उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन के असर से ‘खत्म’ हो सकती हैं ‘फूलों की कई प्रजातियां’
बीजों को अंकुरण के लिए नहीं मिल पा रहा अनुकूल वातावरण, फूलों के रंग द्रव्य में हो रहे हैं रासायनिक परिवर्तन
चमोली। सूबे के हिमालयी क्षेत्र की वनस्पति एवं फूलों पर पड़ रहे ग्लोबल वार्मिंग के असर को वनस्पति विज्ञानियों द्वारा लगभग एक दशक पहले से ही नोट किया जा रहा है और इसके दुष्परिणामों से निपटाने की सलाह सरकार को लगातार दी जाती रही है, लेकिन राज्य की सरकारें उच्च हिमालयी क्षेत्र की बायोडायवर्सिटी को संरक्षित करने की दिशा में आवश्यक एवं प्रतिबद्ध कदम उठाने के प्रति आमतौर पर उदासीन ही रही हैं। नतीजतन हिमालयन फ्लावर्स की कुछ प्रजातियों के फूल अब समय से पहले ही खिलने लगे हैं और कुछ प्रजातियों के फूलों के बीजों को अंकुरण के लिए अनुकूल वातावरण ही नहीं मिल पा रहा। जिससे इन प्रजातियों के आगामी कुछ वर्षों में लुप्त हो जाने की पूरी-पूरी आशंका है ।फूलों पर पड़ रहे जलवायु परिवर्तन के इस असर से जुड़े शोध को विज्ञान पत्रिका करेंट बायोलॉजी ने भी प्रकाशित किया है ।शोध के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय में पाए जाने वाले फूलों का रंग तो धीरे-धीरे बदल ही रहा है, साथ ही फूलों के परागण का समय भी बदल रहा है तथा फूलों के रंगद्रव्य में भी रासायनिक परिवर्तन आ रहे हैं। यह रंगद्रव्य ही पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करते हैं, मगर ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण रासायनिक प्रकिया में बदलाव होने से फूलों के रंगों में भी बदलाव आ रहा है। उत्तराखंड बायोटैक्नलॉजी परिषद के वैज्ञानिक डॉ. सुमित पुरोहित के अनुसार तापमान में बदलाव से बीजों के अंकुरित होने में दिक्कत आ रही है।वनस्पति पर्यवेक्षक के दौरान नोट किया गया है कि हिमालयन फ्लावर्स की कुछ प्रजातियों के फूल अब समय से पहले ही खिल जाते हैं, तो कई प्रजातियों को अंकुरण के लिए अनुकूल वातावरण ही नहीं मिल पा रहा । उच्च हिमालय क्षेत्र के ठंडे वातावरण में खिलने वाले हिमालय ब्लू पोपी, ब्रहघ्म कमल, सालम पंजा के फूलों सहित कई अन्य प्रजातिायों पर इसका असर पड़ रहा है। इतना ही नहीं, रिसर्च में यह भी पता चला है कि अगले तीस सालों में हिमालय में उगने वाली 35 से 40 फीसदी फूलों प्रजातियां लुप्त हो सकती हैं । जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिक डॉ। संदीप रावत के अनुसार जलवायु परिवर्तन अर्थ एनवायरमेंटल इंपैक्ट पर बड़ा असर डाल रहा है । हिमालय में उगने वाले जंगली फूल इससे सबसे अधिक प्रभवित हो रहे हैं, क्योंकि फूलों में अचानक आने वाले बदलाव को सहने की क्षमता कम होती है ।उत्तराखंड की शान एवं यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल फूलों की घाटी के फूलों पर भी जलवायु परिवर्तन का असर साफ दिखने लगा है। तकरीबन 87।5 वर्ग किमी में फैली इस घाटी में 500 प्रजाति के फूल खिलते हैं। यहां पोटोटिला, प्राइमिला, एनिमोन, एरिसीमा, एमोनाइटम, ब्लू पापी, मार्स मेरी गोल्ड, ब्रह्मकमल, फैन कमल जैसी कुछ प्रजातियों पर ग्लोबल वॉर्मिंग का गहरा असर है। जिस कारण यहां की बायोडाय वर्सिटी को संरक्षित करने के लिए कई वैज्ञानिक लंबे समय से शोध कर रहे हैं। वैज्ञानिकों ने पाया है कि यहां रंग बिरंगे फूलों के बीच ऐसे पौधे उग रहे हैं ,जो फूलों के पौधों के स्वाभाविक पल्लवन में बाधा पैदा करते हैं ।यह पौधे धीरे-धीरे समूची फूलों की घाटी को अपनी जकड़ में ले रहे हैं। जिसके चलते चमोली जनपद स्थित फूलों की घाटी के वजूद पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है।पर्यावरणविद प्रोफेसर बीडी जोशी के अनुसार ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि ऊपरी इलाकों में मौसम बदल रहा है और बदलते मौसम में ऐसी वनस्पतियां वहां पैदा हो रही हैं, जिनकी ना तो पहले कभी कल्पना की जा सकती थी और ना ही उन्हें इतनी ऊपर इलाकों में देखा गया है। लगभग तीन से चार ऐसी प्रजातियां उत्तराखंड की फूलों की घाटी में पैदा हो गई है। जो वहां मौजूद फूलों को खत्म कर रही हैं।ज्ञात हो कि फूलों की घाटी में मौजूद करीब 500 से ज्यादा फूलों की प्रजातियों के बीच पॉलीवोराम, ओसमोन्डा जैसी प्रजातियां बढ़ रही हैं, ये कुछ ऐसे पौधे हैं जिन्होंने फूलों की घाटी को चारों तरफ से घेर लिया है और घाटी इतने लंबे एरिया में फैली है कि उसमें से इस खराब प्रजाति को निकालना बेहद जटिल कार्य है। एक बार जो पौधा कहीं पर उग जाता है, उसके बार-बार पनपने के चांस ज्यादा बढ़ जाते हैं। लिहाजा अब सरकार और पर्यावरण प्रेमियों की मुख्य चिंता यह होनी चाहिए कि फूलों की घाटी और वहां मौजूद फूलों को कैसे बचाया जाए ?