हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा गीत नया गाता हूं——

अटल जी की अंतिम यात्रा में देश भर के नेताओं और लोगों का उमड़ा हुजूम

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नई दिल्ली/ऊधमसिंह नगर/देहरादून। भारतीय राजनीति के अजात शत्रु भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं भारत रत्न से सम्मानित अटल बिहारी वाजपेयी आज हमारे बीच नहीं हैं। देश ने विचारधारा और संस्कृतियों से परे एक महान यथार्थवादी राजनेता खो दिया। आज सभी श्री वाजपेयी के निधन से दुखी और शोकाकुल हैं। आज दिल्ली में उनकी अंतिम यात्र में लाखों लोगों ने पहुंच कर उन्हे अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। अंतिम यात्र से पूर्व देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी,भाजपा अध्यक्ष अमित शाह,सोनिया गांधी,राहुल गांधी,लाल कृष्ण आडवाणी,उद्धव ठाकरे सहित भाजपा,कांग्रेस सहित सभी राजनैतिक दलों तमाम बड़े नेताओं ने अटल जी के पार्थिव शरीर पर पुष्प चढ़ाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। आज दोपहर बाद श्री वाजपेयी की अंतिम यात्र में श्री मोदी सहित तमाम जनप्रतिनिधि पैदल ही चले। अटल जी के अंतिम संस्कार में विदेशों से भी कई प्रतिनिधि शामिल होने के लिए पहुंचे हैं। शुुुुक्रवार सुबह से ही अटल जी के सरकारी आवास पर उनके पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। भारी जनसैलाब के साथ दोपहर को उनकी अंतिम यात्र शुरू हुई। देश विदेश के साथ ही उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट सहित तमाम नेताओं सहित बड़ी संख्या में लोगों ने दिल्ली पहुंचकर पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि अर्पित की। अटल जी के निधन पर आज पूरा उत्तराखण्ड भी शोक में डूबा रहा। देश-प्रदेश में सरकारी कार्यालयों के साथ ही स्कूल कालेज भी शोक में बंद रहे। अटल जी का उत्तराखण्ड के साथ विशेष लगाव रहा था। वे उत्तराखण्ड वासियाें की स्मृति में हमेशा जिंदा रहेंगे। तमाम विरोधों के बाद भी उन्होंने उत्तराखण्ड राज्य का निर्माण किया था। हालांकि कुछ नेता हरिद्वार कुम्भ स्थल को उत्तराखण्ड में शामिल करना चाहते थे लेकिन अटल बिहारी बाजपेयी ने पूरा हरिद्वार उत्तराखण्ड में सम्मिलित किया था और इस प्रकार से एक नये राज्य का गठन हुआ था जिसके लिए तमाम आंदोलन कारियों ने लम्बे समय तक आंदोलन किया था। पाकिस्तान जैसे चिर प्रतिद्वंदी देश के साथ रिश्ते सुधारने की पहल भी अटल जी ने की थी और स्वयं बस से लाहौर पहुंचे थे। कारगिल युद्ध हो अथवा पोखरन परीक्षण अटल जी ने जो कूटनीति और बड़े फैसले लिये उसका कायल पूरा देश है। अटल जी का उत्तराखण्ड से खास लगाव था। हालांकि जब उत्तराखण्ड अलग राज्य नहीं बना था तब से ही अटल जी हरिद्वार,देहरादून, मसूरी, नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बाजपुर, रूद्रपुर, काशीपुर, हल्द्वानी, किच्छा सहित कई शहरों में आते रहे और छोटे से छोटे कार्यकर्ता से बेहद आत्मीयता के साथ मिलते थे। हालांकि अटल जी के साथी रहे जनसंघ और भाजपा के कई पुरोधा अब इस