उत्तराखंड में बाहर के लोग नहीं खरीद पायेंगे ‘पहाड़ की जमीन’

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धाामी सरकार ने सदन के पटल पर प्रस्तुत किया ‘भू-कानून का मसौदा’
देहरादून(उद ब्यूरो)। उत्तराखंड विधानसभा में गुरुवार को सदन के पटल पर भू-कानून के मसौदे को प्रस्तुत कर दिया गया है। उत्तराखंड में प्रदेशवासियों की मांग पर सीएम पुष्कर सिंह धामी ने सशक्त भू कानून के मसौदे पर मुहर लगाकर भू माफियाओं को कड़ा संदेश दिया है। आये दिन जमीनों की धोखाधड़ी, सरकारी जमीनों की बंदरबांट के मामले सामने आ रहे है। जबकि कई बाहरी लोगों द्वारा करोड़ों की जमीनों को खरीदकर उसका दुरूपयोग कर रहे है। धामी सरकार ने कैबिनेट की बैठक में शसक्त भू कानून को हरी झंडी देकर पहाड़ों में बाहरी लोंगों के लिए जमीन खरीद पर रोक लगा दी है। हांलाकि अन्य दो मैदानी जनपदों हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर जैसे औद्योगिक महानगरों में प्रावधान लागू नहीं किये है। उत्तराखंड राज्य गठन के दो साल बाद बने भू-कानून में पिछले 23 साल में अधिकांश सरकारों ने बदलाव किये है। एनडी तिवारी सरकार ने 2002 में भू-कानून बनाया था, उसने ही 2004 में इसे सख्त करते हुए संशोधन किया था। कानून में सबसे ज्यादा छूट 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने बढ़ाई थी। उत्तर प्रदेश से अलग होकर राज्य बनने के बाद भी उत्तराखंड में यूपी का ही कानून चल रहा था, जिसके तहत उत्तराखंड में जमीन खरीद को लेकर कोई पाबंदियां नहीं थीं। वर्ष 2003 में एनडी तिवारी की सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधार अधिनियम, 1950 ;अनुकूलन एवं उपांतरण आदेश 2001द्ध अधिनियम की धारा-154 में संशोधन कर बाहरी लोगों के लिए आवासीय उपयोग के लिए 500 वर्गमीटर भूमि खरीद का प्रतिबंध लगाया। साथ ही कृषि भूमि की खरीद पर सशर्त प्रतिबंध लगा दिया था। 12.5 एकड़ तक कृषि भूमि खरीदने की अनुमति देने का अधिकार जिलाधिकारी को दिया गया था। चिकित्सा, स्वास्थ्य, औद्योगिक उपयोग के लिए भूमि खरीदने के लिए सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य किया गया था। तिवारी सरकार ने यह प्रतिबंध भी लगाया था कि जिस परियोजना के लिए भूमि ली गई है, उसे दो साल में पूरा करना होगा। बाद में परियोजना समय से पूरी न होने पर कारण बताने पर विस्तार दिया गया। औद्योगिक पैकेज से नए उद्योग लगे। इस बहाने जमीनों का इस्तेमाल गलत होने लगा। तब जनरल बीसी खंडूड़ी की सरकार ने वर्ष 2007 में भू-कानून में संशोधन कर उसे और सख्त बना दिया। सरकार ने आवासीय भूमि खरीद की सीमा 500 से घटाकर 250 वर्गमीटर कर दिया। फिर 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने कानून में संशोधन कर, उद्योग स्थापित करने के उद्देश्य से पहाड़ में जमीन खरीदने की अधिकतम सीमा और किसान होने की बाध्यता खत्म कर दी थी। साथ ही, कृषि भूमि का भू-उपयोग बदलना आसान कर दिया था। पहले पर्वतीय फिर मैदानी क्षेत्र भी इसमें शामिल किए गए थे। सशक्त भू-कानून की मांग को देखते धामी सरकार करीब तीन साल से काम कर रही है। वर्ष 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसने पांच सितंबर 2022 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। समिति ने सशक्त भू-काननू को लेकर 23 सिफारिशें की थीं। सरकार ने समिति की रिपोर्ट और संस्तुतियों के अध्ययन के लिए उच्च स्तरीय प्रवर समिति का गठन भी किया था। इससे पहले कृषि और उद्यानिकी के लिए भूमि खरीद की अनुमति देने से पहले खरीदार और विक्रेता का सत्यापन करने के निर्देश भी दिए थे। अब कैबिनेट में जो संशोधन विधेयक का प्रस्ताव आया है, उसमें इस कसरत का असर नजर आ रहा है।

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