सुप्रीम कोर्ट ने दिए हल्द्वानी में रेलवे जमीन अधिग्रहण के लिए पुनर्वास नीति बनाने के निर्देश
उत्तराखंड सरकार, केंद्र सरकार और रेलवे से अधिग्रहण के लिए जमीन और उससे प्रभावित परिवारों की पहचान करने को कहा
नई दिल्ली। हल्द्वानी के रेलवे की जमीन से अवैध कब्जा हटाने मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि अतिक्रमण करने वाले इंसान ही हैं उनके लिए अदालतें निर्दयी नहीं हो सकतीं हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि अदालतों को भी संतुलन बनाए रखने की जरूरत है।हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जे मामले में कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार के साथ ही रेलवे को बैठक बुलाने को कहा है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने जिन परिवारों को रेलवे स्टेशन से सटे भूमि से विस्थापित करना है उनके लिए पुनर्वास नीति बनाने के निर्देश दिए हैं। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में आज नैनीताल हाईकोर्ट के उस आदेरश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की गई जिसमें हल्द्वानी रेलवे स्टेशन से सटे रेलवे भूमि से अनधिकृत कब्जेदारों को हटाने का निर्देश दिया गया था। इस मामले में रेलवे ने कहा था कि उन्हें ट्रैक और स्टेशन विस्तार जमीन तुरंत चाहिए।बुधवार को सुनवाई के दौरान रेलवे ने कहा कि वो यहां वन्दे भारत ट्रेन चलाना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें प्लेटफॉर्म को बढ़ा करने की जरूरत है। इसके साथ ही हर साल ट्रैक पर पानी भर जाता है। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार, केंद्र सरकार और रेलवे से अधिग्रहण के लिए जमीन और उससे प्रभावित परिवारों की पहचान करने को कहा। इसके साथ ही पुनर्वास योजना बनाई जाए। कोर्ट ने कहा कि पुनर्वास योजना ऐसी हो जिस से सभी सहमत हो। इस मामले में अगली सुनवाई 11 सितंबर को होगी।
उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दिया गया था, जिसमें हल्द्वानी में कथित तौर पर रेलवे की जमीन से कब्जाधारियों को हटाने का निर्देश दिया गया था. रेलवे के मुताबिक, उसकी 29 एकड़ से अधिक भूमि पर 4,365 अतिक्रमण हैं, जबकि विवादित भूमि पर बसे लोग अतिक्रमण हटाने के आदेश के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. उनका दावा है कि उनके पास भूमि का मालिकाना हक है.हाईकोर्ट के आदेश के बाद हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास के क्षेत्र में रहने वाले 4,000 से अधिक परिवारों को बेदखली का सामना करना पड़ा, यह दावा करने के बावजूद कि वे 40 से अधिक वर्षों से रेलवे लाइनों के पास भूमि पर रह रहे हैं. रिपोर्ट्स में कहा गया है कि इस जमीन पर सरकारी स्कूल भी बने हैं.विरोध के बीच कुछ निवासियों ने राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.लाइव लॉ ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि जस्टिस संजय किशन कौल और अभय एस. ओका की एक शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा है कि सात दिनों में 50,000 लोगों को नहीं हटाया जा सकता है.शीर्ष अदालत इस तथ्य के बारे में ‘विशेष रूप से चिंतित’ थी कि दशकों से क्षेत्र के निवासियों ने 1947 में प्रवासन के बाद नीलामी से पट्टे और खरीद के माध्यम से भूमि का दावा किया था.जस्टिस कौल ने कहा, ‘लोग इतने सालों तक वहां रहे. कुछ पुनर्वास देना होगा. वहां प्रतिष्ठान हैं. आप कैसे कह सकते हैं कि सात दिनों में उन्हें हटा दें.’जस्टिस कौल ने कहा कि यह मानते हुए भी कि यह रेलवे की जमीन है, तथ्य यह है कि कुछ लोग वहां 50 से अधिक वर्षों से रह रहे हैं और कुछ ने नीलामी में जमीन खरीदी है. ऐसे तथ्य हैं जिन्हें क्रमशः पुनर्वास और भूमि के अधिग्रहण के माध्यम से निपटाया जाना है.पीठ ने कहा कि यह एक ‘मानवीय मुद्दा’ है और कोई यथोचित समाधान निकालने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार और रेलवे को इसका व्यावहारिक समाधान खोजने के का निर्देश देते हुए इस मामले को 7 फरवरी, 2023 तक के लिए स्थगित कर दिया.जस्टिस ओका ने कहा कि उत्तराखंड हाईकोर्ट का आदेश प्रभावित पक्षों को सुने बिना ही पारित कर दिया गया.सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही रेलवे तथा उत्तराखंड सरकार से हल्द्वानी में अतिक्रमण हटाने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर जवाब मांगा.पीठ ने कहा, ‘नोटिस जारी किया जाता है. इस बीच उस आदेश पर रोक रहेगी जिसे चुनौती दी गई है.’पीठ ने कहा, ‘हमारा मानना है कि उन लोगों को अलग करने के लिए एक व्यावहारिक व्यवस्था आवश्यक है, जिनके पास भूमि पर कोई अधिकार न हो. साथ ही रेलवे की जरूरत को स्वीकार करते हुए पुनर्वास की योजना भी जरूरी है, जो पहले से ही मौजूद हो सकती है.’शीर्ष अदालत ने कहा, ‘भूमि की प्रकृति, भूमि के स्वामित्व, प्रदत्त अधिकारों की प्रकृति से उत्पन्न होने वाले कई एंगल हैं. हम आपसे कहना चाहते हैं कि कुछ हल निकालिए. यह एक मानवीय मुद्दा है.’