संसार में नहीं हैं लेकिन आज भी ऐसे कई वयोवृद्ध नेता हैं जो अटल जी के साथ रहे हैं और अटल जी की स्मृतियां आज भी उनके जेहन में शेष हैं। राजनीति की भागमभाग से जब वह थक जाते थे तो उत्तराखण्ड से विशेष लगाव के चलते वह पहाड़ों की शान्त वादियों में ही सुकून तलाशते थे। मनाली उनका प्रिय स्थान रहा। अटल जी का व्यक्तित्व इतना विशाल रहा कि देश ही नहीं दुनिया भर के बड़े बड़े नेता उनके कायल थे। देश की राजनीति में आजादी से लेकर अब तक अनगिनत नेता रहे लेकिन जैसी शख्सियत अटल जी की रही उसे कोई छू भी नहीं पाया। वर्ष 1996 में अटल जी बाजपुर में विजय बंसल के फार्म हाउस पर आये जहां वर्तमान शिक्षामंत्री अरविंद पांडे, पं- जनकराज शर्मा, अनिल डाबर, निरंजनदास गोयल आदि नेताओं ने उनसे मुलाकात की थी। तत्पश्चात उन्होंने रूद्रपुर गांधी पार्क में जनसभा को सम्बोधित किया था। जहां तत्कालीन भाजपा नगर अध्यक्ष बनारसीदास राणा सहित तमाम नेताओं ने उनका स्वागत किया था। स्व- राणा से अटल जी के आत्मीय सम्बन्ध थे। आपातकाल के दौरान श्री राणा को जो यातनाएं मिलीं उसकी जानकारी अटल जी को मिली थी। तब उन्होंने राणा जी को पत्र लिखकर कहा था कि भाजपा कार्यकर्ताओं का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा। पूर्व पालिकाध्यक्ष सुभाष चतुर्वेदी,स्व- चिमनलाल बाम्बा, स्व- किशोरीलाल धीर, लाला बद्रीप्रसाद अग्रवाल से उनके आत्मीय सम्बन्ध थे। किच्छा निवासी स्व- चौधरीराम पपनेजा से भी उनका सम्बन्ध रहा। वहीं भाजपा नेता यशपाल घई ने भी वर्ष 1981 में बतौर भाजपा जिला महामंत्री रहते हुए बाजपुर की जनसभा में अटल जी से मुलाकात की थी। अटल जी जीवन पर्यन्त अपने निर्णयों पर अटल रहे। उनका कवि हृदय बेहद विशाल था। उनकी ओजस्वी रचनाएं दिल को छूती थीं। वह ऐसे उम्मीदों के कवि थे कि जिनके गीतों में कभी हार नहीं होती थी। अटल जी ने ‘टूटे हुए तारों से टूटे बासंती स्वर, पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर, झरे सब पीले पात, कोयल की कुहूक रात प्राची में अरणम की रेख देख पाता हूं, गीत नया गाता हूं’, ‘ठन गई मौत से ठन गयी जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था’, ‘खून क्यों सफेद हो गया भेद में अभेद खो गया, बंट गये शहीद गीत कट गये, कलेजे में कटार दड गयी दूध में दरार पड़ गयी’, ‘चौराहे पर लुटता चीर पियादे से पिट गया वजीर, चलो आखिरी चाल की बाजी, छोड़ विरक्ति सजाऊं राह कौन सी जाऊं मैं’ जैसी रचनाएं रचीं और अपनी ओजस्वी वाणी से जब अटल जी इन रचनाओं को गाते थे तो मानों धरा और अम्बर मोहित हो जाते थे। अटल जी ने जनतांत्रिक परम्पराओं का आजीवन पूरी निष्ठा से निर्वहन किया। कभी भी सामाजिक और मानवीय व्यवहारों में राजनीति को कभी आड़े नहीं आने दिया। वह राजधर्म का पालन करने में विश्वास रखते थे। अटल जी उत्कृष्ट राजनेता, सहृदय मानव व प्रखर देशभक्त थे। अटल जी के निधन से एक ज्योतिपुंज विलीन हो गया। उत्तराखण्डवासियों के हृदयों में सदैव जीवित रहेंगे स्व- अटल। लेकिन ‘जब तक देश रहेगा तब तक रहेगा अनंत अटल’

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