मेरी मैत की ध्याणी तेरू बाटू हेरदु रोलू..बालपाटा व वेदनी में संपन्न हुई मां नंदा की लोकजात
भंवर के रूप में होती है कोट में मां की पूजा,मां नंदा-सुनंदा की विधि-विधान से प्राण प्रतिष्ठा
गोपेश्वर। उत्तराखंड की आराध्या मां नंदा देवी की वाद्दषक लोकजात मंगलवार को संपन्न हो गई है। कुरुड़ की नंदा देवी की बालपाटा तथा बधाण की राज राजेश्वरी की वेदनी में पूजा अर्चना के बाद लोकजात का समापन किया गया। नंदा सप्तमी को हिमालय के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थित बालपाटा व वेदनी में मां नंदा देवी को विदाई दी गई। कुरुड़ की मां नंदा की डोली रामणी से बालपाटा पहुंची। रामणी गांव में जागरों के माध्यम से मां का आ“वान किया। अन्य देवी देवताओं ने भी पश्वा पर अवतरित होकर मां को हिमालय के लिए विदा किया। बालपाटा में पूजा-अर्चना के बाद मां नंदा देवी को कैलाश के लिए विदा किया। दूसरी ओर राज राजेश्वरी की डोली वाण गांव से उच्च हिमालयी क्षेत्रा में स्थित वेदनी कुंड पहुंची। यहां पर मां की पूजा अर्चना के बाद उन्हें अश्रुपूर्ण विदाई दी गई। वेदनी कुंड की मां नंदा ने परिक्रमा भी की। नंदा सप्तमी के अवसर पर बंड क्षेत्रा की मां नंदा की डोली नरेला बुग्याल पहुंची। यहां पर नंदा की छंतोली की पूजा अर्चना कर समोंण भेंट की गई और मां नंदा को कैलाश के लिए विदा किया गया। मां नंदा को कैलाश विदा करने के बाद डोलियां व छंतोलियां वापस लौट आई है। मान्यता है कि नंदा की लोकजात यात्रा संपन्न होने के बाद जैसे ही डोली वापस लौटती है वैसे ही उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ठंड भी शुरू हो जाती है और भेड़ बकरी पालन करने वाले पालसी लोग भी धीरे-धीरे हिमालय से मैदानी इलाकों की ओर वापस लौटने लग जाते हैं। बुग्यालो में मौजूद हरी घास भी पीली होना शुरू हो जाती है।
12 गांव की छतोली भनाई बुग्याल रवाना
जोशीमठ। क्षेत्रापाल के नेतृत्व में उर्गम घाटी के 12 गांव की छतोलियों सहित ग्रामीण नन्दा स्वनूल को बुलाने के लिए मेनवाखाल, भनाई बुग्याल के लिए रवाना हो गए हैं। उर्गम से जात सायं को वंशीनारायण के समीप रात्रि विश्राम के लिए पहुंची है। 26 अगस्त को भगवती नन्दा स्वनूल उर्गम घाटी पहुंचेगी भनाई जात में उर्गम थात पल्ला जखोला एवं डुमक लांजी की एक एक छतोली तीसरे वर्ष शामिल होती है मेनवाखाल में ही नन्दा स्वनूल का जागरों के माध्यम से मिलन होगा देवी नन्दा नंदीकुड व स्वनूल सोना शिखर से बुलाई जाएगी। मेरी मैत की ध्याणी तेरू बाटू हेरदु रोलू, जशीलि ध्याण तू जशीलि वे रेई, अपणा मैत्यों पर छत्रा-छाया बणाई रेई.. जैसे पारंपरिक लोकगीतों और जागरों के साथ बंड पट्टðी के ग्रामीणों ने बंड नंदा की छंतोली को अगले पड़ाव के लिए विदा किया। इस दौरान श्र(ालुओं का हुजूम उमड़ा रहा। नंदा को विदा करते समय महिलाओं और ध्याणियों की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी। बंड की छंतोली रात्रि विश्राम के लिए गौणा गांव पहुंची। इस अवसर पर पुजारी प्रकाश गौड़, पूरण सिंह चैहान, सुनील कोठियाल, शंभू प्रसाद सती, अतुल शाह आदि मौजूद थे।
भंवर के रूप में होती है कोट में मां की पूजा
