पुरुष को आरोपित कहा गया है। इसके मुताबिक, किसी व्यत्तिफ़ की सहमति के बिना उसकी पत्नी से संबंध रऽना दुष्कर्म नहीं होगा, बल्कि इसे व्यभिचार माना जाएगा। इस पर सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा था कि प्रथम दृष्टया यह कानून लैंगिक समानता की अवधारणा के िऽलाफ है। ऐसे मामले में केवल पुरुष को ही दोषी क्यों माना जाए? केंद्र सरकार ने यह कहते हुए कानून का समर्थन किया है कि विवाह संस्था की पवित्रता बनाए रऽने के लिए यह कानून आवश्यक है।

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