निकाय चुनाव में भारी पड़ेगी ‘नियमों की नाफरमानी’ : उम्मीदवार नहीं लड़ पाएगा कोई चुनाव

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राज्य निर्वाचन आयोग ने व्यय सीमा बढ़ाने के साथ ही बनाए सख्त नियम,चुनाव खर्च का विवरण मय प्रमाण के न देने पर लगेगा तीन साल का प्रतिबंध,नोटिस के बाद खर्च विवरणी ना प्रस्तुत करने वाले प्रत्याशियों के विरुद्ध होगी कार्यवाही
देहरादून(उद ब्यूरो)। यद्यपि उत्तराखंड में नगर निकाय चुनाव कराए जाने की कोई निश्चित तारीख अभी तक निकल कर सामने नहीं आई है, तथापि शहरी विकास विभाग एवं निर्वाचन आयोग की सक्रियता के दृष्टिगत आगामी दिसंबर माह में राज्य के नगर निकाय चुनाव कराए जाने के कयास राजनीतिक हलकों में लगाए जा रहे हैं। जानकार सूत्रों के अनुसार नगर निकाय चुनावों के लिए कुछ प्रक्रियाओं को अंतिम रूप देना अभी बाकी हैं। इनमें सबसे अहम है अध्यादेश पर फैसला। खबर है कि उत्तराखंड शासन ने नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण लागू करने संबंधी अध्यादेश राजभवन को भेजा है और राजभवन इस अध्यादेश पर इसी सप्ताह अपनी सहमति दे सकता है। अध्यादेश को मंजूरी मिलने के बाद ओबीसी आरक्षण की नियमावली पर निर्णय होगा। इस हेतु नियमावली मुख्यमंत्री के अनुमोदन के लिए प्रस्तुत की जाएगी। मुख्यमंत्री के अनुमोदन के पश्चात जिलाधिकारियों के स्तर पर आरक्षण लागू करने की कार्यवाही अमल में लाई जाएगी। तत्पश्चात निर्वाचन आयोग निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी करेगा देना । निकाय चुनाव संपन्न कराए जाने की तैयारियों के क्रम में राज्य निर्वाचन आयोग ने निकाय चुनाव में प्रत्याशियों द्वारा किए जाने वाले व्यय की सीमा बढ़ाने के साथ-साथ प्रत्याशियों के लिए व्यय विवरणी प्रस्तुत करने संबंधी बेहद सख्त नियम भी तय कर दिए हैं । इन नियमों की नाफरमानी प्रत्याशियों को भारी पड़ सकती है । चाहे सभासद प्रत्याशी हो या नगर निगम मेयर अथवा पार्षद प्रत्याशी, चुनावी खर्च का ब्योरा सभी को अनिवार्य रूप से मय प्रमाण के निर्वाचन आयोग द्वारा विहित प्राधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करना होगा। प्रमाण के साथ व्यय विवरणी न देने पर आयोग उम्मीदवारों पर तीन साल का प्रतिबंध लगा देगा। इसके बाद प्रत्याशी निर्दिष्ट अवधि तक निकाय चुनाव के साथ-साथ अन्य कोई चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे। राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी अधिकतम निर्वाचन व्यय और उसके लेखा परीक्षक आदेश 2024 में स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि हर उम्मीदवार की ओर से जमा चुनावी खर्च के लेखों का निरीक्षण करने के बाद ,जिला निर्वाचन अधिकारी ये देखेंगे कि सभी दस्तावेज सही हैं या नहीं।अगर नहीं तो उसकी जानकारी राज्य निर्वाचन आयोग को भेजनी होगी। जिसकी कॉपी नोटिस बोर्ड पर भी चस्पा  करनी होगी। आयोग ऐसे उम्मीदवारों को कारण बताओ नोटिस जारी करके 20 दिन के भीतर जवाब मांगेगा। इसके बाद भी खर्च का सही ब्योरा न दिया गया ,तो आयोग उस प्रत्याशी के चुनाव लड़ने पर तीन साल का प्रतिबंध लगा देगा।आयोग ने ये भी स्पष्ट कर दिया है कि जो भी प्रत्याशी नगर निगम, पालिका या नगर पंचायत के किसी भी पद पर चुनाव लड़ेगा, उसे चुनाव नतीजे आने के 30 दिन के भीतर जिला निर्वाचन अधिकारी के समक्ष खर्च का पूरा ब्योरा पेश करना होगा। ब्योरे की सत्यापित प्रति शपथ पत्र के साथ देनी होगी।।रिटर्निंग अफसर की ये जिम्मेदारी होगी कि वे प्रत्याशी या राजनीतिक दलों की बैठक, सभा की अनुमति दें। वह चुनाव के दौरान कम से कम तीन बार बुलाकर प्रत्याशी के खर्च का मिलान करेंगे। अगर प्रत्याशी ब्यौरे का निरीक्षण नहीं कराएगा तो उसे कारण बताओ नोटिस जारी होगा। ब्योरा फिर भी न आया तो उसके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा-177 के तहत कार्रवाई की जाएगी।

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