पिथौरागढ़ में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत का भव्य स्वागत: शिक्षा, धन और शक्ति का सदुपयोग होना चाहिए
पिथौरागढ़ में शेर सिंह कार्की सरस्वती विहार परिसर मुवानी का लोकार्पण किया
पिथौरागढ़(उद संवाददाता)। पिथौरागढ़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शेर सिंह कार्की सरस्वती विहार परिसर, मुवानी का लोकार्पण किया। रविवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत का शेर सिंह कार्की सरस्वती विहार मुवानी में भव्य स्वागत किया गया। मोहन भागवत 16 से 19 नवंबर तक अपने प्रवास पर पिथौरागढ़ पहुंचे हैं। स्कूली बच्चों ने बैंड परेड से स्वागत किया। सबसे पहले उन्होंने शेर सिंह कार्की की समाधि स्थल के पास चंदन का पौधा लगाया। स्वर्गीय शेर सिंह की फोटो में माल्यार्पण कर उन्होंने नव निर्मित विद्यालय भवन का लोकार्पण किया। उसके बाद वे थल, डीडीहाट,बेड़ीनाग, मुनस्यारी, धारचूला, पांखू, पिथौरागढ़,बागेश्वर से पहुंचे लोगों और जोहार शौका संस्कृति महिलाओं और रं संस्कृति की महिलाओं का अभिवादन स्वीकार करने के बाद खचाखच भरे अरुण अम्बानी सभागार में पहुंचे। उन्होंने पलायन को रोकने के लिए खेती करने पर जोर दिया। कहा कि इसी को स्वरोजगार से जोड़कर आत्मनिर्भर बना जा सकता है। शिक्षा मिलने के बाद उसका उपयोग दूसरे को अच्छी शिक्षा देने में करना चाहिए। कालांतर में बड़े-बड़े ऋषि और अनपढ़ लोगों ने महान कार्य किए हैं, यदि वो ज्यादा पढ़े लिखे होते तो कितना और पुण्य और महान कार्य करते। उन्होंने कहा अच्छी और उच्च शिक्षा लेकर समाज में उसका प्रसार कर दूसरों के लिए विद्या का उपयोग और सदुपयोग करना चाहिए। विद्या का उपयोग दूसरों को अपनी शिक्षा बांटने और उस शिक्षा से कमाए धन को दान करने और अपनी शक्ति का उपयोग उसकी सुरक्षा के लिए करने से ही शिक्षा का सही सदुपयोग होता है। इस दौरान पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी भी मौजूद रहे। कुलपति ओम प्रकाश सिंह नेगी ने शिक्षा के क्षेत्र में विद्या भारती के बृहद शिक्षा के उद्देश्य और उसकी योगदान पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि विश्व का कोई भी देश दस प्रतिशत से अधिक नौकरी नहीं दे सकता है। शिक्षा का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जिससे कुछ करने के लिए प्रेरित होकर मनुष्य ऐसा कर्म करे जिससे स्वावलंबी बने और समाज उसके इस कार्य को स्वीकार्यता दे। मनुष्य को जीवन जीने के लिए सुख, समृद्धि चाहिए। भागवत ने कहा कि व्यक्ति अपने हाथों से ही अपना भविष्य तय करता है। इसके लिए प्रयास आवश्यक हैं। संपूर्ण शिक्षा की आवश्यकता है, जिससे स्वावलंबन पैदा हो। उन्होंने भारतीय परंपरा का जिक्र करते हुए कहा कि विद्या और धन दान के लिए होता है और शक्ति दुर्बलों की मदद के लिए होती है। शिक्षा, धन और शक्ति का सदुपयोग होना चाहिए। यही संस्कार हैं और सामाजिकता समरसता बढ़ाते हैं। शक्ति का प्रयोग आक्रमण के लिए करना दुरुपयोग है। सरकार आजीविका के लिए प्रशिक्षण दे सकती है, मगर समाज भी सीख देता है। समाज में अच्छा कार्य करने वाले से सभी सीख लेते हैं। उन्होंने विद्या भारती की शिक्षा पर बोलते हुए कहा कि शिक्षा वही है जो ज्ञान और संस्कार देती है। शास्त्रों में भी यही उल्लेख है। अपने संबोधन की शुरुआत उन्होंने हिमालय की भूमि को तपोभूमि, )षि-मुनियों की भूमि बताते हुए की। तपस्या के महत्व पर कहानी सुनाते हुए कहा कि तपस्वी के तप का फल तपस्वी से अधिक अन्य लोगों को मिलता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ओपीएस नेगी ने की। पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने स्वागत उद्बोधन किया। श्री कोश्यारी ने कहा कि राष्ट्र सेवा में समर्पित, समाज सुधारक, अंत्योदय के लिए जीवन समर्पित करने वाले, हम सभी के पथ प्रदर्शक, आदरणीय सरसंघचालक जी के कर कमलों से इस विद्यालय परिसर का शुभारंभ होना न केवल क्षेत्र अपितु पूरे समाज के लिए ऐतिहासिक क्षण है। सरसंघचालक जी के दृष्टिकोण अनुरूप यह विद्यालय दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्र में शिक्षा की नई अलख जगाएगा। यह हमारे समाज के उज्ज्वल भविष्य की नींव रखे जाने का भी प्रतीक है। निश्चित तौर पर इस विद्यालय के माध्यम से विद्यार्थियों के जीवन में राष्ट्र प्रेम, संस्कार और सेवा भावना जागृत होगी। संघ के एक सामान्य से स्वयंसेवक के आग्रह पर आदरणीय सरसंघचालक जी हम सभी के बीच में आए इस हेतु मैं उनका हृदय की गहराइयों से उनका आभार व्यक्त करता हूं। उनकी इस महानता को देखकर मैं कृतज्ञ और भावुक हूं। आदरणीय सरसंघचालक जी ने हमें सदैव समाज के समग्र विकास के लिए अपना बहुमूल्य मार्गदर्शन दिया है। सरसंघचालक जी का यह आशीर्वाद हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा और हम सब मिलकर इस विद्यालय को समाज में सेवा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाएंगे।