हिंदूओं और मुसलमानों को अब बंद करना होगा धार्मिक बलिदान!

नैनीताल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने दिया आदेश,धार्मिक बलिदान की प्रथा पर बड़ी चोट

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देहरादून 22 अगस्त। देश में गौवंशीय पशुओं की सुरक्षा के लिये सरकारों ने नियम कानून बनाये तो है लेकिन इसका पालन न तो धार्मिक चोला ओढ़ने वाले करते हैं और न ही आम जनता। फिर कैसे इसे गौमाता यानी ( राष्ट्रीय पशु ) घोषित किया जायेगा। नैनीताल हाईकोर्ट लगातार प्रदेश के सामाजिक मुद्दों को लेकर हस्तक्षेप करता रहा है। गभी गंगा को जीवित मानव का दर्जा देने तो कभी आवारा घूमते गौवंशीय पशुओं,वन्यजीवो व जंगलों को सुंरक्षित करने,नदियों की सुरक्षा आदि को लेकर अहम आदेश दे चुका है। लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं। गाय हिंदुओं के लिये पुज्य देवी मानी जाती है। वेद पुराणों में इसे सिर्फ पालतू पशु नहीं माना जाता बल्कि साक्षात 33 कोटि देवताओं की वासिनी भी बतायी गई है। उत्तराखंड के साथ ही भारत में गौदान करने का भी विशेश रिवाज बताया जाता है। जबकि किसी बुजुर्ग या सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो पंडितों को गौदान किया जाता है। माना जाता है कि गौदान करने से मृतक की आत्मा को न सिर्फ शांति मिलती है,बल्कि ऐसा करने वाले को भी विशेष फल मिलता है। मगर इस रिवाज में अब लोगों ने लापरवाही बरतनी शुरू कर दी हैं। गौदान तो किया जाता है कि उसके पालन पोषण की व्यवस्था नहीं हो पाती। कई पंडित गौदान के बदले धन का लालच दिखाते हैं। ऐसा नहीं होने पर वह गौ पालन करने में असमर्थता व्यक्त करते हैं। अगर वह इसे स्वीकार भी कर ले तो बाद में उसे जंगलों में छोड़ दिया जाता है। इतना नहीं कई बार वह आबादी क्षेत्र में घुस आती है और खेतों में फसलों को नुकसान पहुंचाती है। लोग इस गाय को दोबारा घर में नहीं पालते जिससे उसका जीवन खतरे में पड़ जाता है। बाद वह वह गुलदार, बाघ आदि का निवाला बन जाती है। कई ऐसे भी लोग है जो गाय बैल बूढे़ हो जाते हैं उनका जंगलों में आवारा छोड़ दिया जाता है। राज्य के पहाड़ी जिलों में ऐसे जानवरों का झंुड खेतों में घुसकर लोगों की फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। क्या यह धर्मिक आस्था के नाम पर अत्याचार नहीं?इस दिशा में भी लोगों को जागरूक करना होगा और सरकार को भी ठोस कार्ययोजना बनानी होगी। इसे बदलते समाज का असर ही कहा जायेगा कि अब गौ के प्रति शिक्षित समाज अपनी धरणा को बदलने लगा है। हांलाकि शहरी क्षेत्रों में भी गौवंशीय पशुओं को आवारा छोड़ दिया जाता है। दुग्ध कारोबारी बड़ी संख्या में गाय तो पालते हैं लेकिन दूध निकालकर उन्हें सड़कों और हाईवे किनारे खुला छोड़ दिया जाता है। आये दिन सड़कों पर आवारा घूमते गौवंशीय पशुओं की वजह से बड़े हादसे हो चुके हैं। मैदानी जिलों में आवारा पशुओं को लेकर भी हाईकोर्ट में जनहित याचिकायें लगायी जा चुकी है। इन याचिकाओं का संज्ञान लेकर कोर्ट ने प्रशासनिक अधिकारियों को दिशा निर्देश भी दिये है। लेकिन जब इतने सख्त आदेशों के बावजूद सड़कों पर आवारा पशुओं छोड़ा जा रहा है। जिससे सवाल उठने भी लाजमी है कि आखिर कब तक अदालतें इस जटिल समस्याओं को लेकर आदेश देती रहेंगी। क्या सरकारें और जिला प्रशासन के अधिकाारी कभी