बागेश्वर। वैसे तो नन्दा देवी की पूजा अर्चना कुमाऊं व गढ़वाल में पुरातन काल से ही सनातन रूप से की जाती है, लेकिन मां के भ्रामरी रूप में पूजन का अनुष्ठान मात्रा कत्यूर घाटी के कोट मंदिर में ही किया जाता है। भाद्रपद की अष्टमी को मुख्य मेला कोट मंदिर में होता है। इस बार सादगी के साथ पूजा-अर्चना होगी। सातवीं शताब्दी में यहां कत्यूरी राजाओं ने अपना शासन प्रारंभ किया। इन्हीं कत्यूरी राजाओं ने कत्यूर घाटी के महत्वपूर्ण स्थानों को किले के रुप मे स्थापित किया। वर्तमान कोट मंदिर को भी किले का रूप दिया गया था। कत्यूरी राजा आसन्तिदेव व बासन्तिदेव जब कत्यूर को राजधानी बनाने यहां पहुंचे तो उनका अरुण दैत्य से घमासान यु( हो गया। विधि विधान से पूजा अर्चना करने के बाद मां भगवती भंवरे के रूप मे प्रकट हुई। मां ने अरुण दैत्य का वध कर दिया । मां की इसी अनुकंपा के कारण ही भंवर के रुप में पूजा की जाती है। कोट मंदिर में कत्यूरी राजाओं की अधिष्ठात्राी देवी भ्रामरी तथा चंद वंशावलियों द्वारा प्रतिष्ठापित नन्दा देवी की स्थापना की गई है। भ्रामरी रुप में देवी की पूजा अर्चना यहां पर मूर्ति के रुप में नहीं बल्कि शक्ति के रूप में की जाती है जबकि नन्दा के रुप में मूर्ति पूजन, डोला स्थापना व विसर्जन का प्रचलन है। डोले में सजी नन्दा की प्रतिमा केले के स्तंभों से तैयार की जाती है। प्रतिमा बनाने के लिए केले के स्तंभ के अतिरिक्त बांस की लकड़ी, पाती की टहनी पत्तियों सहित, 5 मीटर सफेद कपड़ा, पीला रंग, भिगोकर पिसा चावल, सफेद रंग, काला रंग व काजल, लाल रंग, देवी के कपड़े, विभिन्न चुनरिया, कपड़े आदि सामग्री से देवी की प्रतिमा बनाई जाती है। इसके बाद इसे स्वर्ण आभूषण पहनाए जाते हैं। तब तैयार होता है मां नन्दा का डोला।
मां नंदा-सुनंदा की विधि-विधान से प्राण प्रतिष्ठा
नैनीताल। नंदा देवी महोत्सव के अंतर्गत मूर्ति निर्माण के बाद उन्हें ब्रह्ममुहूर्त में नयना देवी मंदिर परिसर के मंडप में विधि विधान से प्रतिष्ठापित कर दिया गया है। कोविड-19 की गाइडलाइन का अनुपालन करते हुए इस बार माता के दर्शन के लिए भक्तों की मंदिर में आवाजाही रोकी गई है। मंदिर के गेट में पुलिस मुस्तैद है। कोरोना के कारण ही इस बार डोला भी नगर भ्रमण के लिए नहीं निकला। श्रीराम सेवक सभा, नगरपालिका व जिला प्रशासन के सहयोग से भक्तों की सुविधा के लिए मां नंदा-सुनंदा के दर्शन स्थानीय चैनल व फेसबुक लाइव पर सीधा प्रसारण किया जा रहा है। भक्तजन घर बैठे मां नंदा सुनंदा के दर्शन कर रहे हैं। तड़के 3ः00 बजे आचार्य भगवती प्रसाद जोशी द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ देवी की प्राणप्रतिष्ठा की गई। अन्य पुरोहितों द्वारा भी पूजा पाठ किया जा रही है। भक्तों में मंदिर में जाने की मनाही से मायूसी तो है, मगर संतोष है कि कोरोना काल में महोत्सव आयोजन की परंपरा नहीं टूटी। आयोजक संस्था के महासचिव जगदीश बवाड़ी ने बताया कि धार्मिक अनुष्ठान में भी जिला प्रशासन के दिशा निर्देश का अनुपालन किया जा रहा है। मंगलवार को सीओ विजय थापा ने मल्लीताल कोतवाली में पुलिसकर्मियों को ब्रीफिंग की। उन्होंने निर्देश दिए कि महोत्सव के दौरान भीड़भाड़ पर खास नियंत्राण रखा जाए। उन्होंने बताया कि करीब 20 पुलिसकर्मियों को महोत्सव में सुरक्षा व्यवस्था के लिए तैनात किया गया है। जिसमें मंदिर परिसर और गेट के बाहर भी पुलिसकर्मी तैनात रहेंगे। 26-28 अगस्त के बीच मंदिर के सभी प्रवेश द्वार बंद रहेंगे। इस दौरान मंदिर में श्र(ालुओं को एंट्री नहीं देने के भी निर्देश भी पुलिसकर्मियों को दिए गए है।