इस दिशा में कार्यवाही करने के लिये आगे आयेंगे? हर जिले में गौवंशों को व्यवस्थित करने के लिये गौशलाओं का निर्माण किया जाता तो यह समस्या कम हो सकती है। वहीं दूसरे समुदाय के लोग भी गौ के पति भावना बदल रही है। देश में हिदुओं के बाद सबसे बड़ी आबादी मुसलमानों की है। हांलाकि अन्य धर्मों के लोग भी बीफ को अपना आहार बनाते है लेकिन गौवंशीय पशुओं के प्रति उन्हें भी अपनी धारणा को बदलना चाहिये। हांलाकि कुछ संगठनों के लोगों ने भले ही उनकी रक्षा के लिये अपनी जान की बाजी लगाने का प्रण लिया हुआ है मगर यह अधिक समय तक नहीं रह सकता। जब तक सरकारंे नियमों का सख्ती से पालन नहीं करायेंगी तब तक यह रूकने वाला नहीं। आजकल देश में गौ रक्षा और गौमाता को लेकर सियासी दलों के नेता काफी सक्रियता दिखा रहे हैं। वैसे तो गाय की सुरक्षा हर समाज के लोगों को मिलकर करनी होगी तभी इस जगत की पालनहार मानी जाने वाली गौमात को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो किसी भी समाज का व्यक्ति उसकी रक्षा के लिये आगे आने से पीछे नहीं हटेगा। हिंदू समुदाय के लोगों को भी गौ रक्षा के लिये धर्म का चोला उतारकर ही आगे बढ़ना होगा। क्योंकि जिस प्रकार आधुनिकता के इस दौर में प्रदेश की युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति को भुला कर पलायन करने लगे है उससे गौ के प्रति उनकी भावनायें भी बदल गई हैं। वहीं मुस्लिम सुमुदाय के लोगों ने अब अपनी धारणा को बदलना शुरू कर दिया है। कई संगठन खुलकार गौ रक्षा के लिये आगे आ रहे हैं। बहरहाल गौवंशी पशुओं की सरुक्षा को लेकर केंद्र सरकार को भी ठोस येाजना बनाने की जरूरत है।
हिंदू और मुस्लिम समाज में बलिदान की प्रथा पर बड़ी चोट
देहरादून। पौराणिक काल से ही देवभूमि उत्तराखंड के धार्मिक स्थलों पर आस्था के नाम बड़ी संख्या में छोटे पशुओं के साथ ही बड़े पशुओं की बली चढ़ायी जाती है। जबकि मुसलमानों के बड़े त्यौहारों पर समुदाय के लोगों द्वारा बड़े पशुओं गाय, भैंस,ऊंट, बकरे आदि की बली देने की प्रथा है। बीते दिवस नैनीताल हाईकोर्ट के एक आदेश के मुताबिक सार्वजनिक स्थानों अथवा धार्मिक स्थलों पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगाने का आदेश दिया गया है। राज्य सरकार और जिले के अधिकारियों को इसे हर हाल में रोकने के लिये कहा गया है। लेकिन हाईकोर्ट का यह का्रंतिकारी आदेश कहीं न कहीं दो ही बड़े समुदाय के लोगों के लिये आस्था के नाम पर किये जाने वाले निरीह पशुओं के बलिदान की प्रथा को बड़ा झटका भी दे दिया है। देश में एक ओर जहां धर्म की आड़ लेकर कुछ कट्टर धार्मिक संगठनों द्वारा माॅब लिंचिग की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ गौ वंशीय पशुओं की सुरक्षा को लेकर सरकारें कार्ययोजना बनाने में नाकाम साबित हो रही है। कई बार न्यायालयों से आदेश जारी किये गये लेकिन समस्यायें और अत्याचार की घटनायें रूकने का नाम नहीं ले रही है। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी पिछले दिनों सख्त टिप्पणी करते हुए इस तरह की घटनाओं को रोकने के निर्देष दिये थे। अब नैनीताल हाईकोर्ट के नये आदेश से एक बार फिर प्रदेश में पशुओं के बलिदान पर रोक लगा दी गई है। अब देखना होगा कि इस आदेश का कितना असर लोगों पर पड़ेगा।

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